बस अब और नहीं! - 3 Saroj Prajapati द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बस अब और नहीं! - 3

भाग-3

समय एक ऐसा मरहम है जो बड़े से बड़े जख्म को भर देता है और उसकी पीड़ा को कुछ हद तक कम कर देता है।

जीवन आगे बढ़ने का नाम है। इसी फलसफे को अपना विद्या ने अपने पापा से बिछड़ने के दर्द को अपने सीने में दफन कर लिया और अपनी घर गृहस्थी को संवारने में जुट गई। क्योंकि इसी में दोनों घरों की भलाई थी।

समय अपने वेग से आगे बढ़ता रहा।

इसी बीच मनोज ने अपनी इकलौती बहन की शादी बहुत ही अच्छे घर में बड़ी धूमधाम से की।

उसके पापा के जाने के आघात से जो आज तक भी ना उबर पाई थी। वह थी विद्या की मां!!

अपने अंतर्मुखी स्वभाव के कारण वह अपने मन की पीड़ा किसी से कभी व्यक्त ना करती थी और अंदर ही अंदर एक गम में घुलती जा रही थी। वह अक्सर बीमार रहने लगी थी।

अपनी मां की हालत विद्या से ना देखी जाती। घर के कामकाज तो दोनों भाई मिलजुलकर कर ही लेते थे लेकिन उनके काम पर जाने के बाद मां बिल्कुल अकेली रह जाती और एक बीमार आदमी के लिए अकेलापन हमेशा ही घातक रहा है।

भाई काम करने लगा था इसलिए मनोज और विद्या ने एक अच्छी सी लड़की देख कर अपने बड़े भाई की शादी कर दी। घर में बहू आने से विद्या की मां का दुख कुछ कम हुआ। अब अपने मायके की तरफ से विद्या थोड़ी निश्चिंत हो गई थी।

समय बीतता गया और अवनी के रूप में विद्या ने दूसरी बेटी को जन्म दिया। इस बार मनोज को छोड़कर किसी ने खुशी जाहिर ना की। सभी के चेहरे लटके हुए थे। सास बार-बार बस एक ही बात कहती। एक लड़का सा हो जाता तो मेरे मनोज का बुढ़ापा सुधर जाता।

मनोज के सामने विद्या को कुछ कहने की मां बेटी की हिम्मत ना थी लेकिन आगे पीछे होते ही वह सुनाने में कसर ना रखते।

मनोज को भी घर के मातमी माहौल और सबके उतरे चेहरे देख अंदाजा हो गया था

इसलिए पहले उसने प्यार से और फिर कड़े शब्दों में अपनी मां और बहन को कह दिया था कि मेरी दोनों बेटियां ही मेरे बेटे हैं इसलिए मैं नहीं चाहता कि इनके बारे में कोई कुछ भी कहे और हां साथ ही विद्या को भी वरना!!!

मनोज का कड़ा रुख देख मां बेटी ने चुप्पी साध ली। विद्या की ननंद कुछ दिनों बाद वापस अपनी ससुराल चली गई ।

धीरे धीरे उसके सास ससुर भी दोनों पोतिया को स्नेह करने लगे। उन्होंने दिल से अपनी पोतियों को स्वीकार कर लिया था या सिर्फ मनोज के कारण!! जो भी था! विद्या को तसल्ली थी कि आखिर उसकी बेटियों को दादा-दादी का स्नेह मिल रहा है।

समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा।

विद्या की शादी की दसवीं सालगिरह आने वाली थी मनोज ने इस बार बड़ी धूमधाम से अपनी शादी की सालगिरह मनाने का फैसला किया था। जिसकी तैयारियों में वह महीना भर पहले ही लग गया था। विद्या भी कम उत्साहित ना थी। अपनी साड़ी से लेकर गहने व श्रृंगार के एक एक सामान को बड़ी देखभाल कर पसंद कर रही थी। वह भी इस दिन को यादगार बनाने में कोई कोर कसर ना रखना चाहती थी। मनोज जी को उपहार में देने के लिए उसने अपने घर खर्च की बचत से बहुत ही खूबसूरत चेन बनवाई थी।

और अपनी सास ननद और भाभी के लिए भी उनकी पसंद की साड़ियां दिलवाई।

मां के लिए भी एक सुंदर सी साड़ी, उनके मना करने के बावजूद भी उसने खरीद कर उन्हें भेंट करते हुए,उस दिन पहन कर आने के लिए सप्रेम आग्रह किया।

मनोज जी ने उस दिन पहनने के लिए उसे सुर्ख लाल रंग की कांजीवरम की साड़ी दिलाई थी।

लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।

सालगिरह से 2 दिन पहले मनोज किसी काम से अपनी मोटरसाइकिल से जा रहा था। लेकिन रास्ते में एक तेज रफ्तार ट्रक ने उसे पीछे टक्कर मार दी।। सिर पर गहरी चोट आने की वजह से उसे बचाया ना जा सका।

विद्या का तो संसार ही उजड़ गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि मनोज जी उसे यूं बीच मझधार में छोड़कर जा सकते हैं। एक पल में ही उसकी दुनिया उजड़ गई। सालगिरह की खुशियां मातम में और वो सुर्ख लाल साड़ी सफेद लिबास में बदल गई। उस एक हादसे ने उसके जीवन से सारे रंग छीन लिए।

मनोज को गुजरे छह महीने हो गए थे लेकिन विद्या उस दुख से बाहर ना निकल सकी थी। उसे ना अपने तन का होश था, ना अपने बच्चों का और ना ही घर बार का!!

