Durgadas book and story is written by Munshi Premchand in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Durgadas is also popular in लघुकथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
दुर्गादास - उपन्यास
Munshi Premchand
द्वारा
हिंदी लघुकथा
दुर्गादास एक उपन्यास है जो एक वीर व्यक्ति दुर्गादास राठौड़ के जीवन पर मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इसे एक वीर गाथा भी कह सकते हैं जिससे हमें कई सीख मिलती है। यह बाल साहित्य के अंतर्गत आता है तथा इसके मुख्य प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ है।
जोधपुर के वीर सेनापति आशकरण के पुत्र दुर्गादास तथा जसकरण थे सन् 1605 में धोखे से आशकरण की मृत्यु के बाद महाराज यशवंत सिंह नें दुर्गादास तथा अपने पुत्र पृथ्वी सिंह को लाड से पाला। औरंगजेब के कहनें पर महाराज दक्खिन की सुबेदारी पर चले गए, दुर्गादास को साथ लिया और पृथ्वीसिंह को राज्य में छोड़ दिया। दक्खिन के राजा शिवाजी से यशवंतसिंह की दोस्ती के बाद मुगल वहां सुरक्षित हो गए। फिर औरंगज़ेब ने राजा को काबुल भेजा तथा वहाँ के मुसलमानों से लड़ते हुए दो राजकुमार मारे गए। वहाँ मारवाड़ से औरंगज़ेब ने पृथ्वी सिंह को भी दिल्ली बुलाकर मार डाला। और मारवाड़ पर कब्जा कर लिया। इधर बच्चों के मरने से जसवंतसिंह का भी देहावसान हो गया। राजा नें मरने से पहले कहा था कि उनकी दो पत्नी भाटी और हाड़ी गर्भ से थीं तथा वह उन्ही के संतान को राजा बनाना चाहते थे। राजा के साँथ इन दोनों रानियों को छोड़कर सब सती हो गए।
रानी का बच्चा पैदा हुआ जिसका नाम अजीत रखा गया, दूसरे दिन हाड़ी का भी बच्चा पैदा हुआ जिसका नाम दलथम्भन रखा। दिल्ली जाते जाते दलथम्भन ठण्ड से मारा गया वहाँ औरंगज़ेब नें राजकुमार अजीत को दिल्ली में रखने की बात कही। दुर्गादास नें आनंददास खेची के साथ राजकुमार को डुगबा नामक गाँव में जयदेव ब्राह्मण के घर भेज दिया।
औरंगजेब नें कोतवाल भेजे और दोनों रानियों नें आत्महत्या कर ली। लड़ाई में जो बचे थे वे दुर्गादास के साँथ रानियों का शव लेकर चले और आबू की पहाड़ियों में दाह क्रिया की। सब लोग ब्राह्मण के यहाँ गए और एक दिन बाद सब कल्याणगढ़ दुर्गादास के घर चले गए वहाँ दुर्गादास की बूढ़ी माँ तथा उसका भाई जसकरण और उसका बेटा तेजकरण था। बादशाह नें जसवंतसिह के भतीजे के कहने पर यह फरमान जारी किया कि सारे राजपूतों को जिंदा या मुर्दा पकड़ के लाओ। सब राजपूत भागे, इधर दुर्गादास सोनिंगी के साथ आवागढ़ चले गए वहाँ शोनिंगी नें एक संदुकची देते हुए बोला यह राजा का दिया हुआ है, इसे मैं सुरक्षित नही रख सकता इसे तुम ले लो तथा जोधपुर में जो युवक राजा बनें उसे दे देना, खोलना मत!
