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इकतारे वाला जोगी - उपन्यास
Dr kavita Tyagi
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
इकतारे वाला जोगीछः वर्ष पश्चात् ...छः वर्ष बीत चुके थे। शुभ्रा अब किशोर वयः के अन्तिम पड़ाव पर थी। न जाने कब बासन्ती सुगंधित बयार का कोई झोंका आकर उसकी साँसों को महका गया था । अब यह सुगंध उसकी साँसों में बस चुकी है । इस सुगन्ध के बिना शुभ्रा की साँसें उदास हो जाती हैं ; जीवन नीरस-निरर्थक प्रतीत होता है । शुभ्रा ने इस विषय पर कभी गम्भीरतापूर्वक विचार नहीं किया था , किन्तु उस समय वह आश्चर्यचकित रह गयी , जब उसकी दादी ने उसके विवाह का प्रस्ताव रखकर वर के चयन हेतु कुछ अल्प परिचित-अपरिचित
इकतारे वाला जोगीछः वर्ष पश्चात् ...छः वर्ष बीत चुके थे। शुभ्रा अब किशोर वयः के अन्तिम पड़ाव पर थी। न जाने कब बासन्ती सुगंधित बयार का कोई झोंका आकर उसकी साँसों को महका गया था । अब यह सुगंध ...और पढ़ेसाँसों में बस चुकी है । इस सुगन्ध के बिना शुभ्रा की साँसें उदास हो जाती हैं ; जीवन नीरस-निरर्थक प्रतीत होता है । शुभ्रा ने इस विषय पर कभी गम्भीरतापूर्वक विचार नहीं किया था , किन्तु उस समय वह आश्चर्यचकित रह गयी , जब उसकी दादी ने उसके विवाह का प्रस्ताव रखकर वर के चयन हेतु कुछ अल्प परिचित-अपरिचित
आभा की किशोरवयः पुत्री शुभ्रा भी मांँ की मनःस्थिति को ना समझते हुए उसके रोग का कारणभूत जोगी के इकतारे को समझती है और जोगी को हमेशा-हमेशा के लिए उस शहर को छोड़कर कहीं दूर चले जाने के लिए ...और पढ़ेहै । आभा को जब यह ज्ञात होता है तब बीमार आभा इतनी आहत होती है कि वह कोमा में चली जाती है । इसके छः साल बाद जब शुभ्रा उसी दौर से गुजरती है , जिस दौर में उसकी माँँ ने अपने सपनों को अपनों की खुशी के लिए दफन कर दिया था , तब शुभ्रा को मांँ द्वारा सुनाई गई वह कहानी याद आती है , जिसमें शुभ्रा को यह संकेत मिलता है कि कहानी का राजकुमार कोई और नहीं, मांँ के मन का मीत है । संकेत पाते ही ।शुभ्रा माँँ को वही सुख देने का संकल्प करती हैं , जिसकी वह अधिकारिणी है । कहानी के अन्त तक वह आंशिक सफलता प्राप्त कर लेती है ।