बदनसीब - 1 Suresh Chaudhary द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बदनसीब - 1

चाय का कप हाथ में लेकर धीरे धीरे कांपकपाते पैरों से आराम कुर्सी तक का सफ़र मेरे लिए ऐसा लगा, जैसे एक किलोमीटर का सफ़र। आराम कुर्सी के बराबर में पुराने स्टूल पर चाय का कप रख कर अपने आप को आराम कुर्सी पर बैठा दिया।
,, जब आपके बस का नही रहा तो क्यों जाते हों किचन में,,। नमिता के शब्द कानों में गूंज गए।
,, हां नमिता, शायद तुम ठीक ही कहती थी, लेकीन क्या करूं, पहले तुम साथ रहती थीं, अब तुम छोड़कर चली गई तो कुछ काम तो करने ही पड़ेंगे,,। बहुत ही धीमी आवाज़ में बड़बड़ाया मैं।
तभी बाहरी गेट पर सुभाष की आवाज़ सुनाई दी।,, अरे घर पर ही हों क्या,,।
,, अब इस उम्र में कहां जाऊंगा मैं,,।
,, अच्छा अकेले अकेले चाय के मजे लिए जा रहे हैं ,,। सामने सोफे की कुर्सी पर बैठते हुए सुभाष ने कहा।
,, ठिक है,मै अभी लाता हूं तेरे लिए भी,,। कहते हुऐ मैने उठना चाहा
,, अरे छोड़,मै अभी चाय पी कर ही आ रहा हूं,,।
,, और सुना, आज सुबह सुबह कैसे,,। मैंने पुछा
,, अरे कई दिन पहले तुमने ही तो कहा था,, मेरे लिए किसी खाना बनाने वाली की तलाश करने के लिए,,।
,, ओ हां कहा था, कोइ मिली क्या,,।
,, हां एक महिला है बेचारी विधवा है, एक लड़का है लेकिन नालायक, क्या किया जा सकता है लड़के ने घर में से निकाल दी थीं, तब से किराए के कमरे में अकेली रहती है और कई घरों में चूल्हा चौका करके अपना पेट भरती हैं,,।
,, ओह आजकल के बच्चों को क्या हों गया,,।
,, भाई आजकल हवा ही उल्टी चल रही, बूढ़ा होना पाप हों गया है,, खैर,, उस महिला से तुमने बात की या,,,।
,, की थी, वह तैयार भी है, सुबह के नाश्ते से लेकर शाम के खाना बनाने तक,,।
,, कितने पैसे देने होंगे उसे,,।
,, ज्यादा नही, केवल सात हजार रूपए महीना,,।
,, तब तो उस को कल से ही भेज देना,,।
,, अरे कल किसने देखा है, आज ही,, अभी थोड़ी देर में आने वाली है,,।
तभी बाहरी गेट पर हल्की थपथपाहट हुई।
,, लगता है आ गई,,।
,, अंदर बुला ले,,।मैने कहा
,, अंदर आ जाओ,,। सुभाष ने ऊंची आवाज में कहा
एक लगभग पचपन वर्षीय महिला, सूती साड़ी सलीके से पहनी हुई और सिर पर साड़ी का पल्ला, मुख मंडल पर सौम्यता, लगता है किसी अच्छे परिवार से हैं।
,, नमस्ते जी,,। आवाज में संस्कार झलकता हुआ।
,, नमस्ते,,।मैने जवाब दिया।
,, शारदा जी, यही है मेरा दोस्त, रिटायर्ड फौजी है हर बात में अनुशासन चाहता है,मैने आपको बताया था कि सुबह के नाश्ते से शाम के खाने तक,,।
,, जी, आपको या इन्हें शिकायत का अवसर नहीं दूंगी,,। शारदा ने संजीदगी से कहा।
,, ठिक है, काम पर लग जाओ,,।
,, जी किचन कहां है,,।
,, वो सामने ही,,। मैंने हाथ के इशारे से कहा।
,, अच्छा दोस्त, अब मैं चलता हूं,,।
,, चाय पी कर जाना,,।
,, नही फिर कभी,,। कहने के साथ ही सुभाष खड़ा हो कर चला गया।
चंद दिनों में ही शारदा ने मेरे घर को इस तरह से संभाल लिया जैसे नमिता अपने घर को संभालती थीं
,, शारदा जी, आपका कमरा दूर पड़ता है, आप चाहें तो मेरे गेस्ट रूम में रह सकती हो, बिना किराया दिए,,।
,, जी, मैं कल ही आपके गेस्ट रूम में शिफ्ट कर लूंगी,,। और शारदा जी ने खुद को मेरे गेस्ट रूम में शिफ्ट कर लिया।
एक दिन अचानक से मेरे तीनों लड़के और लड़की छाया भी आ गए और शारदा को देख कर,,, यह क्या पापा, आपको तो इस उम्र में शर्म आती नहि, हमें आपने इस लायक नहीं छोड़ा कि हम कहीं मुंह दिखा सकें,,।

,, क्यों क्या कर दीया मैंने,,।
,, अब भी आप पूछते हैं कि क्या किया मैंने, अरे सारा शहर आपकी रंग रलियो को जानता है,,।
,, रंग रलिया कहां कब,,।मै हैरान रह गया
,, यह औरत आपने अपनी रखैल बना कर अपने घर में रखी हुईं हैं और आप पूछते हैं कि, छी घिन आती हैं हमें यह सब कहने मे भी,,।
,, अच्छा अब समझा, तुम्हें इस बात का दुख है कि कोइ औरत मुझे दोनों टाईम खाना क्यों दे रही है,, तुम तीनों भाईयों को तो दिखाई नहीं देता कि तुम्हारा बाप कैसे खाना खाता होगा, कैसे रहता होगा, अब एक काम वाली घर में क्या रख ली कि गजब हों गया,,।
,, कुछ भी हो हम नही चाहते कि आप किसी गैर औरत को घर में रखें,,।
और अगले दिन तीनों लड़के और लड़की मुझ से लड़ झगड़ कर चले गए।
,, क्या गुनाह है मेरा या फिर बदनसीबी मेरी।।