अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम..

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हर तरफ बस एंबुलेंस के सायरन का शोर सुनायी दे रहा था,लोग बदहवास से होकर इधर उधर अपने अपनों को बचाने के लिये भाग रहे थे, पूरी पूरी रात लाइनों मे लगने के बाद भी बहुत से ऐसे लोग रह जाते थे जिन्हे ऑक्सीजन का सिलेंडर नही मिल पाता था!! जहां एक तरफ अपने प्रियजनों की उखड़ती हुयी सांसो की चिंता वहीं दूसरी तरफ ऑक्सीजन सिलेंडर ना मिल पाने की खिसियाहट, जहां देखो वहीं बस लोग आंखो मे आंसू लिये फड़फड़ाते, खिसियाये होंठो के साथ जगह जगह हाथ जोड़कर मिन्नते करते खड़े दिख रहे थे कि "भगवान के नाम पर प्लीज प्लीज बस एक सिर्फ एक ऑक्सीजन सिलेंडर दे दो लेकिन ऐसा लग रहा था मानो पूरा का पूरा मेडिकल सिस्टम, सरकारी तंत्र और सरकार फेल हो चुके थे..!!

Full Novel

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 1

हर तरफ बस एंबुलेंस के सायरन का शोर सुनायी दे रहा था,लोग बदहवास से होकर इधर उधर अपने अपनों बचाने के लिये भाग रहे थे, पूरी पूरी रात लाइनों मे लगने के बाद भी बहुत से ऐसे लोग रह जाते थे जिन्हे ऑक्सीजन का सिलेंडर नही मिल पाता था!! जहां एक तरफ अपने प्रियजनों की उखड़ती हुयी सांसो की चिंता वहीं दूसरी तरफ ऑक्सीजन सिलेंडर ना मिल पाने की खिसियाहट, जहां देखो वहीं बस लोग आंखो मे आंसू लिये फड़फड़ाते, खिसियाये होंठो के साथ जगह जगह हाथ जोड़कर मिन्नते करते खड़े दिख रहे थे कि "भगवान के नाम पर ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 2

बाबू जगदीश प्रसाद अपनी पत्नी सरोज के साथ अपने दामाद रवि के तबियत को लेकर चिंता मे डूबे सोफे बैठे ही थे कि तभी उनके फोन की रिंग बजने लगी, फोन की रिंग बजते ही उन्होने सामने टेबल पर रखा अपना फोन उठाया तो देखा कि फोन उनकी बेटी मैत्री का था, उन्होने फोन की स्क्रीन पर अपनी बेटी मैत्री का नाम देखते ही झट से फोन उठाया और फोन उठाते ही बोले- हां गुड़िया कैसी तबियत है अब दामाद जी की...? जगदीश प्रसाद अपनी बेटी मैत्री से ये सवाल करने के बाद उसके जवाब का इंतजार करने लगे ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 3

मैत्री के साथ हुये इस हादसे को पूरे 6 महीने बीत चुके थे, कोरोना की दूसरी लहर कई परिवारो खुशियो को बर्बाद करने के बाद लगभग खत्म हो चुकी थी और मैत्री पर इतनी कम उम्र मे दुखो के टूटे इस पहाड़ के बाद एक और झटका जिंदगी ने उसे दे दिया था और वो ये कि उसके ससुराल वालो ने रवि की असमय हुयी मौत के लिये उसे ही जिम्मेदार ठहरा कर उसे अपने मायके वापस जाने के लिये मजबूर कर दिया था, अब वो अपने मायके मे ही रहती थी..!! उम्र के इस पड़ाव मे अपनी इकलौती, ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 4

अगले दिन सुबह से ही जगदीश प्रसाद और सरोज के मन मे इस बात को लेकर बेचैनी थी कि कैसे मैत्री से उसकी दूसरी शादी को लेकर बात करें, वो दोनों बस एक सही मौके की तलाश मे थे पर घर के काम मे लगी हुयी मैत्री का उदास और उतरा हुआ चेहरा देखकर उनकी हिम्मत बार बार टूट सी रही थी, सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम हो गयी थी लेकिन जगदीश प्रसाद और सरोज को समझ मे नही आ रहा था कि वो मैत्री से दूसरी शादी को लेकर बात की शुरुवात कैसे करें...? फिर शाम ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 5

मैत्री को उसके बचपन की यादो को याद करके खुश होते देख जगदीश प्रसाद को लगा था कि यही मौका है मैत्री से उसकी दूसरी शादी के लिये बात करने का लेकिन शादी की बात सुनकर मैत्री ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी उसकी उम्मीद ना तो सरोज को थी ना ही जगदीश प्रसाद को!! उन्हे लगा था कि मैत्री उनकी बात को इत्मिनान से सुनेगी और शायद इस बारे मे सोचने के लिये समय मांगेगी लेकिन उसके सीधे सीधे तल्ख लहजे मे मना करने से जगदीश प्रसाद आहत से हो गये थे.. वो मैत्री को समझाते हुये बोले- ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 6

अपने ताऊ जी जगदीश प्रसाद को गोद मे उठाकर राजेश कार की तरफ भागा और उसके पीछे पीछे मैत्री सरोज भी कार की तरफ दौड़ पड़े, सरोज ने फटाफट घर का मेन गेट लॉक किया इसके बाद कार तक पंहुच कर मैत्री ने कार की पिछली सीट वाला गेट खोला तो राजेश ने बड़े आराम से बदहवास जगदीश प्रसाद को कार की पिछली सीट पर लेटा दिया इसके बाद हद से जादा घबराई हुयी मैत्री अपने पापा के सिर की तरफ बैठ गयी और उनका सिर अपनी गोद मे रख लिया और सरोज उनके पैरो की तरफ बैठ गयीं ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 7

सरोज के साथ अपने घर वापस आने के बाद नरेश अपने कमरे मे चले गये, उनकी पत्नी सुनीता ने की हिम्मत बढ़ायी और "दीदी मै थोड़ी देर मे आयी" बोलकर अपने पति नरेश के अपने कमरे मे जाने के पांच मिनट बाद वो भी अपने कमरे मे चली गयीं, सुनीता जब अपने कमरे मे गयीं तो उन्होने देखा कि नरेश अपने बेड पर पैर लटका कर सिर झुकाये बैठे हैं उनको ऐसे बैठा देखकर सुनीता उनके पास गयीं और बोलीं- मैं जानती हूं भाई साहब की तबियत देखकर आप दुखी हैं लेकिन आप परेशान मत हो वरना आपकी तबियत ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 8