दुर्गादास एक उपन्यास है जो एक वीर व्यक्ति दुर्गादास राठौड़ के जीवन पर मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इसे एक वीर गाथा भी कह सकते हैं जिससे हमें कई सीख मिलती है। यह बाल साहित्य के अंतर्गत आता है ...और पढ़ेइसके मुख्य प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ है।
जोधपुर के वीर सेनापति आशकरण के पुत्र दुर्गादास तथा जसकरण थे सन् 1605 में धोखे से आशकरण की मृत्यु के बाद महाराज यशवंत सिंह नें दुर्गादास तथा अपने पुत्र पृथ्वी सिंह को लाड से पाला। औरंगजेब के कहनें पर महाराज दक्खिन की सुबेदारी पर चले गए, दुर्गादास को साथ लिया और पृथ्वीसिंह को राज्य में छोड़ दिया। दक्खिन के राजा शिवाजी से यशवंतसिंह की दोस्ती के बाद मुगल वहां सुरक्षित हो गए। फिर औरंगज़ेब ने राजा को काबुल भेजा तथा वहाँ के मुसलमानों से लड़ते हुए दो राजकुमार मारे गए। वहाँ मारवाड़ से औरंगज़ेब ने पृथ्वी सिंह को भी दिल्ली बुलाकर मार डाला। और मारवाड़ पर कब्जा कर लिया। इधर बच्चों के मरने से जसवंतसिंह का भी देहावसान हो गया। राजा नें मरने से पहले कहा था कि उनकी दो पत्नी भाटी और हाड़ी गर्भ से थीं तथा वह उन्ही के संतान को राजा बनाना चाहते थे। राजा के साँथ इन दोनों रानियों को छोड़कर सब सती हो गए।
रानी का बच्चा पैदा हुआ जिसका नाम अजीत रखा गया, दूसरे दिन हाड़ी का भी बच्चा पैदा हुआ जिसका नाम दलथम्भन रखा। दिल्ली जाते जाते दलथम्भन ठण्ड से मारा गया वहाँ औरंगज़ेब नें राजकुमार अजीत को दिल्ली में रखने की बात कही। दुर्गादास नें आनंददास खेची के साथ राजकुमार को डुगबा नामक गाँव में जयदेव ब्राह्मण के घर भेज दिया।
औरंगजेब नें कोतवाल भेजे और दोनों रानियों नें आत्महत्या कर ली। लड़ाई में जो बचे थे वे दुर्गादास के साँथ रानियों का शव लेकर चले और आबू की पहाड़ियों में दाह क्रिया की। सब लोग ब्राह्मण के यहाँ गए और एक दिन बाद सब कल्याणगढ़ दुर्गादास के घर चले गए वहाँ दुर्गादास की बूढ़ी माँ तथा उसका भाई जसकरण और उसका बेटा तेजकरण था। बादशाह नें जसवंतसिह के भतीजे के कहने पर यह फरमान जारी किया कि सारे राजपूतों को जिंदा या मुर्दा पकड़ के लाओ। सब राजपूत भागे, इधर दुर्गादास सोनिंगी के साथ आवागढ़ चले गए वहाँ शोनिंगी नें एक संदुकची देते हुए बोला यह राजा का दिया हुआ है, इसे मैं सुरक्षित नही रख सकता इसे तुम ले लो तथा जोधपुर में जो युवक राजा बनें उसे दे देना, खोलना मत!
दुर्गादास एक उपन्यास है जो एक वीर व्यक्ति दुर्गादास राठौड़ के जीवन पर मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इसे एक वीर गाथा भी कह सकते हैं जिससे हमें कई सीख मिलती है। यह बाल साहित्य के अंतर्गत आता है ...और पढ़ेइसके मुख्य प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ है।
दुर्गादास उस संदुकची को लेकर चला गया। रास्ते में दो राजपूतों को मुगल सिपाही घेरे थे जिसमें से एक मर गया था और महासिंह नामक घायल था। उन्हे बचाते हुए दुर्गादास नें जोरावर को मार डाला और महासिंह को साथ ले अपने घर पहुँचा। सुबह होते ही दुर्गादास अपने बेटे तथा भाई के साथ माँ से विदा लेकर जाने लगा और वह संदुकची अपने नौकर नाथू को दे दी। उनके जाने के बाद शमशेर खाँ आया और दुर्गादास की माँ को बेरहमी से मार डाला शमशेर के एक सैनिक खुदाबक्श के संग महाँसिह माड़ो चले गए और नाथू दुर्गादास को माँ की मौत की खबर देने चला गया।
दुर्गादास माता के मृत्यु की बात से आगबबूला हो सीधा जाकर शमशेर खाँ को मार डाला।
इसी प्रकार कई महान काम करते हुए उसने औरंगज़ेब को मारवाड़ से भगा दिया।
अब दुर्गादास बूढ़ा हो चला था उसने अजीतसिंह को राजगद्दी पर बिठा दिया, अजीतसिंह घमंड में आकर दुर्गादास को मारने की कोशिश की पर आखिर उसे भी पता चल ही गया कि जिसके डर से औरंगज़ेब भाग गया उसे वो क्या कर सकेगा।
वीर दुर्गादास जोधपुर से चले गए और थोड़े दिन राणा जयसिंह के यहाँ रहे और फिर उज्जैन चले गए, बचे दिनों में श्रद्धा से महाकालेश्वर की पूजा की। संवत् 1765 में उनका देहांत हो गया।
वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु तो हो गई परंतु उनकी वीरगाथा सदा के लिये अमर रहेगी।
अंत में प्रेमचंद लिखते हैं जिसने यशवन्तसिंह के पुत्र की प्राण-रक्षा की और मारवाड़ देश का स्वामी बनाया, आज उसी वीर का मृत शरीर क्षिप्रा नदी की सूखी झाऊ की चिता में भस्म किया गया। विधाता! तेरी लीला अद्भुत है।