विवरण
चाय का कप हाथ में लेकर धीरे धीरे कांपकपाते पैरों से आराम कुर्सी तक का सफ़र मेरे लिए ऐसा लगा, जैसे एक किलोमीटर का सफ़र। आराम कुर्सी के बराबर में पुराने स्टूल पर चाय का कप रख कर अपने आप को आराम कुर्सी पर बैठा दिया।
,, जब आपके बस का नही रहा तो क्यों जाते हों किचन में,,। नमिता के शब्द कानों में गूंज गए।
,, हां नमिता, शायद तुम ठीक ही कहती थी, लेकीन क्या करूं, पहले तुम साथ रहती थीं, अब तुम छोड़कर चली गई तो कुछ काम तो करने ही पड़ेंगे,,। बहुत ही धीमी आवाज़ में बड़बड़ाया मैं।
तभी बाहरी गेट पर सुभाष की आवाज़ सुनाई दी।,, अरे घर पर ही हों क्या,,।
,, अब इस उम्र में कहां जाऊंगा मैं,,।
,, अच्छा अकेले अकेले चाय के मजे लिए जा रहे हैं ,,। सामने सोफे की कुर्सी पर बैठते हुए सुभाष ने कहा।
,, ठिक है,मै अभी लाता हूं तेरे लिए भी,,। कहते हुऐ मैने उठना चाहा
,, अरे छोड़,मै अभी चाय पी कर ही आ रहा हूं,,।