Pagalpan ka Ilaaz book and story is written by Pradeep Kumar sah in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Pagalpan ka Ilaaz is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
पागलपन का इलाज - उपन्यास
Pradeep Kumar sah
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
उनके माताओं को इस बात की जानकारी गाँव के टमाटर मण्डली के जरिये होती थी.दरअसल पूरे गाँव में जो थोड़े युवक थे उनकी अपनी ही ख़ास मंडली थी और उनके विचार-व्यवहार से मेरे विचार के मेल न थे.क्योंकि वह मंडली उन युवाओं से बनी थी जो या तो अमीर बाप के बिगड़ैल बेटे थे अथवा होशियार और कमाऊ बाप के निठ्ठले बेटे थे. अथवा वैसे युवक थे जो दो पैसे कमाने परदेश जरूर गये किंतु मेहनत करने से घबड़ा कर वापस गाँव लौट आये और मंडली में शामिल होकर वैसे बिगड़ैल युवक के अर्दली कर अपना खर्च चलाने लगे.यद्यपि वह विशिष्ठ या शिष्ट मण्डली न थी,किंतु वह खासम-ख़ास टमाटर टाइप मंडली आवश्य थी.उस मंडली में अच्छे खासे गुण भी थे.
उनके माताओं को इस बात की जानकारी गाँव के टमाटर मण्डली के जरिये होती थी.दरअसल पूरे गाँव में जो थोड़े युवक थे उनकी अपनी ही ख़ास मंडली थी और उनके विचार-व्यवहार से मेरे विचार के मेल न थे.क्योंकि वह ...और पढ़ेउन युवाओं से बनी थी जो या तो अमीर बाप के बिगड़ैल बेटे थे अथवा होशियार और कमाऊ बाप के निठ्ठले बेटे थे. अथवा वैसे युवक थे जो दो पैसे कमाने परदेश जरूर गये किंतु मेहनत करने से घबड़ा कर वापस गाँव लौट आये और मंडली में शामिल होकर वैसे बिगड़ैल युवक के अर्दली कर अपना खर्च चलाने लगे.यद्यपि वह विशिष्ठ या शिष्ट मण्डली न थी,किंतु वह खासम-ख़ास टमाटर टाइप मंडली आवश्य थी.उस मंडली में अच्छे खासे गुण भी थे.
वास्तव में संसार में प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति अथवा स्थापना कुछ निश्चित उद्देश्य के पूर्ति हेतु होते हैं.उसी अनुरूप से उसमें गुण के समावेश होते हैं और अपने गुण के अनुरूप ही उनके प्रयत्न एवं कार्यशैली होती है.मानस परिवार ...और पढ़ेपिछले बीस वर्ष से सतत सक्रिय और कार्यशील है. किंतु इसका उद्देश्य है अपने सदस्य के प्रवृति में सद्गुण की वृद्धि करना, रजोगुण और तमोगुण पर विजय दिलाना.इसलिए वह उक्त दोनों गुण प्रधान कार्य जैसे सजावट, बनावट और दिखावट से दूरी बनाये रखती है.किंतु प्रत्येक मनुष्य उपरोक्त दोनों गुण के वशीभूत होकर काम-वासना से पीड़ित रहते हैं जिससे उसी गुण प्रधान कार्य में उनकी रूचि होती है.जहाँ उस रूचि की पूर्ति नहीं होती उस वस्तु के प्रति उनमें जिज्ञासा भी नहीं जगती.
उसने कहा,"अब वास्तव में उससे मिलने का कोई औचित्य समझ नहीं आता. मैं समझता हूँ कि हम दोनों के मध्य स्वार्थ की एक बहुत गहरी विभाजक रेखा खिंच गई है जो हमारे आपस के प्रेम और आत्मीयता से अधिक ...और पढ़ेहै. फिर मैं तो जैसा के तैसा रह गया और वह अब अमीर हो गए हैं. अमीरों के अपने बड़े-बड़े मुसीबत हैं तो गरीब की छोटी-छोटी परेशानी भी उसके लिये उतनी ही बड़ी होती है. इसलिए बेहतर यही है कि हम दोनों अपनी-अपनी जगह पर और अपने-अपने समाज में रहें. फिर अपनी मुसीबत को अपने-अपने तरीके और प्रयत्न ही से हल करना चाहिये." मुझसे कुछ प्रतिउत्तर कहते नहीं बना. अब हम दोनों नर्सिंग होम से बाहर आ चुके थे. हम वापस अपने ड्यूटी पर लौट गये, क्योंकि तब स्वास्थ्य विभाग में नौकरी पेशा व्यक्ति ज्यादा दिन छुट्टी पर नहीं रह सकते थे.