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ठंडी सड़क (नैनीताल) - उपन्यास
महेश रौतेला
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
"चाँद के उस पार चलो" फिल्म टेलीविजन पर चल रही है। फिल्म के अन्तिम दृश्य नैनीताल के मैदान में फिल्माया गया है।दृश्य लगभग रोमांटिक कहा जा सकता है।अन्त सुखान्त है। नायक और नायिका का मिलन। फिल्म तो समाप्त हो जाती है। लेकिन मल्लीताल के मैदान को देखकर मेरा मन उसके चारों ओर लधर जाता है। उस मैदान में नेताओं के भाषण भी सुने, अच्छे और बुरे दोनों । खेल भी देखे। और ठंडी सड़क से जो विद्यार्थी लघंम,एसआर, केपी छात्रावासों से आते थे उनके दर्शन भी यदाकदा हो जाते थे। मन की परतें जब खुलती हैं तो सबसे पहले वहाँ प्यार ही दिखायी देता है और बातें धीरे-धीरे आती हैं। कृष्ण भगवान को हम सबसे पहले उनके प्यार के लिए याद करते हैं और बाद में गीता के लिए। अयारपाटा को जाते रास्ते के सामने खड़े होकर पेड़ों और पहाड़ की छाया को बढ़ता देखता हूँ।
ठंडी सड़क (नैनीताल) भाग-१"चाँद के उस पार चलो" फिल्म टेलीविजन पर चल रही है। फिल्म के अन्तिम दृश्य नैनीताल के मैदान में फिल्माया गया है।दृश्य लगभग रोमांटिक कहा जा सकता है।अन्त सुखान्त है। नायक और नायिका का मिलन। फिल्म ...और पढ़ेसमाप्त हो जाती है। लेकिन मल्लीताल के मैदान को देखकर मेरा मन उसके चारों ओर लधर जाता है। उस मैदान में नेताओं के भाषण भी सुने, अच्छे और बुरे दोनों । खेल भी देखे। और ठंडी सड़क से जो विद्यार्थी लघंम,एसआर, केपी छात्रावासों से आते थे उनके दर्शन भी यदाकदा हो जाते थे। मन की परतें जब खुलती हैं तो
ठंडी सड़क(नैनीताल)-२ठंडी सड़क पर धीरे-धीरे उसके साथ चल रहा था। मैंने कहा अब बुढ़ापा आ गया है। उसने कहा मन कभी बूढ़ा नहीं होता है। तभी उसने पुरानी फिल्म का गीत बजा दिया-"ये कौन आया, रोशन हो गई महफ़िल ...और पढ़ेके नाम से मेरे घर में जैसे सूरज निकला है शाम से---- "मैं गीत सुन रहा था। मन ने एक उड़ान भरी। ठंड़ी सड़क से एस आर ,के.पी. लघंम छात्रावासों को जाने वाली पगडण्डी पर जो अब पक्की बन चुकी है। तब उबड़-खाबड़ हुआ करती थी। कुछ रास्ते उबड़-खाबड़ ही अच्छे होते हैं,ऐसा मन में आया। क्योंकि उन्हें पक्का करने
ठंडी सड़क( नैनीताल)-३हर क्षण एक कहानी कह रहा है। आज बुढ़ा वहाँ पर जल्दी आ गया है। बैठा है। इधर-उधर देख रहा है। मैं वहाँ पर जाता हूँ और उससे पूछता हूँ किसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं क्या? ...और पढ़ेबोलता है नहीं, बस यों ही बैठा हूँ। बर्फ देख रहा हूँ। कुछ जमी है और कुछ पिघल चुकी है। जीवन भी ऐसा ही है कुछ है, कुछ पिघल चुका है। मैंने कहा सब कुछ याद तो नहीं रह पाता है। मेरी यादाश्त तो कुछ गड़बड़ हो गयी है। कुछ माह पहले मुझे एक लड़की ने नमस्ते किया। मैंने नमस्ते
ठंडी सड़क(नैनीताल)-४मैंने बूढ़े से आगे कहा-जब आप प्यार में होंखूब प्यार में हों,यही जी करता है।जहाँ आप नैनीताल की राहों पर हों,ठंड का अहसास मिट जाता है। डीएसबी महाविद्यालय से हनुमानगढ़ी जा रहे हों। यहाँ काफल नहीं, हिसालू नहीं ...और पढ़ेराह का आभास भी नहीं होता है। किसी को खोजते-खाजते हनुमानगढ़ी पहुँच जाते हैं। इसमें राजुला-मालूशाही से सपने नहीं हैं। कहा जाता है, राजुला-मालूशाही का जन्म बागनाथ( शिवजी) की कृपा से हुआ था। दोनों के माता-पिता ने उनकी सगाई भी वर माँगने के बाद कर दी थी। लेकिन नियति ने दोनों को पहले अलग कर दिया और फिर मिला भी
ठंडी सड़क(नैनीताल) -5बूढ़े ने कोट की जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला और सिगरेट जलायी। और धीरे से बुदबुदाया आज वह नहीं आयी। हो सकता है स्वास्थ्य ठीक न हो। सिगरेट की एक लम्बी कस ली और धुँये को ...और पढ़ेवातावरण में उडेल दिया। मैंने उससे कहा," मुझे बीड़ी,सिगरेट का धुँआ अच्छा नहीं लगता है। इस धुँये से एलर्जी है। मैं चलता हूँ। उसने कहा ठीक है, ठीक है। मैं सिगरेट बुझा देता हूँ। तुम बैठो।" मैंने उससे कहा इस बार गाँव गया था। बहुत अच्छा लगा। जंगलों में घूमा। बचपन के जिन विशाल पत्थरों में खेला करते थे, उनके