Asali aazadi wali aazadi book and story is written by devendra kushwaha in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Asali aazadi wali aazadi is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
असली आज़ादी वाली आज़ादी - उपन्यास
devendra kushwaha
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
देश को आज़ाद कराना आसान नही था बहुत त्याग और संघर्ष के बाद इस देश को आज़ादी नसीब हुई। आजादी बेशकीमती थी क्योंकि लाखों लोगों ने इसे पाने के लिए बिना कुछ सोंचे समझें अपनी जान न्योछावर कर दी। आज़ादी के दीवानों का न कोई धर्म था न कोई जाति न कोई ऊंचा न कोई नीचा न कोई दलित और न कोई पिछड़ा, वो सभी सिर्फ हिंदुस्तानी थे। लगभग साढ़े तीन सौ साल की गुलामी के बाद मिली आज़ादी खूबसूरत और सुकून भारी होनी चाहिये। और शायद ऐसा होता भी यदि अपने देश के दो टुकड़े न हुए होते। दो
देश को आज़ाद कराना आसान नही था बहुत त्याग और संघर्ष के बाद इस देश को आज़ादी नसीब हुई। आजादी बेशकीमती थी क्योंकि लाखों लोगों ने इसे पाने के लिए बिना कुछ सोंचे समझें अपनी जान न्योछावर कर दी। ...और पढ़ेके दीवानों का न कोई धर्म था न कोई जाति न कोई ऊंचा न कोई नीचा न कोई दलित और न कोई पिछड़ा, वो सभी सिर्फ हिंदुस्तानी थे। लगभग साढ़े तीन सौ साल की गुलामी के बाद मिली आज़ादी खूबसूरत और सुकून भारी होनी चाहिये। और शायद ऐसा होता भी यदि अपने देश के दो टुकड़े न हुए होते। दो
पिछले भाग से आगे--- युद्ध खत्म होते ही दोनों परिवार अपने अपने बच्चों का घर पर इंतजार करने लगें। युद्ध समाप्त होने के अगले दिन ही सुबहनन्नू अपने घर के आंगन में बैठे हुए अपनी भैस का सानी चारा ...और पढ़ेरहे थे। उनकी पत्नी और बड़ी बेटी पास में खाट पर बैठ कर धूप सेंक रहे थे। कानपुर में जनवरी का महीना बहुत ठंडा होता है। दिन भी देर से होता है और धूप सेंकने का एक अलग ही आनंद होता है। अचानक किसी ने बाहर दरवाज़ा खटखटाया और आनंद में खलल पड़ गया। नन्नू अपनी बेटी से बोले- बेटा
भाग-2 से आगे की कहानी- (इस भाग में लिखी बातें किसी धर्म या समुदाय विशेष को ऊंचा या नीचा दिखाने के लिए नहीं बल्कि समाज में फैली बुराइयों के पीछे का दर्द समझाना है। मैं अपने पाठकों से वादा ...और पढ़ेहूँ कि कहानी का अंत शानदार ही होगा) बेटे की अर्थी का बोझ सारी जिंदगी अब नन्नू के कंधों पर रहने वाला था। नन्नू सारा क्रिया कर्म करके अपने घर आ गया पर चूल्हा जलाने की हिम्मत किसी मे न हुई। अब तो घर में आये हुए कुछ मेहमान अपने घर वापिस जा चुके थे और कुछ ही लोग घर
भाग 3 से आगे- मनोरमा ने सभी के सामने चौहान साहब को चुनौती तो दे डाली पर उसके आगे क्या करना है और कैसे करना है उसे कुछ नही पता था। आधे गांव वाले तो डर ही गए थे ...और पढ़ेअब तो चौहान या तो जान ले लेगा या तो मान ले लेगा। पीछे हटने में ही भलाई है। नन्नू के परिवार के लिए आगे का जीवन बिल्कुल भी आसान नही होने वाला था। अब दोनों बेटियों की फिक्र होने लगी थी और जिस तरह चौहान साहब का बेटा एक दरिंदे की तरह मनोरमा को देख रहा था। खतरा तो
भाग-4 से आगे- सभी गांव वाले चौहान साहब के घर पहुंचे और सभी ने चौहान साहब को बाहर बुलाया। एक नौकर बाहर आके बोला- मालिक तो दिल्ली गए है और छोटे मालिक भी साथ गए है कल रात ही, ...और पढ़ेदो दिन बाद ही मिलेंगे। सभी को हैरानी हुई कि अगर श्रीकांत चौहान साहब के साथ दिल्ली गया है तो मनोरमा के साथ ये दुष्कर्म किसने किया। सभी सोंचने लगे कि कहीं नन्नू ने ही तो चौहान साहब के ख़िलाफ़ कोई षड्यंत्र तो नहीं रच दिया। क्यूंकि चौहान साहब ने ही दो दिन पहले नन्नू की खिलाफत की थी। कहीं