अगले दिन सुबह सुबह चाय और नाश्ता लेकर सरोज और नरेश.. राजेश के छोटे भाई सुनील के साथ हॉस्पिटल गये थे, सुबह करीब साढ़े 6 बज रहे थे और हॉस्पिटल पंहुचते ही अपने पति जगदीश प्रसाद को देखने की बौखलाहट मे सरोज तेज तेज कदमों से चलकर सीधे उनके प्राइवेट वॉर्ड मे पंहुच गयीं चूंकि डॉक्टर साहब रात मे काफी देर से आये थे इसलिये घर मे किसी को पता नही चल पाया था कि डॉक्टर ने जगदीश प्रसाद की तबियत को लेकर कोई ऐसी वैसी बात नहीं कही है इसलिये सरोज और नरेश दोनो को ही जल्दी थी ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 9

मैत्री की दूसरी शादी को लेकर सब खुश थे सिवाय मैत्री के और मैत्री के खुश ना होने की साफ थी और वो ये थी कि मैत्री को लग रहा था कि अब फिर से वही सब होगा!! वही ताने तुश्की, वही सास के नखरे, वही हर समय की उलझन लेकिन परिस्थितियां जिस तरह की बन गयी थीं उन परिस्थितियों मे मैत्री के विरोध के लिये कोई जगह नही थी, मैत्री की मनस्थिति बस यही कह रही थी कि शादी के लिये "हां" बोलने के बाद खुशियो की जो धारा उसके परिवार मे बह चुकी है वो भी उसी ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 10

जॉब छोड़ने की बात को लेकर जतिन परेशान हो गया और अपने बॉस के केबिन से बाहर आकर यही कर और जादा परेशान होने लगा कि "अब मुझे क्या करना चाहिये... जॉब छोड़ना मतलब महीने की बंधी बंधायी इन्कम से हाथ धोना, लेकिन मै बिजनेस संभाल लूंगा... एक दो महीने मे सब ठीक हो जायेगा... इतने सालों से तो जॉब कर रहा हूं अच्छे खासे लोग मुझे जानते हैं... लेकिन अगर बिज़नेस मे नुक्सान हुआ तो सारा नुक्सान मुझे ही झेलना पड़ेगा... बहुत रिस्क है यार... छोड़ो जॉब ही ठीक है.... लेकिन मेरे सपनो का क्या... जॉब मे तो ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 11

अपने परिवार से मिले प्रोत्साहन से उत्साहित हुये जतिन ने अगले ही दिन ऑफिस जाकर अपने बॉस से अपना बताते हुये कहा- सर मै जॉब छोड़ने के लिये तैयार हूं पर अब मै बिज़नेस ही करूंगा..जतिन के आत्मविश्वास से भरी इस बात को सुनकर उसके बॉस ने कहा- वैरी गुड जतिन और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम कर ले जाओगे लेकिन अभी मंथली क्लोजिंग आने वाली है महीना पूरा करलो एक तारीख को जब सैलरी आ जाये तब रिज़ाइन कर लेना, बाकि रही बात इस महीने के इंसेंटिव की तो वो फुल एंड फाइनल सेटेलमेंट मे एक महीने ...और पढ़े

12

अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 12

जतिन के साथ साथ घर के सारे सदस्य खुश थे, जतिन को मिली पहली कामयाबी की वजह से घर माहौल भी बहुत अच्छा था, सबने साथ बैठकर खाना खाया उसके बाद जतिन अपने कमरे मे सोने चला गया, आज जतिन को छोटी ही सही लेकिन पहली सफलता मिली थी इसलिये उसकी आंखो में नींद बिल्कुल नहीं थी, वो आंखे बंद करके आगे की प्लानिंग कर ही रहा था कि तभी उसे किसी चीज के टूटने की आवाज आयी, ऐसा लगा जैसे उसके घर की छत पर कोई भारी चीज आकर गिरी हो, उस चीज के गिरने की आवाज सुनकर ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 13

ज्योति के सिर पर हाथ रखकर जतिन जैसे उसकी कसम खाते हुये द्रढ़निश्चय सा कर रहा था कि "बहन जो हो जाये तुझे मै काम नही करने दूंगा, अपनी पढ़ाई और अपने हुनर को साक्षात् करने के लिये तू अपनी मर्जी से जॉब करे वो अलग बात है पर जिम्मेदारियो के बोझ तले दबकर तो मै तुझे जॉब नही करने दूंगा, तेरे सिर पर जिम्मेदारियो का बोझ तो मै नही आने दूंगा फिर चाहे मुझे चौबीसों घंटे क्यों ना काम करना पड़े" ये ही सोचते सोचते जतिन ने बड़े प्यार से ज्योति और अपनी मम्मी के आंसू पोंछे और ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 14

अपने पापा को खाना खिलाने के बाद उनके ऑफिस से निकल कर घर तक के रास्ते मे जतिन यही करता रहा कि अब वो अपने बिज़नेस को आगे बढ़ाने के लिये किस तरह से काम करे जो रिजल्ट मिलना शुरू हो जायें, यही सब प्लानिंग करते करते जतिन ने सोचा कि "फील्ड पर जादा घूमने का कोई फायदा नही है वो मैं कर के देख चुका हूं तो अब दुकान पर ही मेज कुर्सी डालकर बैठता हूं क्योंकि जिस सड़क पर दुकान है वो ठीक ठाक भीड़ वाली सड़क है, दुकान पर मुझे बैठा देखकर जब लोग निकलते बढ़ते ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 15

इधर आज के दिन जतिन के साथ उसके ऑफिस मे बैठकर चाय पी रहे राजेश ने चाय पीने के कहा- अच्छा जतिन भाई मै चलता हूं अभी एक दो जगह और जाना है फिर मै लखनऊ के लिये निकलूंगा...राजेश की बात सुनकर जतिन ने कहा- चलिये मै नीचे तक छोड़ देता हूं आपको, मुझे भी कुछ काम है मै वो भी कर लूंगा....इसके बाद जतिन और राजेश ऑफिस के पास बनी सीढ़ियो से होते हुये नीचे की तरफ आने लगे, सीढ़ियो से नीचे उतरते हुये जतिन की नजर अपने सीमेंट के गोदाम मे काम करने वाले एक मजदूर पर ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 16

अपने ताऊ जी से बात करने के बाद राजेश ने अपने छोटे भाई सुनील से कहा - सुनील तुम घर चले जाओ और मैत्री को भी अपने साथ ले जाओ, तुम दोनों सुबह से यहां पर हो अब मैं रुक जाता हूं ताऊ जी के साथ...राजेश की ये बात सुनकर सुनील ने कहा- नही भइया आप कल से बहुत भागदौड़ कर रहे हो इसलिये आज रात मै रुकूंगा और आप मैत्री को घर ले जाओ क्योकि ताई जी रात में रुकने की बात कह के दोपहर मे ही आराम करने घर चली गयी थीं तो आप बस रात मे ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 17

