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शेख़ सादी - उपन्यास
Munshi Premchand
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
शेख़ मुसलहुद्दीन (उपनाम सादी) का जन्म सन् 1172 ई. में शीराज़ नगर के पास एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम शरफुद्दीन था। 'शेख़' इस घराने की सम्मान सूचक पदवी थी। क्योंकि उनकी वृत्ति धार्मिक शिक्षा-दीक्षा देने की थी। लेकिन इनका ख़ानदान सैयद था। जिस प्रकार अन्य महान् पुरुषों के जन्म के सम्बन्ध में अनेक अलौकिक घटनाएं प्रसिध्द हैं उसी प्रकार सादी के जन्म के विषय में भी लोगों ने कल्पनायें की हैं। लेकिन उनके उल्लेख की जरूरत नहीं। सादी का जीवन हिंदी तथा संस्कृत के अनेक कवियों के जीवन की भांति ही अंधकारमय है।
शेख़ मुसलहुद्दीन (उपनाम सादी) का जन्म सन् 1172 ई. में शीराज़ नगर के पास एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम शरफुद्दीन था। 'शेख़' इस घराने की सम्मान सूचक पदवी थी। क्योंकि ...और पढ़ेवृत्ति धार्मिक शिक्षा-दीक्षा देने की थी। लेकिन इनका ख़ानदान सैयद था। जिस प्रकार अन्य महान् पुरुषों के जन्म के सम्बन्ध में अनेक अलौकिक घटनाएं प्रसिध्द हैं उसी प्रकार सादी के जन्म के विषय में भी लोगों ने कल्पनायें की हैं। लेकिन उनके उल्लेख की जरूरत नहीं। सादी का जीवन हिंदी तथा संस्कृत के अनेक कवियों के जीवन की भांति ही अंधकारमय है।
बग़दाद उस समय तुर्क साम्राज्य की राजधानी था। मुसलमानों ने बसरा से यूनान तक विजय प्राप्त कर ली थी और सम्पूर्ण एशिया ही में नहीं, यूरोप में भी उनका-सा वैभवशाली और कोई राज्य नहीं था। राज्य विक्रमादित्य के समय ...और पढ़ेउज्जैन की और मौर्यवंश राज्य काल में पाटलिपुत्र की जो उन्नति थी वही इस समय बग़दाद की थी। बग़दाद के बादशाह खलीफा कहलाते थे। रौनक और आबादी में यह शहर शीराज़ से कहीं चढा बढा था। यहाँ के कई ख़लीफा बड़े विद्याप्रेमी थे। उन्होंने सैकड़ों विद्यालय स्थापित किये थे। दूर-दूर से विद्वान लोग पठन-पाठन के निमित्त आया करते थे। यह कहने में अत्युक्ति न होगी कि बग़दाद का सा उन्नत नगर उस समय संसार में नहीं था।
मुसलमान यात्रियों में इब्नबतुता (प्रख्यात यात्री एवं महत्वपूर्णग्रंथ ‘सफ़रनामा’ का लेखक) सबसे श्रेष्ठ जाता है। सादी के विषय में विद्वानों ने स्थिर किया है कि उनकी यात्रायें 'बतूता' से कुछ ही कम थीं। उस समय के सभ्य संसार में ...और पढ़ेकोई स्थान न था जहाँ सादी ने पदार्पण न किया हो। वह सदैव पैदल सफर किया करते थे। इससे विदित हो सकता है कि उनका स्वास्थ्य कैसा अच्छा रहा होगा और वह कितने बड़े परिश्रमी थे। साधारण वस्त्रों के सिवा वह अपने साथ और कोई सामान न रखते थे। हाँ, रक्षा के लिए एक कुल्हाड़ा ले लिया करते थे। आजकल के यात्रियों की भांति पाकेट में नोटबुक दाबकर गाइड (पथदर्शक) के साथ प्रसिध्द स्थानों का देखना और घर पहुंच यात्रा का वृत्तांत छपवाकर अपनी विद्वता दर्शाना सादी का उद्देश्य न था।
तीस-चालीस साल तक भ्रमण करने के बाद सादी को जन्म–भूमि का स्मरण हुआ । जिस समय वह वहाँ से चले थे, वहाँ अशांति फैली हुई थी। कुछ तो इस कुदशा और कुछ विद्या लाभ की इच्छा से प्रेरित होकर ...और पढ़ेने देशत्याग किया था। लेकिन अब शीराज़ की वह दशा न थी। साद बिन जंग़ी की मृत्यु हो चुकी थी और उसका बेटा अताबक अबूबक राजगद्दी पर था। यह न्याय-प्रिय, राज्य - कार्य - कुशल राजा था। उसके सुशासन ने देश की बिगड़ी हुई अवस्था को बहुत कुछ सुधार दिया था। सादी संसार को देख चुके थे। अवस्था वह आ पहुंची थी जब मनुष्य को एकांतवास की इच्छा होने लगती है, सांसारिक झगड़ों से मन उदासीन हो जाता है।
सादी उन कवियों में हैं ... जिनके चरित्र का प्रतिबिंब उनके काव्य रूपी दर्पण में स्पष्ट दिखाई देता हैं।
हृदय से निकलते थे और यही कारण है कि उनमें इतनी प्रबल शक्ति भरी हुई है। सैकड़ों अन्य उपदेशकों की भांति ...और पढ़ेदूसरों को परमार्थ सिखाकर आप स्वार्थ पर जान न देते थे। दूसरों को न्याय, धर्म और कर्तव्य पालन की शिक्षा देकर आप विलासिता में लिप्त न रहते थे। उनकी वृत्ति स्वभावत: सात्विक थी। उनका मन कभी वासनाओं से विचलित नहीं हुआ। अन्य कवियों की भांति उन्होंने किसी राज-दरबार का आश्रय नहीं लिया। लोभ को कभी अपने पास नहीं आने दिया। यश और ऐश्वर्य दोनों ही सत्कर्म के फल हैं। यश दैविक है, ऐश्वर्य मानुषिक। सादी ने दैविक फल पर संतोष किया, मानुषिक के लिए हाथ नहीं फैलाया।