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अशोक वाटिका की सीता - उपन्यास
Darshana
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
चिंतन एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से या समुदाय से जोड़ने की माध्यमी भावना है। इससे तो भगवान भी अछूते नहीं रहे है। तो भगवान के मनुज अवतार राम और उनकी भार्या सीता कैसे रहते?? शांतिप्रिय राम जब सीता हरण के समय उनकी चिंता में व्याकुल हुए तो उसकी परिणति कल्याण के मार्ग को खोजने में हुई। रावण के विनाश में हुई। जो सर्व के लिए चिंतन वहां श्री राम ने दिखाया, उसके कारण उनकी प्रतिष्ठा श्री को प्राप्त होने लगी।
किन्तु...........................……………………………
इससे पूर्व का एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम जानना जरूरी है जो अशोक वाटिका की सीता में आपको दिखेगा ।
पहली झलक
अशोक वाटिका की सीता
सीता केवल एक नाम नहीं एक मर्म है।
प्रकृति से जुड़े करुन्य मानव हृदय का स्पर्श है।
ये कथा दर्शाती है सीता के जीवन के सबसे कठिन संघर्ष को। सीता के कर्म को और सीता के सच्चे अर्थ को।
अशोक वाटिका की सीता का पावन अध्यायअब हुआ प्रारंभ........
क्या समझ पाएगा जगत उसके सच्चे त्यागो का अर्थ......
पढ़िए अशोक वाटिका की सीता।
चिंतन एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से या समुदाय से जोड़ने की माध्यमी भावना है। इससे तो भगवान भी अछूते नहीं रहे है। तो भगवान के मनुज अवतार राम और उनकी भार्या सीता कैसे रहते?? शांतिप्रिय राम जब सीता ...और पढ़ेके समय उनकी चिंता में व्याकुल हुए तो उसकी परिणति कल्याण के मार्ग को खोजने में हुई। रावण के विनाश में हुई। जो सर्व के लिए चिंतन वहां श्री राम ने दिखाया, उसके कारण उनकी प्रतिष्ठा श्री को प्राप्त होने लगी। किन्तु...........................…………………………… इससे पूर्व का एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम जानना जरूरी है जो अशोक वाटिका की सीता में आपको दिखेगा ।
रावण के सीता हरण के निर्मम कृत्य के साक्षी जटायु से सीता की व्यथा सुनकर राम अत्यंत पीड़ित आभास कर रहे थे। दूसरी ओर सीता जो इस अन्याय की भोगी रही थी, उसका मन भी हृदय भेदी पीढ़ा से ...और पढ़ेथा और उसके हांथो को जबरन पकड़ने वाले रावण का हृदय अथाह अहंकार से.....! जिसके मद में आकर सीता से वह बोला:- दिव्य चमकती मेरी सोने की लंका को देख रही हो सीता। तुम्हारा भविष्य ही तुम्हे उस कुटिया से यहां लाया है। सीता:- हां रावण। तुम सत्य कह रहे हो।। मेरा भविष्य ही मुझे यहां लेकर आया है। तुम्हारे
सीता मै जिसे प्रारब्ध अशोक वाटिका में लाया:-जानकी के दृढ़ निश्चय को सुन रावण का मन भी क्रोध से डोलने लगा। पर सीता का विश्वास अनंत स्तंभ सा कठोर उसके मुख के तेज से शोभित होने लगा। क्या यही ...और पढ़ेका चरम था???? जो सीता की वाणी में उस अशोक वाटिका के कण कण में व्याप्त हो रहा था। जिसके भीतर समाहित हो सीता को ऐसा रक्षा कवच मिल गया था जिसके आगे तीनों लोको को जीत सकने वाले लंकेश का बल भी छोटा था!!!! वास्तव में नारी की गरिमा से ही शक्ति की गरिमा होती हो। और जहां नारी