अगले दिन जहां एक तरफ राजेश कानपुर जाकर जतिन से मैत्री की बात करने वाला था वहीं दूसरी तरफ के घर मे भी उसके मम्मी पापा उसकी शादी को लेकर एक जगह रिश्ते की बात चला रहे थे लेकिन अभी तक सिर्फ कुंडली मिलवायी गयी थी और फोटोज़ एक दूसरे के घर भेजी गयी थीं, जतिन और उस लड़की श्वेता का मिलना अभी बाकी था |जहां एक तरफ श्वेता की फोटो देखकर जतिन की मम्मी बबिता, उसके पापा विजय और बहन ज्योति ने उसे पसंद कर लिया था वहीं दूसरी तरफ जतिन ने भी सबकी मर्जी को अपनी मर्जी ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 18

मैत्री की फोटो देखकर जतिन जैसे मैत्री के चेहरे की मासूमियत मे खो सा गया था, इधर राजेश अपनी किये जा रहा था लेकिन जतिन को जैसे कुछ सुनाई ही नही दे रहा था, राजेश ने अपनी बात कहते कहते जतिन को आवाज लगाते हुये कहा- जतिन... जतिन...!! राजेश की आवाज सुनकर जतिन ऐसे चौंक के उसकी तरफ देखने लगा जैसे वो किसी गहरे खयाल मे खोया हुआ हो, राजेश के आवाज लगाने पर अपने होश मे वापस आये जतिन ने गहरी सांस ली और अपनी कुर्सी से टेक लेकर बैठ गया और राजेश की तरफ उसका मोबाइल बढ़ाते ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 19

अपने पति सागर से जतिन के बारे मे सुनने के बाद ज्योति मन मे अपने भइया जतिन की चिंता उसके कमरे मे चली गयी, जतिन के कमरे मे जाने के बाद ज्योति ने देखा कि कमरे मे आने के बाद से अभी तक जतिन ने अपने कपड़े नहीं बदले थे और अपने माथे को अपनी एक बांह से छुपाये बिस्तर की टेक लेकर और पैर नीचे की तरफ करके बैठा हुआ था बिल्कुल ऐसे जैसे कोई बहुत बड़ी समस्या जतिन के जीवन मे आ गयी हो लेकिन वो किसी से बता ना पा रहा हो, ज्योति ने देखा कि ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 20

सागर के जाने के बाद विजय, बबिता और ज्योति के साथ जतिन भी घर के अंदर चला आया, घर अंदर आने के बाद सब लोग ड्राइंगरूम मे ही बैठ गये, रात के करीब साढ़े दस बज चुके थे और जहां एक तरफ बबिता और विजय हल्के मूड में थे और ज्योति से बात कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ मन मे अजीब सी बेचैनी लिये जतिन अपना मोबाइल हाथ मे पकड़े कभी मोबाइल की तरफ देखता और कभी कुछ बोलने की कोशिश करता लेकिन फिर गहरी सांस खींचकर चुप होके बैठ जाता और मोबाइल देखने लगता..!! वो बार बार ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 21

बबिता के गुस्से से पैर पटकते हुये अपने कमरे में जाने के बाद ज्योति भी जतिन के कमरे में लगी लेकिन विजय.. जतिन की चिंता मन मे लिये अपनी जगह पर ही बैठे बैठे बबिता को ऐसे गुस्से से वहां से जाते हुये देखते रह गये... इधर जतिन के कमरे मे जाने के बाद ज्योति ने देखा कि जतिन अपने कमरे मे आ तो गया था लेकिन ना तो वो बिस्तर पर अभी तक लेटा था और ना ही उसने बेड की बैक पर टेक ले रखी थी, वो अपने पैर लटका कर अपना सिर झुकाये अपने बिस्तर पर ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 22

जतिन के कमरे से बाहर आने के बाद बबिता चुपचाप अपने कमरे मे चली गयीं और अपने कमरे मे के बाद उन्होने देखा कि विजय बिस्तर पर पैर लटकाये हुये बैठे हैं ऐसे जैसे उनके जतिन के कमरे से आने का इंतजार कर रहे हों, उनके बगल मे बैठ कर बबिता ने कहा- आप भी खुश हो लीजिये, बोल दिया है आपके प्यारे बेटे से कि राजेश को अपने परिवार के साथ घर बुला ले... बबिता की खिसियाहट मे की गयी इस बात का जवाब देते हुये विजय ने कहा- वो तुम्हारा भी बेटा है, ये "अपने बेटे" कहने ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 23

जतिन और मैत्री के इस रिश्ते से दोनो परिवारो के सब लोग खुश थे सिवाय दो लोगो के... एक की मम्मी बबिता जो जतिन की शादी श्वेता से करवाना चाहती थीं और दूसरी मैत्री जो इसलिये खुश नही थी क्योकि वो अपनी पहली शादी के कड़वे अनुभवो को फिर से अपनी आंखो के सामने होते हुये देख रही थी लेकिन नियति ने एक झटके मे जो खेल खेला था उस खेल ने मैत्री को भले बेमन से पर जतिन के साथ जिंदगी बिताने की तरफ एक कदम आगे बढ़ा दिया था...राजेश की जतिन से मैत्री के रिश्ते के लिये ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 24

जहां एक तरफ राजेश और उसके घरवालो के वापस लखनऊ जाने के बाद जतिन के घर का माहौल बहुत हो गया था वहीं दूसरी तरफ लखनऊ पंहुच कर मैत्री की मम्मी सरोज ने जब कानपुर मे जतिन के घर पर हुयी सारी बात अपने पति जगदीश प्रसाद को बतायी तो वो भी बहुत खुश हुये, मैत्री भी वहीं पास ही बैठी सारी बाते सुन रही थी... अपनी बात बताते हुये सरोज ने कहा- जतिन बहुत अच्छा लड़का है इतने अच्छे से और इतने सम्मानजनक तरीके से उसने हम सब से बात करी कि दिल खुश हो गया... (खुश होकर ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 25

जतिन के साथ बातचीत करके तय कार्यक्रम के हिसाब से शनिवार की रात सागर कानपुर रेल्वे स्टेशन से सीधे ससुराल आ गये, सागर जब घर आये तो सबने देखा कि उनके हाथ मे मिठाई का एक डिब्बा था और वो खुशी से झूमते हुये से घर के अंदर आ रहे थे, घर के अंदर आने के बाद जब उन्होने जतिन को देखा तो तेज तेज कदमो से चलकर जतिन के पास गये और उसे गले लगाते हुये बोले- बहुत बहुत बहुत... बहुत सारी शुभकामनाएं भइया, आपका फोन आने से पहले ही ज्योति ने मुझे सारी बाते फोन करके बता ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 26

