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अनुराधा - उपन्यास
Sarat Chandra Chattopadhyay
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
लड़की के विवाह योग्य आयु होने के सम्बन्ध में जितना भी झूठ बोला जा सकता है, उतना झूठ बोलने के बाद भी उसकी सीमा का अतिक्रमण किया जा चुका है और अब तो विवाह होने की आशा भी समाप्त हो चुकी है। ‘मैया री मैया! यह कैसी बात है?’ से आरम्भ करके, आंखें मिचकाकर लड़की के लड़के-बच्चों की गिनती पूछने तक में अब किसी को रस नहीं मिलता। समाज में अब यह मजाक भी निरर्थक समझा जाने लगा है। ऐसी ही दशा है बेचारी अनुराधा की। और दिलचस्प बात यह है कि घटना किसी प्राचीन युग की नहीं बल्कि एकदम आधुनिक युग की है। इस आधुनिक युग में भी केवल दान-दहेज, पंचाग, जन्म-कुंड़ली और कुल-शील की जांच-पड़ताल करते-करते एसा हुआ कि अनुराधा की उम्र तेईस को पार कर गई, फिर भी उसके लिए वर नहीं मिला।
लड़की के विवाह योग्य आयु होने के सम्बन्ध में जितना भी झूठ बोला जा सकता है, उतना झूठ बोलने के बाद भी उसकी सीमा का अतिक्रमण किया जा चुका है और अब तो विवाह होने की आशा भी समाप्त ...और पढ़ेचुकी है। ‘मैया री मैया! यह कैसी बात है?’ से आरम्भ करके, आंखें मिचकाकर लड़की के लड़के-बच्चों की गिनती पूछने तक में अब किसी को रस नहीं मिलता। समाज में अब यह मजाक भी निरर्थक समझा जाने लगा है। ऐसी ही दशा है बेचारी अनुराधा की। और दिलचस्प बात यह है कि घटना किसी प्राचीन युग की नहीं बल्कि एकदम आधुनिक युग की है। इस आधुनिक युग में भी केवल दान-दहेज, पंचाग, जन्म-कुंड़ली और कुल-शील की जांच-पड़ताल करते-करते एसा हुआ कि अनुराधा की उम्र तेईस को पार कर गई, फिर भी उसके लिए वर नहीं मिला।
विजय शुद्ध विलायती लिबास पहने, सिर पर हैट, मुंह में चुरुट दबाए और जेब में चेरी की घड़ी घुमाता हुआ बाबू परिवार के सदर मकान में पहुंचा। साथ में दो मिर्जापुरी लठैत दरबान, कुछ अनुयायी प्रजा, विनोद घोष और ...और पढ़ेकुमार।
जायदाद पर दखल करने में हालाकि झगड़े फसाद का भय है, फिर भी लड़के को लड्डु गोपाल बना देने के बयाज मजबूत और साहसी बनाने के लिए यह बहुत बड़ी शिक्षा होगी, इसलिए वह लड़के को भी साथ लाया है, लेकिन विनोद बराबर भरोसा देता रहा है कि अनुराधा अकेली और अततः नारी ही ठहरी, वह जोर-जबर्दस्ती से हरगिज नहीं जीत सकती। फिर भी जब रिवाल्वर पाक है तो साथ ले लेना ही अच्छा है।
बाबुओं के मकान पर पूरा अधिकार करके बिजय जमकर बैठ गया। उसने दो कमरे अपने लिए रखे और बाकी कमरो में कहचरी की व्यवस्था कर दी। विनोद धोष किसी जमाने में जमींदार के यहां काम कर चुका थी. इसलिए ...और पढ़ेगुमाश्ता नियुक्त कर दिया, लेकिन झंझट नहीं मिटे। इसका कारण यह था कि गगन चटर्जी रुपये वसूल करने के बाद हाथ-से-हाथ रसीद देना अपना अपमान समझता था। क्योंकि इससे अविश्वास की गंध आती है जो कि चटर्जी वंश के लिए गौरव की बात नहीं थी, इसलिए उसके अन्तर्ध्यान होने के बाद प्रजा संकट में फंस गई है। मौखिक साक्षी और प्रमाण ले लेकर लोग रोजाना हाजिर हो रहे हैं।
इस प्रकार में आने के बाद एक पुरानी आराम कुर्सी मिल गई थी। शाम को उसी के हत्थों पर दोनों पैर पसाक कर विजय आंखें नीचे किए हुए चुरुट पी रहा था। तभी कान मं भनका पड़ी, ‘बाबू साहब?’ ...और पढ़ेखोलकर देखा-पास ही खड़े एम वृद्ध सज्जन बड़े सम्मान के साथ सम्बोधित कर रहे हैं। वह उठकर बैठ गयाय़ सज्जन की आयु साठ के ऊपर पहुंच चुकी है, लेकिन मजे का गोल-मटोल, ठिगना, मजबूत और समर्थ शरीर है। मूंछे पक कर सफेद हो गई है, लेकिन गंजी चांद के इधर-उधर के बाल भंवरों जैसे काले है। सामने के दो-चार दांतो के अतिरिक्त बाकी सभी दांत बने हुए है। वार्निशदार जूते हैं और घड़ी के सोने की चेन के साथ शेर का नाखून जड़ा हुआ लॉकेट लटक रहा है। गंवई-गांव में यह सज्जन बहुत धनाढ्य मालूम होते है। पाक ही एक टूटी चौकी पर चुरुट का सामान रखा था, उसे खिसकाकर विजय ने उन्हें बैठने के लिए कहा। वद्ध सज्जन ने बैठकर कहा, ‘नमस्कार बाबू साहब।’
कलकत्ता से कुछ साग-सब्जी, फल और मिठाई आदि आई थीं। विजय ने नौकर से रसोईघर के सामने टोकरी उतरवाकर कहा, ‘अंदर होंगी जरूर?’
अंदर से मीठी आवाज में उत्तर आया, ‘हूं।’
विजय ने कहा, ‘आपको पुकारना भी कठिन है। हमारे समाज ...और पढ़ेहोती तो मिस चटर्जी या मिस अनुराधा कहकर आसानी से पुकारा जा सकता था, लेकिन यहां तो यह बात विल्कुल नहीं चल सकती। आपके लड़को में से कोई होता तो उनमें से किसी को ‘अपनी मौसी को बुला दो’ कहकर अपना काम निकाल लिया जा सकता था, लेकिन इस समय वह भी फरार हैं। क्या कहकर बुलाऊं, बताइए?’