"सुरेश तुम तो एकदम बदल गए,"वह आराम से बैठ भी नही पाया था कि विभा ने बंदूक की गोली की तरह प्रश्न दाग दिया था।
"नही तो।बिल्कुल वैसा ही हूँ।देख लो।कहा से बदला हुआ नजर आ रहा हूँ,"सुरेश,विभा की बात सुनकर बोला था।
"बस रहने दो।बातें मत बनाओ।क्या पहले तुम ऐसे ही थे।दुल्हन तो आते ही तुम पर जादू कर दिया।"विभा की आंखे लाल हो गयी और चेहरे पर गुस्सा उभर आया।"तुम्हारा ख्याल बिल्कुल गलत है।"सुरेश विभा का इशारा समझ गया।
पहले जब भी वह अपने गांव जाता और फिर लौटकर आता तो कभी भी सीधा अपने कमरे में नही जाता था।वह जब भी गांव से लौटता तो सीधा विभा के पास आता।विभा उसके लिए चाय बनाती और नास्ता निकाल कर लाती।उसके जाने के बाद मोहल्ले में क्या क्या हुआ।यह समाचार उसे बताती।उससे भी गांव के समाचार पूछती।
पर आज।सुरेश गांव से लौटा तो उसके पास न जाकर सीधा ऊपर अपने कमरे में चला गया था।उसने विभा को नीचे नही देखा था।पर फिर भी न जाने कैसे उसे उसके आने की भनक लग गयी और वह उसके पीछे पीछे ही चली आयी थी।विभा के चेहरे को देखकर लग रहा था।वह सुरेश के इस अप्रत्याशित व्यवहार और बदले हुए रुख से सख्त नाराज हैं।उसके गुस्से को शांत करने के लिए उसने बहाना बनाया,"आज गाड़ी लेट आयी है।गर्मी का मौसम और दिन भर का सफर 'सुरेश बोला,"इतना थक गया था कि मन कुछ देर आराम करने को कर रहा था।इसलिए तुम्हारे पास न आकर सीधा चला आया।"
"सुरेश तुम बहाने मत बनाओ।मैं नासमझ या बच्ची नही हूँ।मैं सब समझती हू।,"विभा ने लम्बी स्वास भरी,"मैने तुम्हे चाहा।तुमसे प्यार किया।तुम्हे अपना समझा और तुम्हारे चाहने पर अपने आप को तुम्हे समर्पित कर दिया।और एक तुम हो जो बीबी के आते ही बदल गए।सुरेश तुम मुझे भूल टी नही जाओगे?
विभा ने सुरेश का हाथ पकड़ लिया मानो वह न छोड़ने का वचन उससे मांग रही हो।
"तुम अपने समाचार बताओ।पति से लड़ाई झगड़ा तो नही हुआ "बात का विषय बदलने के लिए सुरेश ने कहा था।विभा कुछ बोल पाती या आगे कुछ कह पाती उससे पहले ,"मम्मी मम्मी की आवाज सुनाई पड़ी थी।नीचे आंगन से विभा का पुत्र सोनू आवाज लगा रहा था।विभा ने सुरेश का हाथ छोड़ दिया था।
"अभी तो मैं जा रही हूँ।रात को तुम्हारे पास आऊंगी।"विभा उसके कमरे से निकलकर सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी थी।
विभा के चले जाने के बाद सुरेश ने राहत की सांस ली थी।अगर सोनू आवाज न लगता तो न जाने कब तक विभा उससे गीले शिकवे करती रहती।उसे ताने मारती रहती।
सावन का महीना चल रहा था।सावन यानी रिमझिम बरसात और पुरवाई हवा का महीना।पर अभी तक बरसात का नामोनिशान नही था।अब भी ज्येष्ठ बैसाख जी सी सड़ी गर्मी पड़ रही थी।ऐसी गर्मी में पूरे दिन ट्रेन का सफर करने से सुरेश का शरीर चिपचिपा रहा था।उसने कपड़े उतारे और बाथरूम में नल खोलकर उसके नीचे जा बैठा।ठंडे जल का शरीर को स्पर्श बड़ा ही सुखद और सुहाना लग रहा था।वह काफी देर तक नल के नीचे बैठकर नहाता रहा।काफी देर बाद वह बाथरूम से निकला तो अपने आप को चुस्त,ताजा और प्रफुलित महसूस कर रहा था।