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दो औरते - उपन्यास
Kishanlal Sharma
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
"सुरेश तुम तो एकदम बदल गए,"वह आराम से बैठ भी नही पाया था कि विभा ने बंदूक की गोली की तरह प्रश्न दाग दिया था।
"नही तो।बिल्कुल वैसा ही हूँ।देख लो।कहा से बदला हुआ नजर आ रहा हूँ,"सुरेश,विभा की बात सुनकर बोला था।
"बस रहने दो।बातें मत बनाओ।क्या पहले तुम ऐसे ही थे।दुल्हन तो आते ही तुम पर जादू कर दिया।"विभा की आंखे लाल हो गयी और चेहरे पर गुस्सा उभर आया।"तुम्हारा ख्याल बिल्कुल गलत है।"सुरेश विभा का इशारा समझ गया।
पहले जब भी वह अपने गांव जाता और फिर लौटकर आता तो कभी भी सीधा अपने कमरे में नही जाता था।वह जब भी गांव से लौटता तो सीधा विभा के पास आता।विभा उसके लिए चाय बनाती और नास्ता निकाल कर लाती।उसके जाने के बाद मोहल्ले में क्या क्या हुआ।यह समाचार उसे बताती।उससे भी गांव के समाचार पूछती।
"सुरेश तुम तो एकदम बदल गए,"वह आराम से बैठ भी नही पाया था कि विभा ने बंदूक की गोली की तरह प्रश्न दाग दिया था।"नही तो।बिल्कुल वैसा ही हूँ।देख लो।कहा से बदला हुआ नजर आ रहा हूँ,"सुरेश,विभा की बात ...और पढ़ेबोला था।"बस रहने दो।बातें मत बनाओ।क्या पहले तुम ऐसे ही थे।दुल्हन तो आते ही तुम पर जादू कर दिया।"विभा की आंखे लाल हो गयी और चेहरे पर गुस्सा उभर आया।"तुम्हारा ख्याल बिल्कुल गलत है।"सुरेश विभा का इशारा समझ गया।पहले जब भी वह अपने गांव जाता और फिर लौटकर आता तो कभी भी सीधा अपने कमरे में नही जाता था।वह जब
कमरे में आकर उसने कपड़े बदले थे।फिर बेग खोला था।।उसने बैग में से खाना निकाला था।चलते समय निशा यानी उसकी पत्नी ने खाना रख दिया था।खाना खाकर उसने पानी पिया और फिर खाट पर पसर गया था।रात हो चुकी ...और पढ़ेसे उतरा अंधेरा कमरे में भी चला आया था।लेकिन उसने लाइट नही जलाई थी।छत पर टका पंखा पूरी गति से घूम रहा था।लेकिन गर्मी ज्यादा थी।सुरेश की नौकरी बैंक में लगी थी।उसकी पहली पोस्टिंग मोहब्बत की नगरी ताज में हुई थी।इस शहर में वह नया था।पहली बार इस सहर में आया था।उसके लिए यह शहर अपरिचित,अनजान था।उसने अपने साथी सहकर्मी
और वह घर खर्च के लिए पैसे और दुकान से सामान देना भी बन्द कर देता।और एज दिन सिथति ऐसी आती की विभा के पास पैसे भी खत्म हो जाते और घर के अंदर सामान भी नही बचता।तब घर ...और पढ़ेचूल्हा नही जलता और सब को भूखा ही सोना पड़ता।सुरेश से विभा ज का यह दुुुददेखा नही गया और विभा के सामने ऐसी परस्तहिती आने पर वह उसकी मदद करने लगा।वह खाने पीने का सामान लाने के अलावा विभा को खर्चे के लिय पैसे देने लगा।ऐसा अचानक नही हुआ।एज बार विभा का पति से झगड़ा हो गया।रामू ने घर आना
"पहली बार या पहले किसी औरत के साथतुम पहली हो"तुम अनाड़ी नही पूरे खिलाड़ी लगते हो।""धीरे धीरे और बन जाऊंगा"तो आगे का इरादा जाहिर कर रहे हो"शेर के मुह खून लग गया हैविभा उठने लगी तो सुरेश बोला,"अभी कहा ...और पढ़ेजी भरा नही"जी नही भरा लेकिन न तुमने देखा न मैने"क्या?"दरवाजा बंद नही किया।कोई बच्चा आ जाता तो"ओहो--सुरेश ने दरवाजा बंद कर दिया था।सुरेश ने अपना बदन फिर विभा के नंगे जिस्म से सटा दिया।विभा ने उसके गले मे अपनी बाहों डालदी।बाहर अभी भी बरसात हो रही थी कमरे में विभा और सुरेश के प्यार की बरसात होने लगी।एक बार
सुहागरात को को कमरे में जाने से पहले सुरेश का दिल बड़ी जोर से धड़क रहा था।सोच रहा था,न जाने कैसी होगी उसकी जीवन संगनी।बिना देखे और मील मा के जोर देने पर उसने शादी कर लज थी।तरह तरह ...और पढ़ेविचार,बाते उसके मन मे आ रही थी।और वह आखिर कमरे में पहुच ही गया।निशा पलंग पर लम्बा से घुघट निकाल कर पलंग पर बैठी हुई थी।अपनी नई नवेली दुल्हन को इस रूप में देखते ही सुरेश का माथा ठनका था।मा ने बताया था,निशा बी ए पास है।गांव की लड़की चाहे जितनी ही पढ़ ले लेकिन संस्कार जाते नही।निशा बी ए