बग़दाद, तुर्क साम्राज्य की राजधानी, एक समय में शिक्षा और संस्कृति का केंद्र था। यहाँ के खलीफाओं ने सैकड़ों विद्यालय स्थापित किए और विद्वानों को आकर्षित किया। विशेष रूप से 'मद्रसए नज़मिया' विश्वस्तरीय शिक्षा का केंद्र था। शेख़ सादी ने इसी मद्रसे में अध्ययन किया, जहाँ उन्होंने धर्मशास्त्र, विज्ञान, गणित, खगोल, भूगोल और इतिहास का ज्ञान प्राप्त किया। लेकिन, समय के साथ बग़दाद का वैभव समाप्त हो गया, और सादी ने लगभग बीस साल बाद देखा कि यह समृद्ध नगर हलाकू खां के हाथों नष्ट हो गया। इस विनाश ने सादी पर गहरा प्रभाव डाला, और उन्होंने अपने लेखों में निरंतर नीतिरक्ष की बातें कीं।
शेख़ सादी - 2
Munshi Premchand
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
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विवरण
बग़दाद उस समय तुर्क साम्राज्य की राजधानी था। मुसलमानों ने बसरा से यूनान तक विजय प्राप्त कर ली थी और सम्पूर्ण एशिया ही में नहीं, यूरोप में भी उनका-सा वैभवशाली और कोई राज्य नहीं था। राज्य विक्रमादित्य के समय में उज्जैन की और मौर्यवंश राज्य काल में पाटलिपुत्र की जो उन्नति थी वही इस समय बग़दाद की थी। बग़दाद के बादशाह खलीफा कहलाते थे। रौनक और आबादी में यह शहर शीराज़ से कहीं चढा बढा था। यहाँ के कई ख़लीफा बड़े विद्याप्रेमी थे। उन्होंने सैकड़ों विद्यालय स्थापित किये थे। दूर-दूर से विद्वान लोग पठन-पाठन के निमित्त आया करते थे। यह कहने में अत्युक्ति न होगी कि बग़दाद का सा उन्नत नगर उस समय संसार में नहीं था।
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