Manto ki Chuninda Kahaniya book and story is written by Saadat Hasan Manto in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Manto ki Chuninda Kahaniya is also popular in लघुकथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मंटो की चुनिंदा कहानियाँ - उपन्यास
Saadat Hasan Manto
द्वारा
हिंदी लघुकथा
नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान में) खोलियाँ यानी कोठड़यां थीं जिन में ये लोग अपनी ज़िंदगी जूं तूं बसर कर रहे थे। नाज़िम को एक फ़िल्म कंपनी में बहैसियत-ए-मुंशी यानी मुकालमा निगार मुलाज़मत मिल गई थी। चूँकि कंपनी नई क़ायम हुई थी इस लिए उसे छः सात महीनों तक ढाई सौ रुपय माहवार तनख़्वाह मिलने का पूरा तयक़्क़ुन था, चुनांचे उस ने इस यक़ीन की बिना पर ये अय्याशी की डूंगरी की ग़लीज़ खोली से उठ कर बांद्रा की किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे ले लिए।
नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ...और पढ़ेमें) खोलियाँ यानी कोठड़यां थीं जिन में ये लोग अपनी ज़िंदगी जूं तूं बसर कर रहे थे।
हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी ...और पढ़ेउंगलीयों के नाख़ुन काट रहा था उस के कान बड़े ग़ौर से ग़यास की बातें सुन रहे थे वो टेलीफ़ोन पर किसी से कह रहा था।
इधर से मुस्लमान और उधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिन में ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इस के बावजूद उन में ...और पढ़ेजा रहे थे। ग़ल्ला ना-काफ़ी है। हिफ़्ज़ान-ए-सेहत का कोई इंतिज़ाम नहीं। बीमारियां फैल रही हैं। इस का होश किस को था। एक इफ़रात-ओ-तफ़रीत का आलम था।
सुरय्या हंस रही थी। बे-तरह हंस रही थी। उस की नन्ही सी कमर इस के बाइस दुहरी होगई थी। उस की बड़ी बहन को बड़ा ग़ुस्सा आया। आगे बढ़ी तो सुरय्या पीछे हट गई। और कहा “जा मेरी बहन, ...और पढ़ेताक़ में से मेरी चूड़ियों का बक्स उठाला। पर ऐसे कि अम्मी जान को ख़बर न हो।“”
बनवारी से काले तंबाकू वाला पान लेकर वो उस की दुकान के साथ उस संगीन चबूतरे पर बैठा था। जो दिन के वक़्त टायरों और मोटरों के मुख़्तलिफ़ पुर्ज़ों से भरा होता है। रात को साढे़ आठ बजे के ...और पढ़ेमोटर के पुरज़े और टायर बेचने वालों की ये दुकान बंद हो जाती है। और उस का संगीन चबूतरा ख़ूशिया के लिए ख़ाली हो जाता है।