मशीन की तरह पूरा दिन घर का काम करती और कमरे में बैठ रात दिन अकेले रोती रहती।

एक दिन रात को खाना बना वह अपने कमरे में बैठ अपने ही दुख में आंसू बहा रही थी कि अवनी के रोने की आवाज ने उसे मानो नींद से जगाया हो।

देखा तो अवनी रो रही थी और सुरभि उसे चुप करा रही थी।

"क्या बात है सुरभि! अवनी रो क्यों रही है!"

"मम्मी, इसे भूख लगी है !!"

"तो बेटा जाकर दादी से खाना ले लो।"

"दादी कह रही है खाना खत्म!!"

"खाना खत्म! अभी तो मैं बना कर आई थी!!" वह अचंभित होते हुए बोली।

" अच्छा रुक मैं लेकर आती हूं।"कह विद्या रसोई में खाना लेने गई तो देखा जेठ जेठानी सास के साथ बैठ हंस हंस कर बातें करते हुए खाना खा रहे थे।

उन्हें अपने सास-ससुर के साथ ऐसे बैठा देख उसे अपनी आंखों पर विश्वास ना हुआ।

वह तेजी से रसोई में गई लेकिन ये क्या!! खाने के बर्तन खाली थे। यह देखकर विद्या अपनी सास से बोली "मम्मी, बच्चों ने खाना नहीं खाया!!"

"तो इसमें हमारी क्या गलती! तेरे बच्चे हैं! खिलाती क्यों नहीं। सारा दिन बैठ कमरे में आराम करती है। तेरे बच्चों को पालने की जिम्मेदारी भी हमारी है क्या!!" उसकी सास चिल्लाते हुए बोली।

"यह क्या कह रही है आप! काम तो मैं करती हूं ना!!!"

"काम करती है तो खाती भी है ना! तीन तीन जनों का बोझ! मुफ्त में बिठाकर खिलाएंगे क्या तुम्हें अब!!" उसके ससुर बोले।

सुनकर विद्या सन्न रह गई! आज तक उसके पति के सामने कभी किसी ने उसे इस तरह बात नहीं की थी। परिवार के हर सदस्य की इच्छा का वह कितना ध्यान रखते थे । जितना पैसा कोई मांगता बिना हिसाब-किताब लिए उन्हें देते और आज उनके बीवी बच्चों का दो वक्त का खाना उन्हें बोझ लग रहा था।

विद्या कुछ नहीं बोली। वह तो शुरू से ही किसी के ऊंचा बोलने से डर जाया करती थी। वह तो मनोज जी का प्यार था। जो उसे इस डर से बाहर ले आया था लेकिन अब वो ही नहीं रहे तो उस पर फिर से वही डर हावी हो गया। वह कुछ ना बोली चुपचाप रसोई में जाकर। परात उठा कर जैसे ही आटा गूंथने लगी। उसकी जेठानी चिल्लाते हुए आई और बोली "आज तो दोबारा खाना बनाने बैठ गई लेकिन आज के बाद अगर तुमने यह हरकत की तो सही ना होगा! एक कमानेवाला कितने जने खाने वाले।

मेरा आदमी कोई कोल्हू का बैल नहीं। बहुत मेहनत से कमाता है!"

विद्या ने अपनी सास की तरफ देखा तो वह अपनी बड़ी बहू की हां में हां मिलाते हुए बोली "सही कह रही है यह! अब हम तो बुढ़ापे में कहां कमाने जाएंगे। इन दोनों ने ही हमारी जिम्मेदारी ली है ।

और हां! तुझे भी अगर यहां रहना है तो चुपचाप घर का सारा काम धंधा करती रह वरना दरवाजा खुला है!!"

विद्या को यकीन नहीं हो रहा था कि इतने सालों से उसकी सास की कभी बड़ी बहू से बनी नहीं और आज अपने स्वार्थ की खातिर दोनों कैसे एक हो गई।

उसने दो रोटियां सेंकी और लाकर अपने बच्चों को खिलाई।

इन 6 महीनों में कभी उसने अपने बच्चों पर ध्यान ना दिया। दोनों के फूल से चेहरे कैसे मुरझा गए थे। उसके सामने ही आज उन्होंने रोटी देने से मना कर दिया तो पीछे से!!!

हे भगवान!! वह अपने दुख में इतनी अंधी हो गई थी कि अपने बच्चों का दुख भी ना देख पाई। उसने सोच लिया था कि अब वह यहां नहीं रहेगी लेकिन जाएगी कहां!!! मां तो उसके दुख से वैसे ही बिस्तर में लग गई और भाई भाभियों ने इन 6 महीनों में एक बार भी मुड़कर उसका हाल-चाल ना पूछा। शायद इसलिए भी उसके ससुराल वाले आंखें दिखा रहे हैं। पता है अब आगे पीछे कोई  नहीं है!!!

क्रमशः

सरोज ✍️