"दुर्गादास" कहानी के दूसरे अध्याय में, वीर दुर्गादास एक अंधेरी और खतरनाक राह पर अपने घोड़े के साथ चल रहे हैं। अचानक, उन्हें तलवारों की आवाज सुनाई देती है और वे देखते हैं कि दो राजपूत को मुगलों ने घेर रखा है। दुर्गादास क्रोध में आकर मुगलों पर हमला करते हैं, कुछ को मार देते हैं, लेकिन एक घायल राजपूत को बचाने की कोशिश में उन्हें भागना पड़ता है। वह घायल राजपूत महासिंह हैं, जिन्हें दुर्गादास अपने घर ले आते हैं। उनकी माता दोनों को देखकर चिंतित हो जाती हैं और उन्हें भागने की सलाह देती हैं, क्योंकि मुगले आ रहे हैं। दुर्गादास अपनी माता और महासिंह को संकट में नहीं छोड़ना चाहते, लेकिन महासिंह उन्हें समझाते हैं कि उनकी जान बचाना जरूरी है ताकि वे देश की रक्षा कर सकें। दुर्गादास अंततः अपनी माता के कहने पर एक अंधे कुएं में छिपने का निर्णय लेते हैं। वह महासिंह को पहले कुएं में उतारते हैं, लेकिन खुद कुएं में नहीं जा पाते। अंत में, वह एक पेड़ पर चढ़ जाते हैं और मुगलों से बचने की कोशिश करते हैं। मुगलों ने घर की तलाशी ली, लेकिन दुर्गादास को नहीं खोज पाए। यह कहानी वीरता, बलिदान और मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना को दर्शाती है। दुर्गादास अध्याय 2 Munshi Premchand द्वारा हिंदी लघुकथा 4.5k 4.7k Downloads 11.7k Views Writen by Munshi Premchand Category लघुकथा पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण दुर्गादास एक उपन्यास है जो एक वीर व्यक्ति दुर्गादास राठौड़ के जीवन पर मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इसे एक वीर गाथा भी कह सकते हैं जिससे हमें कई सीख मिलती है। यह बाल साहित्य के अंतर्गत आता है तथा इसके मुख्य प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ है। दुर्गादास उस संदुकची को लेकर चला गया। रास्ते में दो राजपूतों को मुगल सिपाही घेरे थे जिसमें से एक मर गया था और महासिंह नामक घायल था। उन्हे बचाते हुए दुर्गादास नें जोरावर को मार डाला और महासिंह को साथ ले अपने घर पहुँचा। सुबह होते ही दुर्गादास अपने बेटे तथा भाई के साथ माँ से विदा लेकर जाने लगा और वह संदुकची अपने नौकर नाथू को दे दी। उनके जाने के बाद शमशेर खाँ आया और दुर्गादास की माँ को बेरहमी से मार डाला शमशेर के एक सैनिक खुदाबक्श के संग महाँसिह माड़ो चले गए और नाथू दुर्गादास को माँ की मौत की खबर देने चला गया। दुर्गादास माता के मृत्यु की बात से आगबबूला हो सीधा जाकर शमशेर खाँ को मार डाला। इसी प्रकार कई महान काम करते हुए उसने औरंगज़ेब को मारवाड़ से भगा दिया। अब दुर्गादास बूढ़ा हो चला था उसने अजीतसिंह को राजगद्दी पर बिठा दिया, अजीतसिंह घमंड में आकर दुर्गादास को मारने की कोशिश की पर आखिर उसे भी पता चल ही गया कि जिसके डर से औरंगज़ेब भाग गया उसे वो क्या कर सकेगा। वीर दुर्गादास जोधपुर से चले गए और थोड़े दिन राणा जयसिंह के यहाँ रहे और फिर उज्जैन चले गए, बचे दिनों में श्रद्धा से महाकालेश्वर की पूजा की। संवत् 1765 में उनका देहांत हो गया। वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु तो हो गई परंतु उनकी वीरगाथा सदा के लिये अमर रहेगी। अंत में प्रेमचंद लिखते हैं जिसने यशवन्तसिंह के पुत्र की प्राण-रक्षा की और मारवाड़ देश का स्वामी बनाया, आज उसी वीर का मृत शरीर क्षिप्रा नदी की सूखी झाऊ की चिता में भस्म किया गया। विधाता! तेरी लीला अद्भुत है। Novels दुर्गादास दुर्गादास एक उपन्यास है जो एक वीर व्यक्ति दुर्गादास राठौड़ के जीवन पर मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इसे एक वीर गाथा भी कह सकते हैं जिससे हमें कई सीख... More Likes This उड़ान (1) द्वारा Asfal Ashok नौकरी द्वारा S Sinha रागिनी से राघवी (भाग 1) द्वारा Asfal Ashok अभिनेता मुन्नन द्वारा Devendra Kumar यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (1) द्वारा Ramesh Desai मां... हमारे अस्तित्व की पहचान - 3 द्वारा Soni shakya शनिवार की शपथ द्वारा Dhaval Chauhan अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी