खुशियों की आहट - 1 Harish Kumar Amit द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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खुशियों की आहट - 1

खुशियों की आहट

हरीश कुमार 'अमित'

(1)

''मोहित, उठो. देखो कितना दिन चढ़ आया है.'' शांतिबाई की आवाज़ कानों में पड़ी, तो मोहित ने ज़रा-सी आँखें खोलकर देखा - वाकई दिन काफ़ी चढ़ आया था. मगर बिस्तर छोड़ने का उसका मन कर नहीं रहा था. आज महीने का दूसरा शनिवार था और मोहित की स्कूल की छुट्टी थी.

मोहित ने करवट बदली और आँखें बन्द किए-किए बिस्तर पर लेटा रहा. 'आज स्कूल की छुट्टी है, तभी तो इस वक्त तक वह आराम से बिस्तर में लेटा है, वरना अब तक तो वह तैयार होकर स्कूल भी पहुँच चुका होता. उठने में पाँच मिनट की भी देर हो जाए, तो मम्मी-पापा उसे जबरदस्ती उठाए बगैर नहीं रहते! मोहित सोच रहा था.

तभी उसने महसूस किया कि घर में मम्मी या पापा किसी की भी कोई आवाज़ नहीं आ रही. 'पापा अख़बार पढ़ रहे होंगे और मम्मी किचन में होंगी.' मोहित के दिमाग़ में आया.

यही सब सोचते-सोचते वह बिस्तर में लेटा रहा. तभी उसे लगा मानो मम्मी और पापा दोनों ही घर पर नहीं हैं, क्योंकि उन लोगों की कोई आवाज़ उसे काफ़ी देर से सुनाई नहीं दी थी. 'आज तो मम्मी-पापा की ऑफिस की छुट्टी होती है, फिर वे लोग कहाँ चले गए हैं' सोचते हुए वह उठकर बैठ गया.

उठकर बैठने के बाद भी वह कुछ देर तक इस बात का अनुमान लगाने की कोशिश करता रहा कि मम्मी-पापा घर में हैं या नहीं, मगर उन दोनों की कोई आवाज़ या खटका उसे सुनाई न पड़ा.

मोहित ने पलंग के नीचे रखी चप्पलें पहनीं और बेडरूम से निकलकर ड्राइंगरूम में आ गया. शांतिबाई ड्राइंगरूम में झाड़ू लगा रही थी.

''मम्मी-पापा नहीं है क्या घर में?''

''साहब और मेमसाहब दोनों बाहर गए हैं.'' झाड़ू लगाते-लगाते शांतिबाई ने उत्तर दिया.

''आज तो छुट्टी होती है दोनों की.'' मोहित ने फिर पूछा.

''यह तो मुझे पता नहीं. तुम बुरश (ब्रश) वगैरह कर लो तो तुम्हारे लिए नाश्ता बना देती हूँ.'' शांतिबाई ने कहा.

मोहित सोच में पड़ गया. 'मम्मी-पापा न जाने कहाँ चले गए हैं सुबह-सुबह? उसे कुछ बताया भी नहीं. रात को भी इस बारे में कोई बात नहीं हुई कि आज सुबह उन्हें कहीं जाना है.' यही सब सोचते-सोचते उसने ब्रश किया, मुँह धोया और फिर डाइनिंग टेबल पर आ गया.

कुछ ही देर में शांतिबाई उसके लिए नाश्ता ले आई. नाश्ता देखते ही मोहित का मन उखड़ गया. नाश्ते में जैम लगे टोस्ट और दूध था. यह तो वैसा ही नाश्ता था जैसा वह हर रोज़ स्कूल जाते वक्त किया करता था. 'आज छुट्टी का दिन है. क्या ही अच्छा होता अगर मम्मी कुछ बढ़िया-सी चीज़ बनाकर नाश्ते में उसे खिलातीं', उसके मन में ख़याल आया, पर तभी यह बात भी उसके मन में आई कि मम्मी कुछ ख़ास तभी तो बनातीं न जब वह घर पर होतीं. मम्मी गईं कहाँ हैं - उसे तो यह भी मालूम नहीं.

