"दुर्गादास" कहानी में जोधपुर के महाराज जसवन्तसिंह और उनके वीर सेनापति आशकरण का वर्णन है, जिनकी बहादुरी से दुश्मन कांपते थे। आशकरण की मृत्यु के बाद, उनके बेटे दुर्गादास को सेना में शामिल किया गया। जसवन्तसिंह ने दक्खिन में शिवाजी के साम्राज्य के खिलाफ मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया। लेकिन औरंगजेब ने उन्हें कई बार हटा दिया, जिससे जसवन्तसिंह को व्यक्तिगत और पारिवारिक नुकसान हुआ। पृथ्वीसिंह, जसवन्तसिंह का बड़ा बेटा, विद्रोह को दबाने के बाद विषाक्त कपड़े पहनने के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए। जसवन्तसिंह को उनके बेटे की मृत्यु पर गहरा दुख हुआ, और उन्होंने अपने साथी शोनिंगजी को एक लोहे की सन्दूकची सौंपी, जिसे तब तक सुरक्षित रखने का आदेश दिया जब तक कोई राजपूत मारवाड़ को मुगलों से मुक्त नहीं करता। इस तरह कहानी में वीरता, पराकाष्ठा और राजपूतों की संघर्षशीलता का चित्रण किया गया है। दुर्गादास अध्याय 1 Munshi Premchand द्वारा हिंदी लघुकथा 3.9k 5k Downloads 12k Views Writen by Munshi Premchand Category लघुकथा पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण दुर्गादास एक उपन्यास है जो एक वीर व्यक्ति दुर्गादास राठौड़ के जीवन पर मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इसे एक वीर गाथा भी कह सकते हैं जिससे हमें कई सीख मिलती है। यह बाल साहित्य के अंतर्गत आता है तथा इसके मुख्य प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ है। जोधपुर के वीर सेनापति आशकरण के पुत्र दुर्गादास तथा जसकरण थे सन् 1605 में धोखे से आशकरण की मृत्यु के बाद महाराज यशवंत सिंह नें दुर्गादास तथा अपने पुत्र पृथ्वी सिंह को लाड से पाला। औरंगजेब के कहनें पर महाराज दक्खिन की सुबेदारी पर चले गए, दुर्गादास को साथ लिया और पृथ्वीसिंह को राज्य में छोड़ दिया। दक्खिन के राजा शिवाजी से यशवंतसिंह की दोस्ती के बाद मुगल वहां सुरक्षित हो गए। फिर औरंगज़ेब ने राजा को काबुल भेजा तथा वहाँ के मुसलमानों से लड़ते हुए दो राजकुमार मारे गए। वहाँ मारवाड़ से औरंगज़ेब ने पृथ्वी सिंह को भी दिल्ली बुलाकर मार डाला। और मारवाड़ पर कब्जा कर लिया। इधर बच्चों के मरने से जसवंतसिंह का भी देहावसान हो गया। राजा नें मरने से पहले कहा था कि उनकी दो पत्नी भाटी और हाड़ी गर्भ से थीं तथा वह उन्ही के संतान को राजा बनाना चाहते थे। राजा के साँथ इन दोनों रानियों को छोड़कर सब सती हो गए। रानी का बच्चा पैदा हुआ जिसका नाम अजीत रखा गया, दूसरे दिन हाड़ी का भी बच्चा पैदा हुआ जिसका नाम दलथम्भन रखा। दिल्ली जाते जाते दलथम्भन ठण्ड से मारा गया वहाँ औरंगज़ेब नें राजकुमार अजीत को दिल्ली में रखने की बात कही। दुर्गादास नें आनंददास खेची के साथ राजकुमार को डुगबा नामक गाँव में जयदेव ब्राह्मण के घर भेज दिया। औरंगजेब नें कोतवाल भेजे और दोनों रानियों नें आत्महत्या कर ली। लड़ाई में जो बचे थे वे दुर्गादास के साँथ रानियों का शव लेकर चले और आबू की पहाड़ियों में दाह क्रिया की। सब लोग ब्राह्मण के यहाँ गए और एक दिन बाद सब कल्याणगढ़ दुर्गादास के घर चले गए वहाँ दुर्गादास की बूढ़ी माँ तथा उसका भाई जसकरण और उसका बेटा तेजकरण था। बादशाह नें जसवंतसिह के भतीजे के कहने पर यह फरमान जारी किया कि सारे राजपूतों को जिंदा या मुर्दा पकड़ के लाओ। सब राजपूत भागे, इधर दुर्गादास सोनिंगी के साथ आवागढ़ चले गए वहाँ शोनिंगी नें एक संदुकची देते हुए बोला यह राजा का दिया हुआ है, इसे मैं सुरक्षित नही रख सकता इसे तुम ले लो तथा जोधपुर में जो युवक राजा बनें उसे दे देना, खोलना मत! Novels दुर्गादास दुर्गादास एक उपन्यास है जो एक वीर व्यक्ति दुर्गादास राठौड़ के जीवन पर मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इसे एक वीर गाथा भी कह सकते हैं जिससे हमें कई सीख... More Likes This नौकरी द्वारा S Sinha रागिनी से राघवी (भाग 1) द्वारा Asfal Ashok अभिनेता मुन्नन द्वारा Devendra Kumar यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (1) द्वारा Ramesh Desai मां... हमारे अस्तित्व की पहचान - 3 द्वारा Soni shakya शनिवार की शपथ द्वारा Dhaval Chauhan बड़े बॉस की बिदाई द्वारा Devendra Kumar अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी