Datiya ki Bundela kshatrani Rani Sita ju - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

दतिया की बुंदेला क्षत्राणी रानी सीता जू - 2

बुंदेलखंड के प्रत्येक राजवंश के राजपुरुष अथवा राज माहिषि पर, प्रथक-प्रथक दीर्घ आलेख लिखे गए और लिखे जा सकते हैं, किंतु बुंदेला राजवंश की दतिया शाखा के रियासत कालीन इतिहास की जिस कड़ी को, लेखकों , इतिहासकारों नेे लगभग विस्मृत कर दिया, अथवा अनदेखा कर दिया, बल्कि कहा जाए तो, उपेक्षित कर दिया, वास्तविकता में, उस एक कड़ी के बगैर, दतिया राजवंश का उल्लेख अधूरा ही रहता है।
कुछ इतिहासकारों ने, कुछेक महत्वपूर्ण घटनाओं में उनका उल्लेख तो जरूर किया, किंतु सतही तौर पर। बिना उक्त भूमिका का महत्व समझे। रानी सीता जू के व्यक्तित्व और कृतित्व का सत्यार्थ मूल्यांकन अब तक नहीं हो सका।
जी हां। दतिया राज्य के इतिहास की वह विस्मृत कड़ी हैं महारानी सीता जू ।
महान पराक्रमी मराठों के दर्जन भर किलों सहित, जिंजी गढ़ विजेता दलपत राव के पुत्र दतिया नरेश राव रामचंद्र की पटरानी।
राजसत्ता में प्रभाव और हस्तक्षेप के लिए जिस प्रकार टीकमगढ़ ओरछा की लड़ई रानी का नाम लिया जाता है , उससे भी कहीं अधिक प्रभावशाली, शक्ति संपन्न, चतुर- चालाक, प्रजा वत्सल तथा विकास की मसीहा थी रानी सीता जू । महारानी सीता जू। राजमाता सीता जू। महाराज माता सीता जू। आजी महाराज सीता जू।
सीता जू दतिया के इतिहास का वह स्वर्णिम अध्याय हैं जो लोक किवदंतियों में ढल कर, अमिट हो गया।
सीता जू। एक बहुत संभ्रांत, सुशील, दयालु और संवेदनशील नारी। एक जिद्दी दुस्साहसी, बुद्धिमती एवं महत्वाकांक्षी राजकन्या। एक ही समय कुशल राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, सहिष्णु, सामाजिक, विकासवादी, धार्मिक भी और क्रूर शासक भी। कल्पनाशील, भविष्य दृष्टा, एकनिष्ठ सत्यधर्मा पत्नी और वात्सल्यमयी माँ के साथ-साथ राजधर्मा राजमहिषि । कहें तो , अकूत गुणों-विशेषताओं का देहरूप। अद्भुत भाव सामंजस्य। अलौकिक बुद्धि चातुर्य ।

अपने जीवन के 92 वर्षों में जहां रानी सीता जू ने सदा राजसत्ता के संघर्षों में अति महत्वपूर्ण , अविस्मरणीय, असंभव को भी संभव बना देने वाली भूमिकाएं निर्वाह कीं, वहीं दतिया राज्य के चप्पे-चप्पे पर, राजधानी दतिया के हर पग पर, विकास और सृजन की वह धारा प्रवाहित की, जिसकी चमक, आज भी देखने लायक है। जल विहीन दतिया नगर को जल आप्लावित करते निर्माण। व्यवसाय विहीन लघुतम राजधानी को आंचलिक व्यवसाय का बाजार और शक्ति केंद्र का स्वरूप। राम , कृष्ण, शिव, हनुमान, जगत जननी की अविरल भक्ति साधना का पावन स्वरूप। लघु वृंदावन का दतिया आव्हान। बृज और अवध की संस्कृति के केंद्र मंदिरों, आश्रमों की चहचहाहट, वर्ष भर उत्सवों की सतत धूम मचाती, हृदयस्पर्शी परंपरायें, जनमानस में सांस्कृतिकता, साहित्यिकता, सहिष्णुता और शौर्य का बीजारोपण। यही सब तो है रानी माँ सीता जू की देन, इस तपोभूमि दतिया को।
वस्तुतः दतिया को एक साधारण नगर से, तीर्थ स्थल, पर्यटन स्थल में बदलने वाली वही एकमात्र शक्ति है, जिसका नाम है रानी सीता जू।
आदिशक्ति मां पीतांबरा की कृपा प्राप्त करने दतिया में लाखों श्रद्धालु आते हैं । ऐतिहासिक शोध , पौराणिक, पुरातात्विक, प्राकृतिक, पर्यटन के लिए भी हजारों पर्यटक पहुँचते हैं ।

जिले में 4 तीर्थस्थल, स्वर्ण गिरी जैन तीर्थ, ब्रह्म बालाजी सूर्य तीर्थ, सनकुआ वैदिक तीर्थ, तथा सिंधी समाज का भारत में एक मात्र ज्योति तीर्थ । तीन शक्ति केंद्र, मां पीतांबरा शक्तिपीठ, माता माण्डूला सर्पदंश मुक्ति पीठ रतनगढ़, माता महाकाली तंत्र पीठ रामगढ़ ऊर्जायित हैं। इन प्राचीन और अर्वाचीन धर्म स्थलों के अतिरिक्त, समूचे भारत में अपने अलग और अनूठे निर्माण के लिए विख्यात, भारत में अपनी तरह का एकमात्र स्थापत्य, ओरछा नरेश वीर सिंह जूदेव प्रथम द्वारा सन 1614 से 1622 के मध्य स्वास्तिक आधार पर, ईरानी, राजस्थानी एवं बुंदेली स्थापत्य कला के मिश्रण से निर्मित, किवदंती बन चुका अद्भुत सतखंडा महल भी गौरवान्वित करता है।
लेकिन इन सब महानतम स्थापनाओं के अलावा, दतिया का जो वर्तमान स्वरूप दृष्टिगोचर होता है, वह देन है महारानी सीता जू की। चारों तरफ पहले पांच छोटे बांध, फिर बड़े-बड़े तालाबों का चतुर्दिशि दायरा, धार्मिक तीर्थनुमा घाट, बड़े छोटे दर्जनों आश्रम, बड़े-बड़े दर्जनों मंदिर, बाग-बगीचे, व्यवस्थित वस्तु केंद्रित बाजार, सुघड़ मार्ग परंपरा, यह सब जिसकी कल्पनाशीलता तथा रचनात्मकता का सृजन है, उसका ही नाम सीता जू है।

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