वही हर रोज़ वाला नाश्ता करने का उसका दिल कर नहीं रहा था, पर पेट में कूद रहे चूहों ने उसे वह नाश्ता खाने पर मजबूर कर दिया. जैम लगे टोस्ट खाते हुए यह बात उसके दिमाग़ में आई कि वह कई दिनों से मम्मी को कह रहा है कि स्ट्राबेरी के स्वादवाला जैम अगर ख़त्म हो गया है तो बाज़ार से उसकी एक और बोतल लेकर आओ. वह वाला जैम उसे बहुत अच्छा लगता है, मगर कई बार कहने पर भी मम्मी वह जैम अभी तक बाज़ार से लाई नहीं थीं. 'टाइम ही नहीं मिला होगा' - उसके मन में आया.

अनमने मन से नाश्ता करने के बाद मोहित फिर से अपने कमरे में आ गया. तभी उसके दिमाग़ में आया कि क्यों न फोन करके मम्मी-पापा से पूछ ही लिया जाए कि वे गए कहाँ हैं. अपना मोबाइल फोन उठाकर उसने पहले पापा को फोन लगाया, मगर एक घंटी बजने के बाद ही दूसरी तरफ़ से फोन काट दिया गया. यह सोचकर कि कहीं फोन अपने आप ही न कट गया हो, उसने पापा का नम्बर एक बार फिर मिला दिया.

तभी उसे फोन पर पापा की सख़्त-सी आवाज़ सुनाई दी, ''बाद में बात करेंगे.'' इसके साथ ही फोन काट दिया गया.

मोहित का मन बुझ-सा गया. कम-से-कम पापा यह तो बता ही देते कि वे हैं कहाँ.

उसने मम्मी को फोन करने की सोची. तभी उसे लगा कि मम्मी कहीं पापा के साथ ही न हों. ऐसा हुआ तो यह भी हो सकता है कि उसे मम्मी की भी डाँट खानी पड़ जाए.

अपने कमरे से निकलकर वह बाहर बालकनी में आया. चौथी मंज़िल से नीचे झाँककर देखने पर उसे पता चला कि न तो पापा की कार नीचे खड़ी है और न मम्मी की. वह समझ गया कि मम्मी और पापा अपनी-अपनी गाड़ी लेकर कहीं गए हैं और इस समय साथ-साथ नहीं हैं.

वह वापिस अपने कमरे में आया और मोबाइल फोन उठाकर मम्मी का नम्बर मिलाने लगा. काफी देर घंटी बजती रही, पर उधर से किसी ने फोन नहीं उठाया. घंटी पूरी बज चुकी, तो उसने एक बार फिर मम्मी का नम्बर मिला दिया. इस बार भी काफ़ी देर तक घंटी बजती रही. फिर उसे मम्मी की आवाज़ सुनाई दी, ''बेटू, मैं गाड़ी चला रही हूँ. बाद में बात करूँगी.'' इसके साथ ही उधर से मम्मी ने फोन काट दिया.

मोहित का मन खट्टा हो आया. वह मम्मी से यह पूछना चाहता था कि आखिर वे हैं कहाँ और जा कहाँ रही हैं, वग़ैरह-वग़ैरह. पर यह सब पूछने का मौका उसे मिल ही नहीं पाया.

अचानक उसके दिल में न जाने क्या आया कि उसने मम्मी का नम्बर एक बार फिर से मिला दिया. काफ़ी देर तक घंटी बजती रही, पर मम्मी ने फोन उठाया ही नहीं. ज़िद में आकर मोहित ने मम्मी का नम्बर एक बार फिर से मिला दिया. कुछ देर तक घंटी बजने के बाद मोहित को मम्मी की खीझ-भरी आवाज़ सुनाई दी, ''बेटू, तुम्हें कहा है न, मैं गाड़ी ड्राइव कर रही हूँ.''

''मगर मम्मी....'' मोहित के ये शब्द अभी उसके मुँह में ही थे कि उधर से फोन काट दिया गया.

मोहित का मन अनमना-सा हो आया. कुछ बताकर भी नहीं जाते और फोन करो तो बात भी नहीं करते ढंग से.

कुछ देर तक बेमन-सा वह मोबाइल फ़ोन के साथ खेलता रहा, पर जल्दी ही उसका मन उकता गया. तभी उसे याद आया कि सोमवार को तो उसका मैथ्स (गणित) का क्लास टैस्ट है. मैथ्स के दो पाठों की तैयारी करनी है इसके लिए. इसके अलावा बाकी विषयों का होमवर्क भी तो पूरा करना है.