जतिन और उसके परिवार के मैत्री के घर के अंदर आने के बाद वहां का माहौल बहुत खुशनुमा हो था चूंकि राजेश और जतिन अच्छे दोस्त थे तो दोनो के बीच मे कोई भी हिचक नही थी इसलिये दोनो एक दूसरे से हंसी मजाक करते हुये ही घर के अंदर आये थे, अंदर आने के बाद राजेश ने जतिन से पूछा- और बताओ जतिन भाई, घर ढूंढने मे कोई दिक्कत तो नही हुयी ना... जतिन ने कहा- नहीं नहीं कोई दिक्कत नही हुयी गूगल देवता ने हमे यहां आराम से पंहुचा दिया... जतिन की बात सुनकर राजेश हंसने लगा ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 27

जहां एक तरफ सरोज अपने साथ मैत्री को लेकर ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ रही थीं वहीं दूसरी तरफ ड्राइंगरूम बैठे सब लोग आपस मे बातचीत कर रहे थे लेकिन इन सब लोगों के बीच में बैठे जतिन के मन में बेचैनी थी, बेचैनी मैत्री से पहली बार मिलने की... बेचैनी मैत्री को पहली बार अपने सामने देखने की और बेचैनी होती भी क्यो नही भगवान ने पहले दिन से ही मैत्री के लिये उसके दिल में ना सिर्फ ढेर सारा प्यार भर दिया था बल्कि खुद भगवान ने ही जतिन और मैत्री को एक करने के लिये सारे रास्ते ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 28

सबके कहने पर जतिन और मैत्री एक दूसरे से बात करने के लिये उस कमरे मे चले गये जहां से ही नेहा और सुरभि ने उन दोनो के लिये चाय, नाश्ते की व्यवस्था करी हुयी थी, अंदर कमरे मे जाने के बाद मैत्री जो पहले से ही इस रिश्ते को लेकर बहुत असहज थी.. वहां पड़ी दो कुर्सियो मे से एक की तरफ इशारा करते हुये जतिन से बहुत धीरे से अपनी महीन आवाज मे बोली- बैठ जाइये...मैत्री के बैठने के लिये कहने पर जतिन ने भी मैत्री से थोड़ा संकुचाते हुये कहा- आप भी बैठिये...कुर्सी पर दोनो लोगो ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 29

ज्योति के अपने कमरे मे आने की बात सुनकर मैत्री अपने पिछले जीवन से जुड़ी बातो के बारे मे कर परेशान हो ही रही थी कि तभी उसके कमरे मे थोड़े दबे कदमो से चलकर मुस्कुराते हुये ज्योति अंदर आ गयी, मैत्री ने जब ज्योति को देखा तो वो सकपका गयी और संकुचाई हुयी नजरों से झेंपती हुयी सी हंसी हंसते हुये ज्योति की तरफ देखने लगी, मैत्री ने देखा कि ज्योति के हाथ मे रैक्सीन का बड़ा सा बैग है और वो मैत्री की तरफ देखकर बहुत खुश हो रही है!! ज्योति को इस तरह से मुस्कुरा कर ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 30

मैत्री के घर से कानपुर के लिये निकलने के थोड़ी देर बाद कानपुर के रास्ते में कार चला रहे के बगल में बैठे सागर ने राहत की लंबी सांस छोड़ते हुये उससे कहा- आज मुझे बहुत सुकून मिल रहा है, भइया आपकी पसंद यानि हमारी होने वाली भाभी जी बहुत अच्छी हैं आप दोनो एकदम आदर्श जोड़ी लग रहे थे...सागर की बात पूरी होने के बाद मजाकिया लहजे में जतिन की टांग खींचते हुये ज्योति ने कहा- और क्या तभी तो भइया दीवाने हुये जा रहे थे... हैना भइया!!ज्योति की बात सुनकर जतिन ने हंसते हुये कहा- अच्छा जी... ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 31

जतिन और उसके परिवार के लखनऊ से लौटने के बाद उसी दिन शाम को सरोज ने बबिता को सगाई संबंध मे़ की गयी सारी प्लानिंग के बारे में बता दिया जिसपर जतिन और उसके परिवार ने भी सहमति दे दी थी इसके बाद दोनों ही घरों में एक हफ्ते के बाद होने वाली जतिन और मैत्री की सगाई की तैयारियां शुरू हो गयीं!! जहां एक तरफ जतिन के घर में सब लोग मैत्री के लिये अच्छी से अच्छी चीजें खरीद रहे थे वहीं दूसरी तरफ मैत्री के घरवाले भी जतिन और उसके परिवार के लिये कुछ भी खरीदने में ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 32

जतिन का रोका शुरू करने के लिये राजेश.. जतिन के सामने आकर बैठ गया था चूंकि राजेश और जतिन से ही अच्छे दोस्त थे तो उनके बीच में वो जीजा साले वाला शुरुवाती संकोच नहीं था लेकिन उन दोनों के मन में दोस्ती से अलग इस नये रिश्ते के प्रति संजीदगी जरूर थी... रोके के लिये आमने सामने बैठने के बाद राजेश ने मजाकिया लहजे में जतिन से कहा- और जीजा जी... कहीं कोई कमी तो नहीं लग रही है सब ठीक है ना...? राजेश के मुंह से अपने लिये "जीजा जी" शब्द सुनकर जतिन हंसने लगा और उसी ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 33

अपने कमरे में बैठी मैत्री सगाई की रस्म के लिये ड्राइंगरूम में जाने का इंतजार कर ही रही थी तभी उसके कमरे में उसकी दोनो भाभियां नेहा और सुरभि उसे लेने के लिये आ गयीं, अपनी तकलीफ को अपने दिल में दबाये हुये मैत्री थोड़ी खिसियायी हुयी सी थी, नेहा ने कमरे में आने के बाद जब उसे देखा तो वो समझ गयी कि मैत्री का मन थोड़ा व्यथित सा है इसलिये मैत्री के चेहरे के भाव देखकर नेहा ने उससे पूछा - दीदी आप ठीक तो हो ना? मैत्री जो पहले से ही बहुत परेशान थी.. नेहा के ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 34

जतिन के इतना संजीदा गाना गाने पर कमरे में जैसे सन्नाटा सा छा गया था, जिस तकलीफ और जिन को मैत्री ने अपनी आंखों में बड़ी मुश्किल से कैद किया था वो लाख कोशिशें करने के बाद भी उसकी काजल लगी आंखों से बरबस ही बाहर आने लगे थे, बिल्कुल शांत हो चुके उस कमरे में मैत्री की सुबकियां मानो गूंज सी रही थीं....!! जतिन का गाना सुनने के बाद मैत्री की सुबकियों की दर्द भरी आवाज ने नेहा और सुरभि को भी बहुत भावुक कर दिया था, उन दोनों ने जैसे तैसे अपने आंसुओ को अपनी आंखों में ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 35

जहां एक तरफ नरेश और उनका परिवार जगदीश प्रसाद और सरोज से विदा लेकर अपने घर चले गये थे दूसरी तरफ कानपुर के रास्ते में कार चला रहे जतिन ने अपने बगल में बैठे अपने बहनोई सागर से पूछा- सागर जी आप कहां गायब थे जब मैत्री की भाभियां मुझे अंदर ले जा रही थीं तब मैंने बहुत देखा आपको पर आप कहीं दिखे ही नहीं, बिल्कुल अकेला पड़ गया था मैं वहां पर...जतिन की बात सुनकर विजय बोले- सागर जी और सुनील की काफी अच्छी जम रही थी, दोनों साथ में ही थे....विजय की बात सुनकर सागर ने ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 36

अगले दिन सुबह राजेश और नेहा दोनो रात की बनायी प्लानिंग के हिसाब से अपने ताऊ जी जगदीश प्रसाद घर पंहुच गये, उनके घर मे अंदर जाने के बाद अपने ताऊ जी और ताई जी के पैर छूकर राजेश ने मैत्री को आवाज लगाते हुये कहा- मैतू...और आवाज लगाते हुये किचेन की तरफ जाने लगा... राजेश किचेन के दरवाजे तक पंहुचा ही था कि उसकी आवाज सुनकर मैत्री ने उसे आवाज लगायी- जी भइया...किचेन के अंदर जाते ही राजेश ने बड़े प्यार से मैत्री से कहा- अरे वाह बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है... राजेश की बात सुनकर खुश ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 37

जतिन और मैत्री की शादी वाला बहुप्रतीक्षित दिन आखिरकार आ ही गया था, बारात जतिन के निवास स्थान साकेत कानपुर से निकल चुकी थी... जहां एक तरफ जतिन अपनी कार मे अपनी गर्भवती बहन ज्योति, सागर, अपनी मम्मी बबिता और मौसी के साथ था वहीं दूसरी तरफ उसके सारे रिश्तेदार जिनमें जतिन के पापा, मामा, मामी, बुआ, फूफा, मौसा, मौसी और इन सबके बच्चे ... मेरठ मे रहने वाले उसके चाचा चाची और लोकल मे रहने वाले उसकी और उसके परिवार की जान पहचान वाले संबंधी सारे लोग एक लग्जरी एसी बस मे बैठकर लखनऊ के लिये रवाना हो ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 38

आज भले ही दुल्हन की तरह सजते संवरते हुये मैत्री को अपने स्याह अतीत की याद आ रही थी ब्यूटीपार्लर मे शीशे के सामने बैठी मैत्री अपने आप को एकटक देखे जा रही थी... वो खुद अपने आपको आज फिर से दुल्हन की सजावट मे देखकर हद से जादा भावुक हो रही थी... हर लड़की की तरह मैत्री को भी सुहागन का चोला बहुत प्यारा था जो नियति के क्रूर हाथों ने उससे छीन लिया था... वो मैत्री आज शीशे मे अपने आप को फिर से उसी सुहागन के चोले मे देखकर मानो विश्वास ही नही कर पा रही ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 39

अपनी दोनो भाभियो नेहा और सुरभि के साथ मैत्री हाथो मे वरमाला लिये धीरे धीरे स्टेज की तरफ बढ़ थी... मैत्री को उस खानदानी साड़ी मे सजा संवरा देखकर ज्योति से रहा नही गया और वो धीरे धीरे चलकर मैत्री के पास जाने लगी... वैसे तो मैत्री बहुत घबरायी सी, शर्मायी सी नीचे की तरफ ही देख रही थी लेकिन बीच बीच मे वो नजरे ऊपर करके आसपास देख लेती थी.. ऐसे ही जब उसने अपनी शर्मायी हुयी नजरो को एक बार ऊपर उठाया तो उसने देखा कि उसकी ननद ज्योति बहुत ही खुश होकर हंसते हुये उसकी तरफ ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 40

सारे मेहमानो और परिवार के लोगो का खाना पीना होने के बाद जतिन और उसके मम्मी पापा समेत ज्योति सागर जनवासे मे थोड़ा आराम करने और कपड़े बदलने के लिये चले गये.... इधर मैत्री भी मैरिज लॉन मे बने कमरो मे से एक कमरे मे अपनी दोनो भाभियो के साथ फेरो के लिये अपनी ड्रेस बदलने के लिये चली गयी... इधर मैत्री की मम्मी सरोज जो अभी तक मैत्री के साथ थीं उसके कमरे मे जाने के बाद जब उस कमरे मे गयीं जहां पहले से मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद अकेले बैठे थे... तो उन्होने देखा कि जगदीश ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 41

जहां एक तरफ जतिन अपने मन मे मैत्री को आठवां वचन दे रहा था वहीं दूसरी तरफ मैत्री भी सात वचनो के बाद जो जतिन ने मैत्री को दिये थे.. अपने मन से जतिन को आठवां वचन दे रही थी... मैत्री अपने मन मे वचन दे रही थी कि "मै आपका हमेशा ध्यान रखुंगी, एक अर्धांगिनी के तौर पर मै अपने सारे कर्तव्यो का पालन करूंगी, मै अपनी सासू मां, ससुर जी की पूरी निष्ठा और सच्ची श्रद्धा के साथ सेवा करूंगी, मै अपने इस नये परिवार को प्रेम के एक ही सूत्र मे बांध कर रखूंगी, किसी पराये ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 42

सारी रस्मे पूरी होने के बाद जतिन, उसके परिवार और बाकि के मेहमानो को चाय और नाश्ता करवाया गया... नाश्ता करने के बाद बारी आयी उस रस्म की जिसने पिछले दो तीन दिनो से मैत्री और उसके परिवार वालो खासतौर पर उसके पापा जगदीश प्रसाद और मम्मी सरोज को बेहद भावुक किया हुआ था... मैत्री की एक बार फिर से विदाई होने वाली थी.... मन पर पत्थर रखकर जगदीश प्रसाद ने अपने आंसुओ को जैसे तैसे अपनी आंखो मे रोका तो हुआ था लेकिन रात से ही बार बार मैत्री के दूर जाने के खयाल से वो सबसे छुप ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 43

मैत्री की कार आंखो से ओझल होने के बाद नेहा और सुरभि समेत बाकी के घरवाले मैरिज लॉन के आ गये... जतिन तो अपनी अर्धांगिनी मैत्री को लेकर कानपुर के लिये निकल गया था लेकिन बारात वाली बस अभी भी वहीं खड़ी थी... सारे बाराती बस मे बैठ चुके थे लेकिन जतिन के पापा विजय अभी भी मैरिज लॉन मे अपने छोटे भाई के साथ ही थे.... मैत्री के जाने के बाद उसके परिवार के हर सदस्य के चेहरे उतरे हुये थे... आंखो मे आंसू थे... और माहौल एकदम शांत था.... ऐसा लग रहा था मानो मैत्री अपने साथ ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 44

