Munshiram se Sharaddhanand book and story is written by Choudhary SAchin Rosha in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Munshiram se Sharaddhanand is also popular in नाटक in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मुन्शीराम बना श्रद्धानंद - उपन्यास
Choudhary SAchin Rosha
द्वारा
हिंदी नाटक
गुरुकुल का दृश्य : (संध्या का समय) दो विद्यार्थी कृपाल व विभु दाईं ओर से किसी विषय पर चर्चा करते हुए आ रहे है। और उनमें से कृपालके हाथ में एक पुस्तक है। कृपाल : देखो मित्र! ( आश्चर्य व गर्व के मिले-जुले भाव के साथ) कैसा महान व्यक्तित्व रहा होगा इनका। कैसे इन्होंने पतन की निचली गहराइयों से उठकर उत्थान की गगनचुंबी ऊंचाइयों को छुआ होगा। ( विभु पुस्तक के पाठ को देखने लगता है) ऐसे व्यक्ति का जीवन चरित्र कितना लोमहर्षक और प्रेरणादायी हो सकता है, नहीं–नहीं यह कल्पना का विषय नहीं है, बल्कि निखुट सत्य है
मैं श्रद्धानंद कैसे बना?गुरुकुल का दृश्य : (संध्या का समय) दो विद्यार्थी कृपाल व विभु दाईं ओर से किसी विषय पर चर्चा करते हुए आ रहे है। और उनमें से कृपालके हाथ में एक पुस्तक है। कृपाल : देखो ...और पढ़े( आश्चर्य व गर्व के मिले-जुले भाव के साथ) कैसा महान व्यक्तित्व रहा होगा इनका। कैसे इन्होंने पतन की निचली गहराइयों से उठकर उत्थान की गगनचुंबी ऊंचाइयों को छुआ होगा। ( विभु पुस्तक के पाठ को देखने लगता है) ऐसे व्यक्ति का जीवन चरित्र कितना लोमहर्षक और प्रेरणादायी हो सकता है, नहीं–नहीं यह कल्पना का विषय नहीं
हम भले ही रुक जाये परन्तु समय , समय तो अपनी निश्चित गति से विचरण कर रहा है बिना थके, बिना रुके। । । पर्दा उठता है ।।धीरे–धीरे मंच पर प्रकाश होता है। किशोर मुंशीराम और नानकचन्द जी बाईं ...और पढ़ेसे प्रवेश करते हैं। दोनों ही घर में रखी वस्तुओं को कभी उधर रख रहे हैं, कभी इधर। नानकचंद जी एक कोने में चादर बिछाकर उस पर कुछ खाने–पीने की सामग्री लाकर रख देते हैं तथा फिर अन्य कार्यों में जुट जाते हैं। वृद्ध संन्यासी/गुरुजी : (पर्दे के पीछे से) हम भले ही रुक जाए परंतु समय, समय तो अपनी