इस कहानी के भाग 3 में, भारती और अपूर्व के बीच बातचीत होती है। भारती हंसते हुए कहती है कि अगर म्लेच्छ किसी को जीवनदान देते हैं, तो इसमें कोई दोष नहीं है, लेकिन इसका प्रायश्चित्त होना चाहिए। वह यह भी कहती है कि अगर वह कल नहीं आ सकी, तो तिवारी को बताने के लिए कह दे कि अगर अपूर्व नहीं आता तो वह नहीं जाती। अपूर्व चिंतित है कि अगर कोई समस्या हुई तो वह कैसे संभालेगा। भारती उसे प्रोत्साहित करती है और दरवाजा खोलकर चली जाती है। अपूर्व भयभीत होकर बाहर आता है और भारती को पुकारता है, जिससे वह पलटकर उसकी तरफ देखती है। अपूर्व उससे कुछ और बात करना चाहता है।
पथ के दावेदार - 3
Sarat Chandra Chattopadhyay
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
Four Stars
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विवरण
भारती हंस पड़ी। बोली, 'यदि म्लेच्छ जीवनदान दे तो उसमें कोई दोष नहीं, लेकिन मुंह में जल देते ही प्रायश्चित्त होना चाहिए।' फिर जरा हंसकर बोली, 'अच्छा, मैं जा रही हूं। अगर कल समय मिला तो एक बार देखने आऊंगी।' यह कहकर जाते-जाते अचानक घूमकर बोली, 'और न आ सकूं तो तिवारी के अच्छा हो जाने पर उससे कह दीजिएगा कि अगर आप न आ जाते तो मैं न जाती। लेकिन म्लेच्छ का भी तो एक समाज है। आपके साथ एक ही कमरे में रात बिताने में वह लोग भी अच्छा नहीं मानते। कल सवेरे आपका चपरासी आएगा तो तलवलकर बाबू को खबर दे दीजिएगा। सब व्यवस्था करेंगे। अच्छा नमस्कार।'
अपूर्व के मित्र मजाक करते, 'तुमने एम. एस-सी. पास कर लिया, लेकिन तुम्हारे सिर पर इतनी लम्बी चोटी है। क्या चोटी के द्वारा दिमाग में बिजली की तरंगें...
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