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दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू - उपन्यास
Ravi Thakur
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
विंध्याचल पर्वत की लघु एवं उच्च श्रृंखलाओं, वनोपवन, अरण्यक उपत्यकाओं में विस्तारित, गंगा , यमुना, सिंध , नर्मदादि , पावन सलिलाओं की पुण्य धाराओं से आप्लावित पुलिंद धरा, अनादि काल से अन्यान्य संस्कृतियों, युगधर्मों की रंगभूमि तथा स्वर्गोपम जीवन की कालातीत केलिकुंज रही है ।
युग युगांतर से इस महान भूभाग की माटी में वैदिकता, पौराणिकता और इतिहासत्व के सृजन की गाथाओं के अनंत अधिष्ठान रहे हैं। रचनात्मक शौर्यानुक्रम, जहाँ इसे वीरप्रसूता स्थापित करता है, वहीं प्रेम, भक्ति, त्याग और बलिदान की सतत परंपराएँ, इसे देवत्व भाव की आख्याति प्रदान करती हैं ।
समृद्ध सांस्कृतिक भावभूमि, सृजनात्मक उत्सवप्रियता एवं उत्कट जिजीविषा से ओतप्रोत बुंदेली जनमानस, सदा सहज सचेतनता के शिखर पर रहा आया है। यहां के शासकों का हर युग की केंद्रीय सत्ता में प्रबल हस्तक्षेप अथवा प्रभाव रहा।
यह भारतवर्ष का वह पावन भूभाग है जहाँ आपद् समय, नारद, सनकादि, जमदग्नि, राम , कृष्ण तथा पांडवों ने भी शरण ली है ।
यही वह भूमि है, जहाँ दत्तात्रय, तुलसी, केशव, पद्माकर, भवभूति ने जन्म लिया। यही वो धरा है, जिसे महान राजपुरुषों अथवा महान नारियों सहित, महानतम संतो, मुनियों, तपस्वियों की साधनास्थली होने का गौरव प्राप्त है। इस पुण्य भूमि पर तपस्चर्या करने वाले महान ऋषि-मुनियों की अनंत श्रृंखलाओं के अलावा, विभिन्न राजवंशों के प्रादुर्भाव, सामुदायिक उद्भव तथा विकास की श्रेष्ठतम गाथाएं भी प्रतिष्ठित हैं ।
*रानी सीता जू* *'' बुंदेली इतिहास का एक उपेक्षित पात्र ''* (1679 - 1771) - रवि ठाकुर–-------------------------------------------------------–----------/-------------विंध्याचल पर्वत की लघु एवं उच्च श्रृंखलाओं, वनोपवन, अरण्यक उपत्यकाओं में विस्तारित, गंगा , यमुना, सिंध , नर्मदादि , पावन सलिलाओं की पुण्य ...और पढ़ेसे आप्लावित पुलिंद धरा, अनादि काल से अन्यान्य संस्कृतियों, युगधर्मों की रंगभूमि तथा स्वर्गोपम जीवन की कालातीत केलिकुंज रही है । युग युगांतर से इस महान भूभाग की माटी में वैदिकता, पौराणिकता और इतिहासत्व के सृजन की गाथाओं के अनंत अधिष्ठान रहे हैं। रचनात्मक शौर्यानुक्रम, जहाँ इसे वीरप्रसूता स्थापित करता है, वहीं प्रेम, भक्ति, त्याग और बलिदान की सतत परंपराएँ,
बुंदेलखंड के प्रत्येक राजवंश के राजपुरुष अथवा राज माहिषि पर, प्रथक-प्रथक दीर्घ आलेख लिखे गए और लिखे जा सकते हैं, किंतु बुंदेला राजवंश की दतिया शाखा के रियासत कालीन इतिहास की जिस कड़ी को, लेखकों , इतिहासकारों नेे लगभग ...और पढ़ेकर दिया, अथवा अनदेखा कर दिया, बल्कि कहा जाए तो, उपेक्षित कर दिया, वास्तविकता में, उस एक कड़ी के बगैर, दतिया राजवंश का उल्लेख अधूरा ही रहता है।कुछ इतिहासकारों ने, कुछेक महत्वपूर्ण घटनाओं में उनका उल्लेख तो जरूर किया, किंतु सतही तौर पर। बिना उक्त भूमिका का महत्व समझे। रानी सीता जू के व्यक्तित्व और कृतित्व का सत्यार्थ मूल्यांकन अब
3 जिस साइफन सिस्टम की आधुनिकता की हम बात करते हैं वह तो सीता जू ने अपने तालाबों में, जल संचय, जल निकास, जल प्रदाय, नहर चालन, पेयजल आपूर्ति, फव्वारे आदि के संचालनार्थ, आज से 300 वर्ष पूर्व ही ...और पढ़ेकर लिया था। नगरीय सौंदर्य, सिंचाई तथा पेयजल प्रदाय की इस वैज्ञानिक सोच के लिए कोटिसः प्रणम्य हैं महारानी सीता जू।सीता जू का जन्म 1679 ईस्वी में साँकिनी के परमार जागीरदार भरतपाल की पुत्री के रूप में हुआ। इनके बचपन का नाम कंचन कुंवरि था । 14 वर्ष की उम्र में इनका पाणिग्रहण, दतिया राज्य के तत्कालीन युवराज रामचंद्र के
//4// महाराजा दलपत राव ने 1694 से 1696 के मध्य, दतिया किले ( प्रतापगढ़ दुर्ग ) का निर्माण कराया। किले का नया परकोटा तथा किले के चारों तरफ खाई, भीतरी शस्त्रागार आदि बनवाए। प्रताप बाग, दिलीप बाग, राव बाग, ...और पढ़ेआदि का भी निर्माण कराया। इसी के साथ दतिया का नाम बदलकर दिलीपनगर किया। सन 1907 तक, राजकीय दस्तावेजों में दतिया का नाम दिलीप नगर ही चला किंतु आम जनमानस ने इसे दतिया ही बनाए रखा। रामचंद्र का जन्म 1675 में हुआ। रामचंद्र की मां चंद्र कुँवरि परमार नौनेर वाली, दलपत राव की चार रानियों में से मँझली रानी थीं।
6 अपने पुत्र रामसिंह को जन्म देने के बाद से ही, रानी सीता जू चिरगांव वास पर थीं। यहाँ उन्होंने एक सुरक्षित गढ़ी का निर्माण करवा कर, रामपुर बस्ती को आकार दिया। दुर्योग से, 1696 में ही दतिया के ...और पढ़ेमहल में एकांत निवास कर रही रामचंद्र की माँ का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उस समय वे लगभग परित्यक्ता का जीवन जी रही थीं और अपने परिवार से पूरी तरह कटी हुई थीं। मां की मृत्यु की खबर पाकर रामचंद्र एवं सीता जी दतिया पहुंच गये, परंतु दलपत राव दक्षिण में बड़े दायित्वों का निर्वाहन करने की