इस अध्याय में, शेख़ सादी का शीराज़ में पुनरागमन और उनके जीवन के अंतिम चरणों का वर्णन किया गया है। लगभग तीस-चालीस वर्षों की यात्रा के बाद, सादी को अपने जन्मभूमि की याद आई। जब उन्होंने शीराज़ छोड़ा था, तब वहां अशांति थी, लेकिन अब वहां की स्थिति सुधर चुकी थी। सादी ने शीराज़ में लौटकर एकांतवास को प्राथमिकता दी और राज-दरबार में बहुत कम उपस्थित रहे, क्योंकि उन्हें बादशाह अबूबक के विद्वानों के प्रति अविश्वास का पता था। सादी ने अपनी कृतियों, गुलिस्तां और बोस्तां, में मूर्ख साधुओं और फ़कीरों की आलोचना की, साथ ही न्याय और धर्म का उपदेश दिया। उन्होंने युवराज फ़ख़रूददीन से भी स्नेह रखा, लेकिन युवराज के पिता की मृत्यु के बाद उनके शोक में सादी फिर से देश-भ्रमण पर निकल पड़े। अंततः, उन्होंने शीराज़ लौटकर वहीं अंतिम सांस ली। उनकी कब्र आज भी मौजूद है, और लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने आते हैं।
शेख़ सादी - 4
Munshi Premchand
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
Four Stars
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विवरण
तीस-चालीस साल तक भ्रमण करने के बाद सादी को जन्म–भूमि का स्मरण हुआ । जिस समय वह वहाँ से चले थे, वहाँ अशांति फैली हुई थी। कुछ तो इस कुदशा और कुछ विद्या लाभ की इच्छा से प्रेरित होकर सादी ने देशत्याग किया था। लेकिन अब शीराज़ की वह दशा न थी। साद बिन जंग़ी की मृत्यु हो चुकी थी और उसका बेटा अताबक अबूबक राजगद्दी पर था। यह न्याय-प्रिय, राज्य - कार्य - कुशल राजा था। उसके सुशासन ने देश की बिगड़ी हुई अवस्था को बहुत कुछ सुधार दिया था। सादी संसार को देख चुके थे। अवस्था वह आ पहुंची थी जब मनुष्य को एकांतवास की इच्छा होने लगती है, सांसारिक झगड़ों से मन उदासीन हो जाता है।
शेख़ मुसलहुद्दीन (उपनाम सादी) का जन्म सन् 1172 ई. में शीराज़ नगर के पास एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम शरफुद्दीन था। &...
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