जहां एक तरफ मैत्री का मन सुहागरात के नाम पर बहुत घबरा रहा था, वो बहुत असहज महसूस कर थी... वही दूसरी तरफ जतिन का मन उस एहसास को महसूस करके बहुत खुश था जो मैत्री के उसके जीवन मे आने पर उसे मिल रहा था.... वैसे तो जतिन हमेशा से एक जिम्मेदार इंसान था और बड़ी जिम्मेदारी के साथ उसने अपने पूरे परिवार को समय से पहले ही संभालना शुरू कर दिया था लेकिन आज उसे अपने कंधो पर मैत्री को लेकर एक अजीब सी ही जिम्मेदारी का एहसास हो रहा था...अपनी अर्धांगिनी मैत्री के अपने पास होने ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 45

जतिन के कहने पर मैत्री आराम करने के लिये लेट तो गयी लेकिन प्यार की चाशनी मे डूबी जतिन बातो का रस मैत्री को एक अलग ही खुशी दे रहा था, उसकी आंखो से नींद और शरीर से थकान पूरी तरह जा चुकी थी... सोने के लिये आंखे बंद करते ही उसे वो दिन याद आने लगा जब रवि से शादी से पहले उसके लिये लड़के देखे जा रहे थे.... चूंकि मैत्री स्वभाव से सीधी और अपने मम्मी पापा की हर बात मानने वाली उनकी प्यारी, संस्कारी और सुलझी हुयी लड़की थी इसलिये वो उनके किसी भी फैसले का ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 46

ज्योति तो सागर के साथ घर से विदा हो गयी लेकिन जतिन की बातो से पहले से ही उसके अपने दिल मे प्यार महसूस कर रही मैत्री के दिल मे उस प्यार को और गहरा कर गयी... वो बात बता कर जब जतिन ने पहली बार मैत्री का फोटो देखा था... ज्योति और सागर के जाने के बाद सब लोग घर के अंदर चले आये, ज्योति चूंकि काफी दिन अपने मायके मे रहकर गयी थी इसलिये उसके जाने से घर बहुत सूना हो गया था और वो सूनापन बबिता, विजय और जतिन के चेहरे पर साफ साफ दिख रहा ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 47

हंसी खुशी के माहौल मे सब लोग ड्राइंगरूम मे बैठे मैत्री के हाथ की बनी स्वादिष्ट खीर खा ही थे कि तभी जतिन के फोन पर किसी का फोन आया... जतिन ने बगल मे ही रखे अपने फोन को पलट के देखा तो पाया कि फोन मैत्री के पापा और उसके ससुर जगदीश प्रसाद का है... "बाउ जी का कॉल है" कहते हुये जतिन ने मैत्री की तरफ देखा और फोन रिसीव करके बोला- नमस्ते बाउ जी....जगदीश प्रसाद ने कहा- नमस्ते जतिन बेटा, क्या हालचाल हैं वहां सबके...?जतिन ने बड़ी ही सौम्यता से जवाब दिया- यहां सब ठीक हैं ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 48

हंसी खुशी दो दिन बीतने के बाद यानि चौथी के दिन पहले से तय कार्यक्रम के हिसाब से राजेश, नेहा और सुरभि पग फेरे कराने के लिये मैत्री को लेने कानपुर उसकी ससुराल आ गये, आज चूंकि मैत्री को लखनऊ जाना था और मेहमान आ रहे थे इसलिये जतिन भी ऑफिस नही गया था...घर मे आने के बाद जहां एक तरफ राजेश समेत सभी मेहमानो ने बबिता और विजय के पैर छूकर आशीर्वाद लिया वहीं दूसरी तरफ बबिता, विजय और जतिन ने भी बहुत ही हर्षित तरीके से सारे मेहमानो का स्वागत किया.... मेहमानो के घर मे आने के ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 49

मायके मे सबसे मिलने के थोड़ी देर बाद मैत्री ने कहा- मै कानपुर मम्मी जी को कॉल करके बता हूं कि मै घर पंहुच गयी उन्होने कहा था कि पंहुच कर फोन कर देना.... उन्हे चिंता हो रही होगी...मैत्री के ऐसा कहने पर वहां खड़े सब लोग खासतौर पर सरोज और जगदीश प्रसाद मुस्कुराने लगे ये सोचकर कि रवि से शादी के बाद जब मैत्री विदा होकर आयी थी तो उसके चेहरे पर असंतुष्टि और घबराहट साफ दिख रही थी लेकिन इस बार अपनी सास बबिता का जिक्र करके उसके चेहरे पर उनसे बात करने का उतावला पन और ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 50

रात के दस बज चुके थे... जैसे जैसे घड़ी की सुइयां आगे बढ़ रही थीं वैसे वैसे जतिन और दोनो के दिलो मे एक दूसरे से बात करने की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.... जहां एक तरफ मैत्री अपनी मम्मी, चाची, नेहा और सुरभि से बात करती जा रही थी और बार बार फोन पलट के टाइम देखती जा रही थी और मन ही मन मना रही थी कि "जतिन जी टाइम होता जा रहा है प्लीज कॉल करिये ना... प्लीज" इधर दूसरी तरफ जतिन की नजर भी अपने मोबाइल की घड़ी पर टिकी हुयी थी जो हर थोड़ी ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 51

जहां एक तरफ मैत्री जतिन की यादो मे खोयी हुयी अपनी मम्मी सरोज से लिपट कर सो रही थी दूसरी तरफ दूसरे कमरे मे राजेश के सीने पर सिर रखकर लेटी नेहा ने राजेश से कहा- आज पूरा दिन कितना अच्छा निकला ना...राजेश ने कहा- हां... शादी से पहले तो जादा बात नही हो पायी थी जतिन के घरवालो से लेकिन आज इत्मिनान से आमने सामने बैठकर बात करके बहुत अच्छा लगा....नेहा ने कहा- हां... आंटी जी तो बहुत ही हंसमुख हैं, बिल्कुल लगा ही नही कि मैत्री दीदी की ससुराल मे बैठे हैं हम लोग, बहुत ही सकारात्मक ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 52

चूंकि मैत्री जतिन और अपने सास ससुर की दिनचर्या जानती थी इसलिये उसने उसी हिसाब से सुबह सात बजे अपनी सास बबिता को फोन कर दिया और कहा- नमस्ते मम्मी जी.. चरण स्पर्श, मम्मी जी क्या कर रही थीं आप...बबिता ने कहा- सदा सुखी रहो बेटा, बेटा मै रसोई मे सबके लिये नाश्ता बना रही थी... और बताओ सारी तैयारी हो गयी वापस आने की?मैत्री ने कहा- हां जी सारी पैकिंग हो गयी है, मम्मी जी पापा और मम्मी आपसे और पापा जी से बात करना चाहते हैं...बबिता ने खुश होते हुये कहा- अच्छा अच्छा... लाओ बात करा दो...बबिता ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 53