मोहित ने अपनी मैथ्स की किताब निकाली और क्लास टैस्ट की तैयारी करने लगा. होमवर्क बाद में कर लेगा. टैस्ट की तैयारी करते समय कई सवाल उससे हल नहीं हो पा रहे थे. उसके पास किताबों के अलावा तीन-तीन गाइडें भी थीं. मुश्किल लग रहे इन सवालों में से कुछ सवाल तो इन गाइडों की मदद से उसने हल कर लिए, लेकिन कुछ सवाल वह हल कर ही नहीं पाया. उसने कई बार कोशिश की, पर वे सवाल हल हो ही नहीं पाए.

पापा घर में होते तो वह उनसे पूछ लेता, पर सच तो यह है कि उन लोगों के पास उसके लिए कोई वक्त होता ही कहाँ है. पापा को तो ट्यूशनें पढ़ाने से ही फुर्सत नहीं है. मैथ्स और साइंस की ट्यूशन पढ़ाते हैं वे. साथ ही द़फ्तर की नौकरी भी करते हैं. शाम को घर आने के पन्द्रह मिनट बाद ही ट्यूशन पढ़ाने निकल जाते हैं वे और रात के सवा नौ-साढ़े नौ से पहले वापिस नहीं लौटते. तब तक मोहित तो कई बार सो ही चुका होता है.

मम्मी के पास भी मोहित के लिए कुछ ज़्यादा समय नहीं होता. नौकरी वे भी करती हैं ऑफिस में, मगर नौकरी के साथ-साथ उन्हें कविता लिखने का भी बहुत शौक है. द़फ्तर के बाद का ज़्यादातर वक्त वे या तो कविता लिखने में लगाती हैं या फिर कवि सम्मेलनों में भाग लेने में. ऐसे कवि सम्मेलनों में भाग लेने के लिए उन्हें कई बार शहर से बाहर भी जाना पड़ता है.

जिन-जिन सवालों को मोहित हल नहीं कर पाया था, उन-उन पर उसने निशान लगा दिए. इन्हें बाद में करेगा पापा की मदद से.

मैथ्स का एक पाठ अभी आधा भी ख़त्म नहीं हुआ था कि मोहित थक-सा गया. वह स्टडी टेबल से उठकर आरामकुर्सी पर अधलेटा-सा होकर बैठ गया. तभी उसके मन में कुछ आया और आरामकुर्सी से उठकर उसने अपने कमरे में रखा कम्प्यूटर चला दिया. अपने मनपसन्द फिल्मी गाने सुनते हुए वह कम्प्यूटर गेम खेलने लगा. पर कुछ देर बाद ही उसका मन उकता गया. उसने कम्प्यूटर बन्द कर दिया और फिर से स्टडी टेबल पर आकर बैठ गया.

'बहुत तैयारी करनी पड़ेगी, तभी क्लास टैस्ट में अच्छे नम्बर आ पाएंगे. पिछली बार भी मैथ्स में उसके नम्बर काफ़ी कम आए थे.' यही ख़याल उसके दिमाग़ में चक्कर काट रहा था. उसने थोड़ी देर तक मैथ्स की तैयारी की, पर उसका मन न जाने क्यों इसमें ज़्यादा देर तक लग नहीं पाया.

तभी शांतिबाई उसके लिए कटे हुए आम लेकर आ गई. आम देखते ही उसके मुँह में पानी भर आया. आम उसे लगते भी बहुत अच्छे हैं.

''आम काटने की क्या ज़रूरत थी. चूसकर खाने में ज्यादा मज़ा आता है.''

''गुस्सा होती हैं न मेमसाहब, आम चूसकर खाने में.'' शांतिबाई की इस बात का मोहित ने कुछ जवाब नहीं दिया. शांतिबाई कमरे से बाहर चली गई.

वह अपने कमरे के साथ लगे बाथरूम से हाथ धोकर आया और आरामकुर्सी पर बैठकर आम खाने लगा. आम खाने के बाद उसका मूड कुछ हद तक अच्छा हो गया. उसने शांतिबाई को आवाज़ देकर आम के छिलकों वाली प्लेट ले जाने के लिए कहा और बाथरूम में हाथ धोने चला गया. हाथ धोकर उसने कमरे में रखा टी.वी. चला दिया और चैनल बदल-बदलकर अलग-अलग प्रोग्राम देखने लगा.

