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छुटकी दीदी - उपन्यास
Madhukant
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
पात्र परिचय -
सलोनी - छुटकी दीदी
भाग्या - बड़ी बहन
ज्योत्सना - माँ
अमर - भाग्या का पति
देवी सहाय - नाना
शारदा देवी - नानी
सीताराम - माँ का चचेरा भाई
सुकांत बाबू - नायक
बिमला - सुकांत बाबू की माँ
सिमरन - छुटकी की सहेली
बबुआ, बेबी - भाग्या के जुड़वाँ बच्चे
अग्रवाल साहब व वीणा - ज्योत्सना के पड़ोसी
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- 1 -
प्रत्येक बार रविवार का दिन उबाऊ लगने लगा तो सलोनी अपनी चित्रकला में मस्त रहने लगी। इससे समय का सदुपयोग हो जाता और धीरे-धीरे उसके बनाए चित्रों का संग्रह होने लगा।
आज उसकी प्राचार्या ने स्कूल की स्मारिका के लिए एक आवरण चित्र बनाने का दायित्व सौंपा तो उनकी बात सुनकर वह बहुत खुश हुई थी - ‘सलोनी, मैं सोचती हूँ कि इस बार विद्यालय की वार्षिक पत्रिका का आवरण तुम अपने हाथों से बनाओ। जब हमारे पास चित्रकला के इतने निपुण अध्यापक हैं तो बाहर से चित्र क्यों बनवाएँ।’
‘जी मैम, धन्यवाद। हम पत्रिका के लिए दो-तीन चित्र बनाकर आपको दिखा देंगे, उनमें से जो आपको अच्छा लगे, चुन लेना।’
‘सलोनी, धन्यवाद तो मुझे तुम्हारा करना चाहिए। वास्तव में, तुम एक श्रेष्ठ शिक्षिका हो। कोई और शिक्षिका होती तो नाक-भौंह सिकोड़ती …. यही तो एक सच्चे कलाकार में खूबी होती है। वह अपने कर्त्तव्य-बोध से कभी पीछे नहीं हटता।’
‘मैम, यह तो हमारी पसन्द का काम है। हम ख़ुशी-ख़ुशी इस काम को करेंगे। कल रविवार है, सम्भव है, हम कल ही चित्र बना लें।’
(कैंसर जागरूकता पर केन्द्रित उपन्यास) डॉ. मधुकांत ————————————— पात्र परिचय - सलोनी - छुटकी दीदी भाग्या - बड़ी बहन ज्योत्सना - माँ अमर - भाग्या का पति देवी सहाय - नाना शारदा देवी - नानी सीताराम - माँ का ...और पढ़ेभाई सुकांत बाबू - नायक बिमला - सुकांत बाबू की माँ सिमरन - छुटकी की सहेली बबुआ, बेबी - भाग्या के जुड़वाँ बच्चे अग्रवाल साहब व वीणा - ज्योत्सना के पड़ोसी ——————————————————————————————- - 1 - प्रत्येक बार रविवार का दिन उबाऊ लगने लगा तो सलोनी अपनी चित्रकला में मस्त रहने लगी। इससे समय का सदुपयोग हो जाता और धीरे-धीरे उसके
- 2 - नाना जी का स्वर्गवास हुआ तब ज्योत्सना सलोनी को लेकर कोलकाता आई थी। ज्योत्सना के अतिरिक्त नानी जी की कोई सन्तान नहीं थी। इसलिए सब उत्तरदायित्व ज्योत्सना को ही पूरे करने होते थे। नाना देवी सहाय ...और पढ़ेमें बारदाने की दलाली करते थे तो नानी शारदा देवी अपना घर सँभालती थी। नानी पढ़ी तो थी केवल आठ दर्जे तक, लेकिन उनका गला बहुत मीठा था, इसलिए आस-पड़ोस के शादी-विवाह, तीज-त्योहार पर उनको बुलाया जाता और गाने का आग्रह भी किया जाता। नानी गाने के लिए भजन स्वयं लिखा करती थी। नाना जी प्रायः अस्वस्थ रहते थे, फिर
- 3 - बचपन का तो सलोनी को बहुत कुछ याद नहीं। माँ के पास तो वह आठ वर्ष तक की आयु तक रही। तीसरी कक्षा में माँ उसे नानी के पास छोड़ गई थी। भाग्या उससे दो वर्ष ...और पढ़ेथी। इतना तो उसे याद है कि बड़ी होने के कारण भाग्या उससे फल-मिठाई छीन कर खा जाया करती थी। सलोनी कभी उससे झगड़ा नहीं करती बल्कि भाग्या के व्यवहार को देखकर माँ ही उसे डाँटती, ‘बड़की, तुझे लाज नहीं आती, अपनी छुटकी से मिठाई छीन कर खा जाती हो।’ माँ हम दोनों को प्यार से छुटकी और बड़की ही
- 4 - नानी के पास ज्योत्सना का फ़ोन आया कि भाग्या की शादी निश्चित कर दी है। कानपुर का व्यापारी परिवार है। लड़का हमारी भाग्या से तो कम पढ़ा है, परन्तु लोहे की दुकान पर बैठता है, खूब ...और पढ़ेहै। घर का मकान, दुकान, ज़मीन, जायदाद सब अच्छा है। फ़ोन दूसरे कान से लगाकर कहा, ‘माई, परिवार थोड़ा लालची तो लगता है, परन्तु एक बार ताक़त लगा देंगे तो लड़की सारी उम्र सुख से रहेगी। शादी का दिन निश्चित होने पर आपको खबर दूँगी। आप दोनों एक सप्ताह पूर्व आकर सब काम सँभाल लेना।’ नानी हाँ-हूँ करते हुए सुनती
- 5 - सलोनी घर लौटी तो नानी मोबाइल पर माँ से बातें कर रही थी। उसे देखते ही नानी ने कहा, ‘लो, सलोनी भी आ गई है, उसी से बातें कर ले,’ कहते हुए नानी ने फ़ोन सलोनी ...और पढ़ेसौंप दिया। ‘प्रणाम माँ।’ ‘ख़ुश रहो बेटी सलोनी।’ ‘कैसी हो माँ?’ ‘कैसी हूँ, मैं क्या बताऊँ? कुछ समझ नहीं आ रहा, क्या करूँ? बड़की की शादी हुए तीन माह बीत गए। तुम तो नानी के साथ चली गई। सारा दिन घर मैं अकेली …। दिन पहाड़-सा लगता है। ना कुछ खाने को मन करता है, ना कुछ बनाने को। सुबह