खुशियों की आहट
हरीश कुमार 'अमित'
(2)
मोहित की नींद खुली तो शाम के पाँच बज रहे थे. दोपहर को लंच में सैंडविच खाकर वह कुछ देर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेटा था. उसके बाद कब उसे नींद आ गई, उसे पता ही नहीं चला.
नींद खुलने पर मोहित कुछ देर तो बिस्तर में पड़ा रहा. ड्राइंगरूम से टी.वी. की आवाज़ आ रही थी. शांतिबाई टी.वी. देख रही होगी - उसने सोचा.
उसे उम्मीद थी कि मम्मी-पापा अब तक तो घर वापिस आ गए होंगे. इसलिए वह बिस्तर से उठकर अपने कमरे से बाहर निकला. मम्मी-पापा का कमरा खाली था. ड्राइंगरूम में शांतिबाई फर्श पर बैठी टी.वी. देख रही थी.
''आए नहीं मम्मी-पापा अभी तक?'' मोहित ने शांतिबाई से पूछा.
शांतिबाई ने जवाब में 'न' में सिर हिला दिया.
''फोन भी नहीं आया क्या किसी का?'' मोहित ने फिर पूछा.
शांतिबाई ने पहले की तरह सिर हिला दिया और फिर पूछने लगी, ''दूध गरम पियोगे या ठण्डा?''
हालाँकि मोहित ने दोपहर को ढंग का खाना खाया नहीं था, और उसे हल्की-हल्की भूख भी लग रही थी, मगर कुछ खाने-पीने की उसकी इच्छा हो नहीं रही थी.
''अभी कुछ नहीं चाहिए.'' कहते हुए वह अपने कमरे में आ गया और मैथ्स के टैस्ट की तैयारी करने लगा. सुबह की तरह उसे फिर से कुछ सवाल हल करने में मुश्किल हो रही थी.
कुछ देर पढ़ाई करने के बाद उससे रहा नहीं गया. उसने मोबाइल फोन से मम्मी का फोन नम्बर मिला दिया. कुछ देर घंटी बजने के बाद उधर से मम्मी की आवाज़ सुनाई दी, ''हाँ बेटू. बस अभी कुछ देर में चल रहे हैं मेरठ से.''
मम्मी की बात सुनकर मोहित हैरान रह गया. मम्मी अभी तक मेरठ में ही हैं क्या? फिर वह मम्मी से बोला, ''मम्मी आप अभी तक मेरठ से चले ही नहीं क्या?''
''बेटू, बस चलने ही वाले हैं. वो कवि सम्मेलन देर से ख़त्म हुआ है न.'' मम्मी ने उत्तर दिया.
''आप आओगे कब मम्मी?'' मोहित ने बेसब्री से पूछा.
''बेटू, मेरे साथ एक-दो लोग और भी हैं. दिल्ली पहुँचकर इन्हें घर छोड़ते हुए आऊँगी. आठ-साढ़े आठ तो बज ही जाएँगे.'' मम्मी ने जवाब दिया.
''पापा भी नहीं आए अभी तक.'' कहते-कहते मोहित की आवाज़ रुआँसी हो आई.
''पापा से फोन पर बात हुई थी मेरी. वे तो शाम को कोचिंग क्लासेस ख़त्म होने के बाद ही आएँगे बेटू.'' मम्मी ने जल्दी-जल्दी कहा.
''फिर भी कब तक आ जाएँगे पापा?''
''बेटू, साढ़े नौ-दस तो बज ही जाएँगे. अच्छा, फिर बात करेंगे.'' कहते हुए मम्मी ने फोन काट दिया.
मोहित को लगा कि मम्मी को वापिस आने की जल्दी होगी.
शाम के छह बजे मोहित अपने तीन-चार दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने जाता था. मोहित के वे दोस्त आसपास की हाउसिंग सोसायटियों में रहते थे. क्रिकेट खेलने के लिए कोई मैदान नहीं था, वे लोग दो हाउसिंग सोसयटियों के बीच की खाली जगह में खेला करते थे.
मोहित ने घड़ी देखी. पौने छह बजने वाले थे. 'बाकी पढ़ाई बाद में करूँगा.' सोचते हुए वह स्टडी टेबल से उठ खड़ा हुआ. बाथरूम में जाकर उसने मुँह-हाथ धोया. उसके बाद कपड़े बदले, जूते पहने और अपना क्रिकेट बैठ लेकर घर से बाहर जाने के लिए तैयार हो गया. फिर शांतिबाई को घर का दरवाज़ा बन्द करने के लिए कहकर वह क्रिकेट खेलने चला गया.
