Path Ke Davedar book and story is written by Sarat Chandra Chattopadhyay in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Path Ke Davedar is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
पथ के दावेदार - उपन्यास
Sarat Chandra Chattopadhyay
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
अपूर्व के मित्र मजाक करते, 'तुमने एम. एस-सी. पास कर लिया, लेकिन तुम्हारे सिर पर इतनी लम्बी चोटी है। क्या चोटी के द्वारा दिमाग में बिजली की तरंगें आती जाती रहती हैं?'
अपूर्व उत्तर देता, 'एम. एस-सी. की किताबों में चोटी के विरुध्द तो कुछ लिखा नहीं मिलता। फिर बिजली की तरंगों के संचार के इतिहास का तो अभी आरम्भ ही नहीं हुआ है। विश्वास न हो तो एम. एस-सी. पढ़ने वालों से पूछकर देख लो।'
मित्र कहते, 'तुम्हारे साथ तर्क करना बेकार है।'
अपूर्व हंसकर कहता, 'यह बात सच है, फिर भी तुम्हें अकल नहीं आती।'
अपूर्व के मित्र मजाक करते, 'तुमने एम. एस-सी. पास कर लिया, लेकिन तुम्हारे सिर पर इतनी लम्बी चोटी है। क्या चोटी के द्वारा दिमाग में बिजली की तरंगें आती जाती रहती हैं?'
अपूर्व उत्तर देता, 'एम. एस-सी. की किताबों में ...और पढ़ेके विरुध्द तो कुछ लिखा नहीं मिलता। फिर बिजली की तरंगों के संचार के इतिहास का तो अभी आरम्भ ही नहीं हुआ है। विश्वास न हो तो एम. एस-सी. पढ़ने वालों से पूछकर देख लो।'
मित्र कहते, 'तुम्हारे साथ तर्क करना बेकार है।'
अपूर्व हंसकर कहता, 'यह बात सच है, फिर भी तुम्हें अकल नहीं आती।'
उपद्रव रहित एक सप्ताह के बाद एक दिन ऑफिस से लौटने पर तिवारी ने प्रसन्न होकर कहा, 'आपने सुना छोटे बाबू?'
'क्या'
'साहब का पैर टूट गया। अस्पताल में हैं। देखें बचता है या नहीं।'
'तुझे कैसे पता लगा?'
तिवारी बोला, 'मकान मालिक ...और पढ़ेमुनीम हमारे जिले का है। वह आया था किराया लेने, उसी ने बताया है।'
'हो सकता है,' कहकर अपूर्व कपड़े बदलने अपने कमरे में चला गया।
भारती हंस पड़ी। बोली, 'यदि म्लेच्छ जीवनदान दे तो उसमें कोई दोष नहीं, लेकिन मुंह में जल देते ही प्रायश्चित्त होना चाहिए।' फिर जरा हंसकर बोली, 'अच्छा, मैं जा रही हूं। अगर कल समय मिला तो एक बार देखने ...और पढ़ेयह कहकर जाते-जाते अचानक घूमकर बोली, 'और न आ सकूं तो तिवारी के अच्छा हो जाने पर उससे कह दीजिएगा कि अगर आप न आ जाते तो मैं न जाती। लेकिन म्लेच्छ का भी तो एक समाज है। आपके साथ एक ही कमरे में रात बिताने में वह लोग भी अच्छा नहीं मानते। कल सवेरे आपका चपरासी आएगा तो तलवलकर बाबू को खबर दे दीजिएगा। सब व्यवस्था करेंगे। अच्छा नमस्कार।'
थोड़ी दूर चलकर अपूर्व ने सौजन्यतापूर्वक कहा, 'आपका शरीर इतना अस्वस्थ और दुर्बल है कि इस हालत में और आगे चलने की जरूरत नहीं है। यही रास्ता तो सीधे जाकर बड़े रास्ते से मिल गया है। मैं चला जाऊंगा।'
तनिक ...और पढ़ेडॉक्टर ने कहा, 'जाने से ही क्या चला जाया जा सकता है अपूर्व बाबू! सांझ को यह रास्ता सीधा था। लेकिन रात को पठान-हब्शी इसे टेढ़ा बना देते हैं। चले चलिए।'
'यह लोग क्या करते हैं, मारपीट?'
कहते-कहते भारती की मुखाकृति कठोर और गले की आवाज तीखी हो उठी, 'इस लड़की की मां और यदु ने जो अपराध किया है वह क्या केवल इन लोगों को दंड देकर समाप्त हो जाएगा? डॉक्टर साहब को जब तक ...और पढ़ेनहीं पहचाना था तब तक मैं भी इसी तरह सोचती थी। लेकिन आज मैं जानती हूं कि इस नरककुंड में जितना पानी है उसका भार आपको भी स्वर्ग के द्वार से खींचकर ले आएगा और इस नरककुंड में डुबो देगा। आप में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि इस दुष्कृति का ऋण चुकाए बिना ही मुक्ति पा जाएं। हम लोग अपनी ही गरज से यहां आते हैं अपूर्व बाबू! यह उपलब्धि ही हम लोगों के पथ के दावे की सबसे बड़ी साधना है। चलिए।'