Hindi Satsai Parampara book and story is written by शैलेंद्र् बुधौलिया in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Hindi Satsai Parampara is also popular in मानवीय विज्ञान in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
हिंदी सतसई परंपरा - उपन्यास
शैलेंद्र् बुधौलिया
द्वारा
हिंदी मानवीय विज्ञान
रबंध और मुक्तक का स्वरूप
और विशेषताएं
काव्य में एक विशेष बन्ध- एक विशिष्ट पूर्वाक्रम - की दृष्टि से उसके दो भेद स्वीकार किए गए हैं -प्रबंध और मुक्तक!
प्रबंध काव्य की रचना सानुबन्ध होती है- सर्ग बन्धो महाकाव्यम! जबकि मुक्तक काव्य अनुबन्धहीन होता है।
अग्नि पुराण में मुक्तक की परिभाषा-"मुक्तक श्लोक एकेकश्चमत्का रक्षुम सताम!" अर्थात मुक्तक श्लोक को पूर्वा पर क्रम के बिना एक ही चंद में चमत्कार उत्पन्न करने में समर्थ रचनाएं ।
प्रबंध काव्य में एक प्रवाह और क्रम आवश्यक है जबकि मुक्त काव्य में क्रम का स्थान नहीं है ।
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने मुक्तकों के दो भेद किए हैं -एक सरस मुक्तक, दो रसहीन व तथ्य व्यंजक मुक्तक!
मुक्तक का यह दूसरा भेड़ सूक्ति कहा जाता है, rs मुक्त मुक्तको में मम स्पर्शी वृतों का चुनाव कवि कौशल का परिचायक है और सूक्तिमुक्तकों में कवि की अभिव्यंजना का कौशल देखने को मिलता है ।
सतसई परंपरा और बिहारी भूमिका शैलेंद्र बुधौलिया काव्य भेद प्रबंध और मुक्तक का स्वरूप और विशेषताएं काव्य में एक विशेष बन्ध- एक विशिष्ट पूर्वाक्रम - की दृष्टि से उसके दो भेद स्वीकार किए गए हैं -प्रबंध और मुक्तक! ...और पढ़ेकाव्य की रचना सानुबन्ध होती है- सर्ग बन्धो महाकाव्यम! जबकि मुक्तक काव्य अनुबन्धहीन होता है। अग्नि पुराण में मुक्तक की परिभाषा-"मुक्तक श्लोक एकेकश्चमत्का रक्षुम सताम!" अर्थात मुक्तक श्लोक को पूर्वा पर क्रम के बिना एक ही चंद में चमत्कार उत्पन्न करने में समर्थ रचनाएं । प्रबंध काव्य में एक प्रवाह और क्रम आवश्यक है जबकि मुक्त काव्य में क्रम का
हिंदी की सूक्ति सतसैया - हिंदी में सूक्ति सतसैयों के अंतर्गत तीन सतसैयों की गणना की जा सकती है- तुलसी सतसई, रहीम सतसई और वृंद सतसई । 1.तुलसी सतसई – तुलसी सतसई में गोस्वामी तुलसीदास के भक्ति एवं नीति ...और पढ़ेदोहे संकलित हैं. यह सात वर्गों में विभक्त है, जिनमें क्रमश: भक्ति, उपासना, और परा भक्ति, राम भजन, आत्मबोध, कर्म सिद्धांत, ज्ञान सिद्धांत और राजनीति का स्वतंत्र विवेचन मिलता है- नीच चंग सम जानिवो सुनि लख तुलसीदास ! ढील देत महि गिरि परत खेंचत चढात अकास ! 2.रहीम सतसई - रहीम सतसई का अभी तक खंडित रूप ही उपलब्ध
हिंदी की श्रृंगार सतसईयां - हिंदी की श्रृंगार सतसईयों में बिहारी सतसई, मतिराम सतसई,निधि सतसई, राम सतसई और विक्रम सतसई की गणना होती है। डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने हिंदी साहित्य में बिहारी सतसई से ही हिंदी की ...और पढ़ेपरंपरा का प्रारंभ माना है कुछ विद्वानों का कहना है कि भले ही मतिराम सतसई के ग्रंथ का आकार बाद में किंतु बिहारी सतसई के आरंभ होने और समाप्त होने से पूर्व ही मतिराम अपनी सतसई के अधिकांश दोहों की रचना कर चुके थे ।मति राम के दोहों को सतसई का रूप बाद में प्राप्त होने से बिहारी सतसई को
विषय के अनुसार या संख्या की दृष्टि से सौ या अधिक मुक्तकों के संग्रह होते आए हैं ,हिंदी का सतसई शब्द संस्कृत के सप्तशती का ही तद्भव या विकृत रूप है, अतएव हिंदी में सतसई वह रचना है इसमें ...और पढ़ेकवि के सात सौ या उसके लगभग मुक्तक हो या मुक्तकों का संकलन हो । बिहारी सतसई - हिंदी की सतसई परंपरा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति बिहारी सतसई ही है। यह कृति महाकवि बिहारी की अप्रतिम लोकप्रियता का एकमात्र स्तंभ है और हिंदी साहित्य की सब विधाओं की कृतियों में महत्वपूर्ण स्थान की अधिकारिनी है। इसमें मुक्तक काव्य का चरम