Khushiyon ki Aahat book and story is written by Harish Kumar Amit in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Khushiyon ki Aahat is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
खुशियों की आहट - उपन्यास
Harish Kumar Amit
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
किशोर उपन्यास ‘खुशियों की आहट’ का सार
यह कहानी है एक किशोर छात्र, मोहित,की। मोहित के मम्मी-पापा नौकरी करते हैं। पापा नौकरी करने के साथ - साथ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाते हैं। मम्मी को कविताएँ लिखने का शौक है और उनका बहुत- सा समय कवि सम्मेलनों आदि में कटता है। और बड़ा फ्लैट व और बड़ी गाड़ियां खरीदने के लिए पापा सप्ताह के सातों दिन ट्यूशनों में ही व्यस्त रहते हैं। मम्मी-पापा इतने व्यस्त हैं कि मोहित के लिए उनके पास समय हनहीं होता। यहां तक कि मोहित की पढ़ाई में भी वे दोनों कोई खास मदद नही कर पाते। मोहित का ध्यान घर की पूर्णकालिक नौकरानी, शांतिबाई, रखती है।
मोहित पढ़ाई मे पिछड़ जाता है। मम्मी-पापा एक-दूसरे पर इसके लिए दोष लगाते हैं। शांतिबाई उन्हे समझाती है कि उनके लिए मोहित के वास्ते समय देना जरूरी है। मम्मी-पापा बात समझ जाते हैं। मोहित को लगने लगता है कि उसके जीवन में ख़ुशियों की महक आने वाली है।
'मोहित, उठो. देखो कितना दिन चढ़ आया है.' शांतिबाई की आवाज़ कानों में पड़ी, तो मोहित ने ज़रा-सी आँखें खोलकर देखा - वाकई दिन काफ़ी चढ़ आया था. मगर बिस्तर छोड़ने का उसका मन कर नहीं रहा था. आज ...और पढ़ेका दूसरा शनिवार था और मोहित की स्कूल की छुट्टी थी.
मोहित ने करवट बदली और आँखें बन्द किए-किए बिस्तर पर लेटा रहा. 'आज स्कूल की छुट्टी है, तभी तो इस वक्त तक वह आराम से बिस्तर में लेटा है, वरना अब तक तो वह तैयार होकर स्कूल भी पहुँच चुका होता. उठने में पाँच मिनट की भी देर हो जाए, तो मम्मी-पापा उसे जबरदस्ती उठाए बगैर नहीं रहते! मोहित सोच रहा था.
मोहित की नींद खुली तो शाम के पाँच बज रहे थे. दोपहर को लंच में सैंडविच खाकर वह कुछ देर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेटा था. उसके बाद कब उसे नींद आ गई, उसे पता ही नहीं ...और पढ़ेखुलने पर मोहित कुछ देर तो बिस्तर में पड़ा रहा. ड्राइंगरूम से टी.वी. की आवाज़ आ रही थी. शांतिबाई टी.वी. देख रही होगी - उसने सोचा.
अगली सुबह मोहित की नींद अपने आप ही खुल गई. उसने खिड़की से बाहर की ओर देखा. आसमान में अभी हल्का-हल्का अंधेरा था. आज इतवार का दिन था, इसलिए मम्मी-पापा की ऑफिस की छुट्टी थी. तभी उसे याद आया ...और पढ़ेमम्मी ने तो उसे कल बताया था कि पापा शनिवार और इतवार को पूरा दिन कोचिंग कॉलेज में पढ़ाने जाया करेंगे. 'इसका मतलब आज भी पापा सुबह के गए हुए रात को काफ़ी देर से वापिस आएंगे.' अचानक यह बात उसके दिमाग़ में आई. यह सोचते ही उसका मन न जाने कैसा-कैसा-सा हो आया.
'खाना लगा दूँ मोहित?' मोहित अपना होमवर्क करने में व्यस्त था, जब उसे शांतिबाई की आवाज़ सुनाई दी.
'हाँ, लगा दो.' मोहित ने कहा और फिर अपनी स्कूल कॉपी में लिखने लगा.
'आज छुट्टी के दिन भी अकेले ही खाना खाना ...और पढ़ेयही बात मोहित के मन में बार-बार आ रही थी. वैसे अकेले खाना खाना उसके लिए कोई नई बात नहीं थी. ऐसा तो उसके साथ अक्सर होता रहता था.
मोहित का अंदाज़ा ग़लत निकला. चाय-नाश्ते के बाद मोहित ने कुमुद आंटी को अपनी कविताएँ सुनाईं. फिर मम्मी कपड़े बदलकर नए सिरे से तैयार होने में लग गईं. मोहित ने उनके कमरे में जाकर उनसे पूछा, 'आप फिर से ...और पढ़ेरही हो मम्मी कहीं?'
'हाँ, बेटे. ये कुमुद आंटी आई हैं न, इन्हें डिनर करवाने ले जा रही हूँ.' मम्मी ने लिपस्टिक लगाते-लगाते कहा.