टी.वी. लगा देखकर शांतिबाई उसके कमरे में आ गई और फ़र्श पर बैठकर टी.वी. देखने लगी.

तभी मोहित ने शांतिबाई से पूछा, ''कुछ पता है कि मम्मी-पापा ने वापिस कब आना है?''

''मुझे तो कुछ नहीं पता मोहित. मुझे तो कुछ बताकर नहीं गए. साहब तो नाश्ता करके भी नहीं गए.'' शांतिबाई ने जवाब दिया.

शांतिबाई की बात सुनकर मोहित को हैरानी हुई कि पापा को ऐसी क्या जल्दी थी कि उनके पास नाश्ता करने तक का टाइम नहीं था.

तभी मोहित के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. उसने लपककर फोन उठाया. मम्मी का फोन था. वे कह रही थीं, ''बेटू, घर आने में मुझे देर हो जाएगी. शायद शाम के चार-पाँच बज जाएँ. तुम शांतिबाई से कहकर लंच बनवा लेना.''

''देखता हूँ मम्मी, पर आप हैं कहाँ?'' मोहित ने उत्सुकता-से पूछा.

''बेटू, एक कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए ग़ाज़ियाबाद आई थी. अब पता चला है कि मेरठ में भी कोई कवि सम्मेलन हो रहा है. उसमें भाग लेने मैं मेरठ आ गई हूँ.'' मम्मी का यह जवाब सुनते-न-सुनते मोहित का मुँह उतर गया. मम्मी मेरठ गई हैं तो चार-पाँच बजे तक तो क्या ही लौट पाएँगी.

तभी मोहित के मन में पापा का ख़याल आया और वह पूछ बैठा, ''मम्मी, पापा भी सुबह-सुबह न जाने कहाँ चले गए. मैंने फोन किया था तो उन्होंने डाँट दिया.'' कहते-कहते उसकी आवाज़ रुआँसी हो आई.

''बेटू, पापा को कोचिंग कॉलेज में शनिवार और इतवार को पढ़ाने का काम मिल गया है न. कल रात को ही सारी बात तय हुई है.'' मम्मी बता रही थीं.

''पापा घर कब आएँगे मम्मी?'' मोहित ने पूछा.

''बेटू, इतना ज़्यादा तो मुझे भी नहीं पता. शाम तक आ ही जाएँगे पापा. अच्छा, फिर.'' कहते-कहते मम्मी ने जल्दी से फोन काट दिया, जैसे उन्हें अचानक कुछ याद आ गया हो.

मोहित का मन बहुत उदास-सा हो आया. सारे हफ्ते तो मम्मी-पापा सुबह-सुबह ऑफिस चले जाते हैं और शाम को लौटते हैं. मम्मी-पापा की शनिवार-इतवार की छुट्टी हुआ करती है, पर अब तो पापा ये दोनों दिन घर पर नहीं हुआ करेंगे. मम्मी के भी कवि सम्मेलन होते रहते हैं. उसने टी.वी. बन्द कर दिया और बिस्तर पर जाकर औंधा लेट गया.

''खाने के लिए क्या बनाऊँ?'' फर्श से उठकर कमरे से बाहर जाती शांतिबाई उससे पूछ रही थी.

''मुझे भूख नहीं है. तुम बना लो अपने लिए जो दिल चाहे.'' मोहित थकी-सी आवाज़ में बोला.

''कुछ तो खाना पड़ेगा, नहीं तो गुस्सा करेंगी मेम साहब. सैंडविच या नूडल बना लूँ?'' शांतिबाई पूछ रही थी.

''नहीं, भूख नहीं है मुझे.'' मोहित बोला.

''दोपहर को खाने में कुछ तो खाना ही पड़ेगा मोहित. साहब लोग तो पता नहीं कब आएँगे और जब आएँगे भी तो खाना-वाना खाकर ही तो आएँगे.'' शांतिबाई की यह बात सुनकर मोहित को लगा कि जब मम्मी-पापा लंच करेंगे, तो वह क्यों भूखा रहे. उसने शांतिबाई को सैंडविच बनाने के लिए कह दिया.

***