क्रिकेट खेलकर मोहित वापिस लौटा तो साढ़े सात बज चुके थे. मम्मी-पापा में से कोई भी अभी तक वापिस नहीं आया था.
मोहित को भूख लग आई थी. 'पहले नहा लूँ, फिर कुछ खाऊँगा.' सोचते हुए वह नहाने चला गया. नहाकर लौटा तो उसने शांतिबाई को औरेंज क्रीमवाले बिस्कुट देने के लिए कहा और टी.वी. खोलकर बैठ गया.
शांतिबाई प्लेट में बिस्कुट लेकर आई और प्लेट मोहित के आगे रख दी. फिर वह फर्ष पर बैठकर टी.वी. देखने लगी. बिस्कुट खाते हुए टी.वी देखते-देखते मोहित को झपकी-सी आने लगी. 'आज इतनी नींद क्यों आ रही है. आज तो वह सुबह भी देर से उठा था और दोपहर को भी सोया था.' उसके दिमाग़ में आया.
मोहित की पलकें जब नींद के कारण कुछ ज़्यादा ही भारी होने लगीं, तो उसने टी.वी. बन्द कर दिया और शांतिबाई को ड्राइंगरूम में जाकर टी.वी. देखने को कह दिया. यह भी कहा कि टी.वी. धीमी आवाज़ में चलाए. उसके बाद वह अपने बिस्तर में जाकर लेट गया. कुछ ही देर बाद वह गहरी नींद में था.
***
''उठो, बेटू, उठो. खाना तो खा लो.'' मम्मी मोहित को झिंझोड़कर उठा रही थीं. मोहित गहरी नींद में था. मम्मी के कई बार उठाने पर ही उसकी नींद टूटी.
आँखें खोलने पर मम्मी को सामने पाकर मोहित का चेहरा खिल गया.
''आप आ गए मम्मी!'' मोहित की आवाज़ से खुषी छलक रही थी.
''हाँ, बेटू. अभी कुछ देर पहले ही आई हूँ वापिस.'' मम्मी ने कहा.
मोहित ने दीवार घड़ी देखी. ग्यारह बजने वाले थे.
''पापा भी आ गए हैं क्या?'' मोहित पूछने लगा.
''पापा अभी नहीं आए बेटू. उनका फोन आया था वे साढ़े ग्यारह बजे तक आएँगे वापिस.'' मम्मी ने बताया.
पापा के अब तक न आने की बात सुनकर मोहित का मन उदास-सा हो गया.
''चलो, उठो. खाना खा लो.'' मम्मी की आवाज़ से थकावट साफ़ महसूस हो रही थी.
''क्या बनाया है मम्मी आज?'' मोहित ने मम्मी से पूछा.
''बेटू, घर आते-आते बहुत देर हो गई. रास्ते में कार का पहिया पंचर हो गया था और फिर ट्रैफिक जाम भी था. इसलिए मैं बाहर से ही खाना पैक करवाके ले आई हूँ. दाल मखनी और आलू पनीर की सब्ज़ी के साथ तंदूरी रोटी हैं.'' मम्मी कह रही थीं.
'मतलब, मम्मी ने रात का खाना ख़ुद नहीं बनाया!' अचानक यह बात मोहित के दिमाग़ में आई. यह सोचते ही उसकी भूख जैसे मर-सी गई.
''मम्मी, मेरा कुछ खाने का दिल नहीं कर रहा. मुझे सोने दो.'' मोहित ने बिस्तर पर लेटे-लेटे कहा.
''अरे, बेटू, खाना तो खाओ. आज दिन में भी तुमने ढंग का खाना नहीं खाया. शांतिबाई ने फोन पर मुझे सब बता दिया था. इसीलिए मैंने उसे रात का खाना बनाने से मना कर दिया था और बाहर से खाना पैक करवा लाई हूँ. चलो, उठो अब खाना खा लो.'' मम्मी ने उसकी बाँह पकड़कर उठाने की कोशिश करते हुए कहा.
''मम्मी, मुझे सच में भूख नहीं है. प्लीज़, मुझे सोने दो.'' कहते-कहते मोहित ने आँखें बन्द करके करवट बदल ली.
मम्मी कुछ देर मोहित को देखती रहीं, फिर बत्ती बुझाकर कमरे से बाहर निकल गईं.
मम्मी के उठाने के बाद मोहित की नींद मानो भाग गई थी. उसे भूख भी लग रही थी, पर पापा के अब तक न आने की बात सुनकर और यह जानकर कि मम्मी बाहर से ही बना-बनाया खाना ले आई हैं, उसकी भूख जैसे ख़त्म हो गई थी. वह अंधेरे में आँखें खोले-खोले यही सब सोचता रहा. कुछ देर बाद उसे नींद आ गई.
***