Bus ab aur nahi book and story is written by Saroj Prajapati in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Bus ab aur nahi is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
बस अब और नहीं! - उपन्यास
Saroj Prajapati
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
भाग- 1 विद्या सदन आज फूलों व सजा था और रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा रहा था।। द्वार पर सजा वंदनवार व घर के अंदर बाहर लगा सुंदर सा शामियाना विद्या सदन में हर आने वाले मेहमान का स्वागत कर रहे थे। विद्या सदन में पड़ोसी व रिश्तेदारों की खूब गहमागहमी लगी थी। पकवानों व मिठाइयों की खुशबू से घर के साथ साथ पूरा गली मोहल्ला महक रहा था। यह सब तैयारियां व आयोजन था विद्या जी की बड़ी बेटी सुरभि की शादी के लिए। विद्या जी की 2 बेटियां थी सुरभि और अवनी। आज सुरभि की मेहंदी थी। विद्या जी
भाग- 1 विद्या सदन आज फूलों व सजा था और रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा रहा था।। द्वार पर सजा वंदनवार व घर के अंदर बाहर लगा सुंदर सा शामियाना विद्या सदन में हर आने वाले मेहमान का स्वागत कर ...और पढ़ेथे। विद्या सदन में पड़ोसी व रिश्तेदारों की खूब गहमागहमी लगी थी। पकवानों व मिठाइयों की खुशबू से घर के साथ साथ पूरा गली मोहल्ला महक रहा था। यह सब तैयारियां व आयोजन था विद्या जी की बड़ी बेटी सुरभि की शादी के लिए। विद्या जी की 2 बेटियां थी सुरभि और अवनी। आज सुरभि की मेहंदी थी। विद्या जी
भाग- 2 दो भाईयों की इकलौती बहन और घर में सबसे बड़ी। अपने पापा के तो दिल का टुकड़ा थी वो। भाइयों से भी ज्यादा उसे प्यार करते थे पापा। हां मम्मी भी उसे खूब चाहती थी लेकिन पापा ...और पढ़ेतरह दिखाती नहीं थी। बहुत ही शांत स्वभाव की थी मम्मी। शायद उसनेे ये शांत स्वभाव मां से ही पाया था लेकिन इसी शांत और सरल स्वभाव का ही तो परिवार वालों ने फायदा!!!! उसने मन में आए नकारात्मक विचारों को जल्दी से एक और झटक दिया। वह इतने शुभ दिन वहीं बातें याद कर अपने मन को खराब नहीं
भाग-3 समय एक ऐसा मरहम है जो बड़े से बड़े जख्म को भर देता है और उसकी पीड़ा को कुछ हद तक कम कर देता है। जीवन आगे बढ़ने का नाम है। इसी फलसफे को अपना विद्या ने अपने ...और पढ़ेसे बिछड़ने के दर्द को अपने सीने में दफन कर लिया और अपनी घर गृहस्थी को संवारने में जुट गई। क्योंकि इसी में दोनों घरों की भलाई थी। समय अपने वेग से आगे बढ़ता रहा। इसी बीच मनोज ने अपनी इकलौती बहन की शादी बहुत ही अच्छे घर में बड़ी धूमधाम से की। उसके पापा के जाने के आघात से
भाग -4 बच्चों को खाना खिला कर वह लेट गई लेकिन नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। नींद तो उसे पहले भी नहीं आती थी। पहले अपने दुख में और अब बच्चों के भविष्य की चिंता में!! अब ...और पढ़ेघर की नौकरानी बन चुकी थी। जो सुबह से शाम तक काम करती ताने सुनती और उसके बाद भी उसे भरपेट खाना ना मिलता। जेठानी और उसके दोनों बच्चे बात बात पर उसकी बेटियों पर हाथ छोड़ने से बाज ना आते और सास उस पर!!! उसका स्वाभिमान और आत्मसम्मान एक छत और दो वक्त की रोटियों के तले दब कर