जहां एक तरफ मैत्री खुशी खुशी अपनी दोनो भाभियो के साथ रसोई मे खाना बनाने चली गयी थी वहीं तरफ जतिन नाश्ता करके अपने मम्मी पापा के साथ लखनऊ के लिये निकल चुका था, कानपुर से निकल कर रास्ते मे पड़ने वाले उन्नाव शहर को पार करने के बाद जैसे ही जतिन ने लखनऊ बॉर्डर पर "लखनऊ नगर मे आपका स्वागत है" लिखा बोर्ड देखा वैसे ही उसका मन मैत्री से मिलने के लिये और जादा बेचैन हो उठा, वो कार चला तो रहा था पर उसका ध्यान सड़क पर कम मैत्री की तरफ जादा था... जतिन मैत्री से ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 54

शाम को लखनऊ से निकलकर कानपुर पंहुचते पंहुचते रात के करीब आठ बज गये थे, घर के अंदर जाने बाद जतिन ने सबसे कहा- देर हो चुकी है... सब लोग थके हुये भी हैं तो मै एक काम करता हूं, मै बाहर से खाना ऑर्डर कर देता हूं....जतिन के ऐसा कहने पर मैत्री धीरे से बोली- मै बना देती हूं ना, मुझे थकान नही हो रही है...मैत्री की बात सुनकर बबिता ने कहा- नही बेटा आज रहने दो कल से तुम्ही रसोई संभालना मेरे साथ, आज तुम भी आराम करलो...संस्कारी मैत्री चूंकि बड़ो की बात नही काटती थी इसलिये ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 55

मैत्री की बनायी रंगोली देखकर जहां एक तरफ बबिता और विजय बेहद खुश थे ये सोचकर कि मैत्री कितनी है और कितना अच्छा हुनर है इसके अंदर वहीं दूसरी तरफ मैत्री का अपने नये घर के प्रति, नये परिवार के प्रति समर्पण और जिम्मेदारी से चीजो को करने का तरीका जतिन को एक अलग ही खुशी दे रहा था... सब लोगो से अपने काम की तारीफें सुनने के बाद मैत्री ने बबिता से कहा- मम्मी जी आप और पापा जी पूजा कर लीजिये.... नाश्ता लगभग तैयार ही है... पूजा करके फिर नाश्ता कर लीजियेगा...मैत्री की बात सुनकर बबिता ने ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 56

जतिन के ऑफिस जाने के बाद अपने कमरे मे बैठे बबिता और विजय बाते कर रहे थे.... बाते करते बबिता ने अपने पति विजय से कहा- मुझे बड़ी चिंता होती थी कभी कभी ये सोचकर कि जतिन की शादी जिस किसी भी लड़की के साथ होगी वो पता नही हमारे तौर तरीके सीख पायेगी भी या नही, पता नही उसका हमारे लिये व्यवहार कैसा होगा.... वैसे भी आजकल की जादातर लड़कियों को सास ससुर के साथ रहना पसंद नही है ऐसे मे ऐसी सोच वाली बहू आ जायेगी तो बुढ़ापे मे हमारा क्या होगा... और हमारा बेटा जतिन जो ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 57

कोई और खाने के बर्तन ना उठा ले ये सोचकर मैत्री ने जल्दी जल्दी खाके अपना खाना खत्म कर और इस इंतजार मे बैठ गयी कि सबका खाना पूरा हो जाये तो वो ही सबके बर्तन उठाकर रसोई मे रखे.... कोई और ना रखे.... लेकिन हुआ कुछ ऐसा कि मैत्री के बाद सबसे पहले विजय ने खाना खत्म किया और अपनी खाने की झूटी प्लेट उठाकर अपनी जगह से उठने लगे... उन्हे अपने बर्तन उठाते देख मैत्री ने कहा- पापा जी बर्तन मुझे दे दीजिये... मै ले जाउंगी...विजय ने प्यार से कहा- अरे कोई बात नही बेटा... मुझे हाथ ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 58

जतिन से मिले प्यार और साथ ने मैत्री को इतना भावुक कर दिया कि जिन बातो को उसने अपने मे दफन किया हुआ था और जिन बातो की वजह से वो खुलकर जी नही पा रही थी और जतिन के भी करीब नही आ पा रही थी आज वो बाते मैत्री रोते हुये एक एक करके अपने अर्धांग जतिन को बताते हुये बोली- "शादी मे फेरो तक उन लोगो का व्यवहार बहुत अच्छा तो नही कह सकते पर ठीक था... फेरो के बाद अचानक से रवि की मम्मी का मुंह चढ़ गया फिर जूता चुराई पर भी उन्होने मेरी ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 59

जतिन के मैत्री को टटोलते हुये पूछने पर अपने आंसू पोंछते हुये रुंधे हुये गले से मैत्री ने कहा- बाद हर काम मे टोका टाकी शुरू हो गयी उनकी... "ये काम ऐसे क्यो किया, इसे ऐसे करना चाहिये था.. इसे ऐसे ही रहने दो... जादा अपने हिसाब से काम करने की कोशिश मत करो, मुझसे पूछे बिना किसी काम मे हाथ मत लगाया करो" ये सारी चीजे रोज की बात हो गयीं... शादी के करीब पांच दिन बीत चुके थे पर रवि की मम्मी ने पगफेरो के लिये मुझे अपने मायके भेजने का जिक्र भी नही किया था.... मेरा ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 60

अपने अतीत से जुड़ी हुयी बातो को अपने पति जतिन से बताते हुये मैत्री ने आगे कहा- रवि और लोगो के जाने के बाद मै और अंकिता घर के अंदर चले आये... अंदर आने के बाद मैने सोचा कि अब तो कहीं जाना नही है तो कपड़े बदल लेती हूं और घर की साड़ी पहन लेती हूं.... ये सोचकर जब मै अपने कमरे मे गयी तो मेरे पीछे पीछे अंकिता भी कमरे मे आ गयी.... तो मैने अंकिता से कहा- दीदी बस दो मिनट का टाइम दे दीजिये मै अभी अपने कपड़े बदल कर आयी... तब तक आप अपने ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 61

जतिन के पूछने पर कि "कैसा छलावा?" मैत्री ने कहा- रवि चूंकि फार्मा कंपनी मे रीजनल मैनेजर थे इसलिये लखनऊ के अस्पतालों मे बहुत अच्छी जान पहचान थी और मुझे उठाकर वो एक ऐसे ही किसी अस्पताल ले गये जहां के मेन डॉक्टर रवि के बहुत अच्छे दोस्त थे, जब वो लोग मुझे अस्पताल ले गये तब मुझे हल्का हल्का होश था.... वहां जाकर मुझे आईसीयू मे एडमिट किया गया और तुरंत मेरा इलाज शुरू किया गया, मेरी तबियत काफी बिगड़ गयी थी इसलिये दवाइयों के बहुत हैवी डोज़ के इंजेक्शन लगाये गये थे जिसकी वजह से मै दवाइयो ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 62

