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मंझली दीदी - उपन्यास
Sarat Chandra Chattopadhyay
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
किशन की मां चने-मुरमुचे भून-भूनकर और रात-दिन चिन्ता करके वहुत ही गरीबी में उसे चौदह वर्ष का करके मर गई। किशन के लिए गांव में कही खडे होने के लिए भी जगह नहीं रही। उसकी सौतेली वडी बहन कादम्बिनी की आर्थिक स्थिति अच्छी थी इसलिए सभी लोगों ने राय दी, “किशन, तुम बडी बहन के घर चले जाओ। वह बडे आदमी हैं, तुम वहां अच्छी तरह रहोगे।”
मां के शोक में रोते-रोते किशन ने बुखार बुला लिया था । अन्त में अच्छे हो जाने पर उसने भीख मांग कर मां का श्रद्धा किया और मुंडे सिर पर एक छोटी सी पोटली रखकर अपनी बड़ी बहन के घर राजघाट पहुंच गया। बहन उसे पहचानती नहीं थी। जब उसका परिचय मिला और उसके आने का कारण मालूप हुआ तो एकदम आग बबूला हो गई। वह मजे में अपने बाल बच्चों के साथ गृहस्थी जमाए बैठी थी। अचानक यह क्या उपद्रव खडा हो गया?
किशन की मां चने-मुरमुचे भून-भूनकर और रात-दिन चिन्ता करके वहुत ही गरीबी में उसे चौदह वर्ष का करके मर गई। किशन के लिए गांव में कही खडे होने के लिए भी जगह नहीं रही। उसकी सौतेली वडी बहन कादम्बिनी ...और पढ़ेआर्थिक स्थिति अच्छी थी इसलिए सभी लोगों ने राय दी, “किशन, तुम बडी बहन के घर चले जाओ। वह बडे आदमी हैं, तुम वहां अच्छी तरह रहोगे।”
मां के शोक में रोते-रोते किशन ने बुखार बुला लिया था । अन्त में अच्छे हो जाने पर उसने भीख मांग कर मां का श्रद्धा किया और मुंडे सिर पर एक छोटी सी पोटली रखकर अपनी बड़ी बहन के घर राजघाट पहुंच गया। बहन उसे पहचानती नहीं थी। जब उसका परिचय मिला और उसके आने का कारण मालूप हुआ तो एकदम आग बबूला हो गई। वह मजे में अपने बाल बच्चों के साथ गृहस्थी जमाए बैठी थी। अचानक यह क्या उपद्रव खडा हो गया?
दोनों भाइयों ने पैतृक मकान आपस में बांट लिया था।
पास वाला दो मंजिला मकान मझबे भाई विपिन का है। छोटे भाई की बहुत दिन पहले मृत्यु हो गई थी। विपिन भी धान और चावल का ही व्यापार करता है। ...और पढ़ेतो उसकी स्थिति भी अच्छी लेकिन बड़े भाई नवीन जैसी नहीं है। तो भी उसका मकान दो मंजिला है। मंझबी बहू हेमांगिनी शहर की लड़की है। वह दास-दासी रखकर चार आदमियों को खिला-पिलाकर ठाठ से रहना पसंद करती है। वह पैसा बचाकर गरीबों की तरह नहीं रहेती, इसीलिए लगभग चार साल पहले दोनों देवरानी जिठानी कलह करके अलग-अलग हो गई थीं।
संध्या के समय कादम्बिनी ने पूछा, ‘क्यों रे किशन, वहां क्या खा आया?’
किशन ने बहुत लज्जित भाव से सिर झुकाकर कहा, ‘पूड़ी।’
‘काहे के साथ खाई थी?’
किशन ने फिर उसी प्रकार कहा, ‘रोहू मछली के मूंड की तरकारी, सन्देश, रसगु...।’
‘अरे ...और पढ़ेपुछती हूं की मंझबी बहू ने मछली की मूंड किसकी थाली में परोसी थी?’
सहसा यह प्रश्न सुनकर किशन का चहेरा लाल पीला पड़ गया। प्रहार के लिए उठे हुए हथियार को देखकर रस्सी सें बंधे हुए जानवर की जो हालत होती है, किशन की भी वही हालत होने लगी। देर करते हुए देखकर कादम्बिनी ने पूछा, ‘तेरी ही थाली में परोसा था ने?’
हेमांगिनी को बीच-बीच में सर्दी के कारण बुखार हो जाता था और दो-तीन दिन रहकर आप-ही-आप ठीक हो जाता था। कुछ दिनों के बाद उसे इसी तरह बुखार हो आया। शाम के समय वह अपने बिस्तर पर लेटी हुई ...और पढ़ेघर में और कोई नहीं था, अचानक उसे लगा कि बाहर खिड़की की आड़ में खड़ा कोई अंदर की ओर झांक रहा है। उसने पुकारा ‘बाहर कौन खड़ा है? ललित?’
किसी ने उत्तर नहीं दिया। जब उसने फिर उसी तरह पुकारा तब उत्तर मिला, ‘में हुं।’
‘कौन?.... मैं कोन? आ, अन्दर आ।’
दूसरे दिन सवेरे ही किशन चुपचाप हेमांगिनी के घर पहुंचकर उसके बिस्तर पर पैरों की ओर जाकर बैठ गया। हेमांगिनी ने अपने पैर थोड़े से ऊपर खींच लिए और बड़े प्यार से कहा, ‘किशन, दुकान पर नहीं जाएगा?’
‘अब जाऊंगा।’
‘देर ...और पढ़ेकर भैया! इसी समय चला जा। वरना गालियां देने लगेंगी।’
किशन का चहेरा एक बार लाल पड़ा और फिर पीला पड़ा गया, ‘अच्छा जाता हूं,’ कहकर वह उठ खड़ा हुआ। उसने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन फिर चुप हो गया। हेमांगिनी ने जैसे उसके मन की बात समझ ली, पूछा - ‘क्या मुझसे कुछ कहना चाहता है भैया?’
किशन ने जमीन की ओर देखते हुए बहुत ही कोमल स्वर से कहा, ‘मंझली दीदी! कल से कुछ भी नहीं खाया।’