जतिन के सीने से लगे लगे मैत्री उस पल को याद करते हुये रो रही थी जब उसने अपनी से अपने पूर्व पति रवि का अंतिम संस्कार होते देखा था, उस पल की यादें उसकी आंखो के सामने जैसे नाचने लगी थीं.... थोड़ी देर तक जतिन के सीने से लगे लगे रोने के बाद मैत्री अपने आंसू पोंछते हुये जतिन से अलग हुयी और सुबकते हुये बोली- रवि जब जिंदा थे तब उन्होने मुझसे कहा था कि रोहित अगर कहीं खड़ा दिख जाये तो या तो उधर जाना ही मत और अगर जाना तो कम से कम दस हाथ ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 63

ट्रेन के गुजरने के बाद मै रोते हुये थोड़ी देर वहीं पटरियो के पास खड़ी रही और सोचती रही "मै आज कितनी बड़ी गलती करने जा रही थी, मै इतनी सेल्फिश कैसे हो गयी कि इतना बड़ा कदम उठाने से पहले मैने अपने मम्मी पापा और बाकी सब लोगो के बारे मे नही सोचा..." थोड़ी देर बाद रेल्वे ट्रैक के आसपास पड़ी चुभने वाली रोड़ियो से होते हुये मै वहां से दूर आ गयी, वहां से दूर आकर मैने एक नल देखा... मुझे बहुत जोर से प्यास लग रही थी, मेरी सिर भारी हो रहा था... उस नल को ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 64

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये मैत्री ने कहा-- रोते रोते घर के अंदर आने के बाद मै अपने मे गयी और पेट के बल लेटकर अपनी किस्मत को कोसते हुये रोने लगी,मेरे पीछे पीछे घर के अंदर आयीं दोनो भाभियां मेरे पास आयीं और उसके बाद नेहा भाभी ने बड़े प्यार से मुझे थोड़ा सा उठाकर अपनी गोद मे लिटाया और मेरे आंसू पोंछते हुये बोलीं- दीदी हिम्मत रखिये... ये वक्त भी गुजर जायेगा, जितने भी आंसू बहे हैं ना आपकी आंखो से उसकी हजार गुना जादा खुशियां मिलेंगी आपको... ऐसे मत दुखी हो आप....नेहा भाभी की बात ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 65

मन मे दबी हुयी बातें जो मैत्री को खुलकर जीने नही दे रही थीं आज आंसुओ के जरिये बाहर के बाद मैत्री को बहुत सुकून मिल रहा था... वो अपने आप में इतना हल्का महसूस कर रही थी कि बिस्तर पर लेटते ही उसे नींद आ गयी.... मैत्री को सुलाकर जतिन बाहर ड्राइंगरूम मे जाकर बैठ गया और सोचने लगा कि वो मैत्री जिसे वो इतना प्यार करता है, जो छोटी सी, प्यारी सी है.... जो हर काम इतने अच्छे तरीके से पूरी जिम्मेदारी के साथ करती है.... वो मैत्री जो सबका सम्मान करती है... उसे कितना कुछ सहना ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 66

अगले दिन सुबह मैत्री की नींद जब खुली तो उसे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था.. उसे ऐसा महसूस रहा था मानो उसके शरीर मे वजन ही नही है... एक अजीब सी ताजगी, अजीब सी खुशी उसको महसूस हो रही थी.... नींद खुलने के बाद सुकून की अंगड़ाई लेते हुये उसने जब दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखा तो वो एकदम से चौंक गयी और खुद से बोली - हे भगवान... सात बज गये!! ओहो ये क्या हो गया मुझसे... लगता है आज डांट सुननी पड़ेगी....कल रात मे मैत्री के सोने के बाद घर मे क्या हुआ था ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 67

रसोई मे हुये इस हंसी मजाक के बीच सब साथ मिलकर नाश्ता करने बैठ गये.... जतिन और मैत्री आमने बैठे थे.... जहां एक तरफ मैत्री सुबह सुबह के इस खुशनुमा माहौल को देखकर बेहद खुश थी... वहीं जतिन मैत्री को खुश देखकर एक अलग ही फीलिंग लिये उसके सामने बैठा सबसे नजरें चुराते हुये बार बार उसे ही देख रहा था.... इधर मैत्री के दिल मे भी जतिन के लिये प्यार जैसे उमड़ सा रहा था... वो भी नजरें इधर उधर घुमाते हुये जतिन को ही बार बार देखे जा रही थी.... जब जतिन मैत्री की तरफ देखता तो ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 68

आज भले जतिन और मैत्री के बीच उनके दिल मे एक दूसरे के लिये छुपे प्यार का इजहार नही पाया था लेकिन उन दोनो के हाव भाव ने... एक दूसरे के लिये समर्पित शब्दो ने, एक दूसरे के समर्पण और एक दूसरे को खुश रखने की भावना ने अपने प्यार का इजहार कर दिया था.... जहां एक तरफ जतिन के प्यार की चाशनी मे डूबी मैत्री अपनी साड़ी का पल्लू हवा मे लहरा के मदहोश सी हुयी झूमी जा रही थी वहीं जतिन भी बस मैत्री के साथ बिताये गये उन पलो को याद करके बहुत खुश हो रहा ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 69

मैत्री से पार्लर जाने के लिये तैयार होने का कह कर बबिता उसके कमरे से अपने कमरे मे तैयार चली गयीं और तैयार होने के बाद अपने पति विजय को बताकर कि वो मैत्री के साथ जा रही हैं... दोनो सास बहू पार्लर के लिये निकल गयीं.... उन दोनो के घर से जाने के बाद विजय ने भी घर का दरवाजा बंद किया और अपने कमरे मे आराम करने के लिये चले गये... विजय अपने कमरे मे लेटे आराम कर रहे थे कि मैत्री और बबिता के पार्लर जाने के करीब तीन घंटे बाद डोर बेल बजी.... डोरबेल की ...और पढ़े

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 70 (अंतिम भाग)

जतिन और मैत्री दोनो समझदार थे... रिश्तो और एक दूसरे की भावनाओ के प्रति जिम्मेदार थे... वो दोनो जानते कि एक दूसरे पर अपना प्यार जाहिर करने का सिर्फ एक जिस्मानी रिश्ते बनाने का ही तरीका नही होता... बाकि और भी तरीके होते हैं... और जो तरीका जतिन और मैत्री दोनो ने ही आज अपनाया था एक दूसरे पर अपना प्यार जाहिर करने का और एक दूसरे को खुश करने का... वो तरीका उन तमाम तरीकों मे से ही एक था....जहां एक तरफ मैत्री अपने मम्मी पापा को देखकर खुशी के मारे पागल सी हुयी जा रही थी वहीं ...और पढ़े

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