Maalgaadi ka Safar book and story is written by शिव प्रसाद in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Maalgaadi ka Safar is also popular in हास्य कथाएं in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मालगाड़ी का सफ़र - उपन्यास
शिव प्रसाद
द्वारा
हिंदी हास्य कथाएं
विनोद को फ़िल्में देखने का बहुत शौक़ था । उसका बस चलता, तो रोज़ एक फ़िल्म देख लेता । लेकिन तब, यानी १९७० के दशक में तो कई फ़िल्में छोटे शहरों और कस्बों तक में भी चार-छः हफ्ते चल ही जाती थीं, कुछ तो दस-बारह हफ़्ते भी । वैसे विनोद के लिए यह कोई अड़चन थी ही नहीं । फिल्म अगर बहुत ऊबाऊ न हो, तो दोबारा देख लेता, ठीक-ठाक हो, तो तिबारा, और बहुत धाँसू हो, तो फिर गिनती ही छूट जाती । असली चुनौती थी, टिकट के पैसों का बन्दोबस्त करना, जो बिल्कुल आसान नहीं था ।
ओड़िशा के राउरकेला शहर के पास टाटा कम्पनी का यह एक छोटा ' टाउनशिप ' था, क्वारीसाइडिंग । १९६० और ७० के दशक में यहाँ बहुत चहल-पहल थी । यहाँ की खानों से डोलोमाइट के अयस्क का उत्खनन किया जाता था । फिर उसका शोधन होता था, जिसके बाद छोटे पत्थरों के आकार में खण्डित कर, भारतीय रेल की मालगाड़ियों में लाद दिया जाता था, और टाटा कम्पनी के ही जमशेदपुर-स्थित इस्पात के कारखाने में भेज दिया जाता था । वहाँ इसको लोहा और अन्य धातुओं के साथ मिश्रित कर इस्पात के विविध प्रकार के उत्पाद बनते थे । वैसे, राउरकेला में भी एक बहुत विशाल इस्पात कारखाना था, लेकिन यह केन्द्र सरकार द्वारा संचालित स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इन्डिया के अधीनस्थ था, सो इसके लिए अयस्क और धातु अन्य खानों से आते थे ।
भाग १ ... विनोद को फ़िल्में देखने का बहुत शौक़ था । उसका बस चलता, तो रोज़ एक फ़िल्म देख लेता । लेकिन तब, यानी १९७० के दशक में तो कई फ़िल्में छोटे शहरों और कस्बों तक में भी ...और पढ़ेहफ्ते चल ही जाती थीं, कुछ तो दस-बारह हफ़्ते भी । वैसे विनोद के लिए यह कोई अड़चन थी ही नहीं । फिल्म अगर बहुत ऊबाऊ न हो, तो दोबारा देख लेता, ठीक-ठाक हो, तो तिबारा, और बहुत धाँसू हो, तो फिर गिनती ही छूट जाती । असली चुनौती थी, टिकट के पैसों का बन्दोबस्त करना, जो बिल्कुल आसान नहीं
भाग - २... क्वारीसाइडिंग स्टेशन को देखकर लगता था कि रेलवे प्राधिकरण ने इसके निर्माण का प्रारम्भ करने के बाद इसे प्रारम्भिक अवस्था में ही छोड़ दिया । ढाई प्लॅटफार्म थे, जिनमें से दो तो पसींजर और मालगाड़ियों के ...और पढ़ेथे । इन दोनों प्लॅटफार्म में उचित ऊँचाई के लिए कोई ढाँचा नहीं था, न सीमेंट का, न पत्थर का । बस मिट्टी, कंकर और घास के तिनके । ऊपर न कोई टीन-टप्पर, न खपरैल । न पीने का पानी, न शौचालय । यानी यात्रियों, विशेषतः महिलाओं, बुज़ुर्गों और बाधित लोगों को काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती थी । तीसरे प्लॅटफार्म
भाग - ३ ( अन्तिम भाग ) मालगाड़ी को रुके कुछ देर हो चुकी थी, लेकिन डिब्बे के भीतर की शून्यता शायद विनोद के दिमाग में भी फैल गई थी । इसीलिए झटके और धक्कों का थम जाना वह ...और पढ़ेभाँप नहीं पाया । लेकिन अगले ही क्षण वह खड़ा हो गया । उसकी सभी इन्द्रियाँ सतर्क हो चुकी थीं । बाहर काफ़ी रोशनी थी । ज़रूर कोई स्टेशन आया होगा । लेकिन क्वारीसाइडिंग के बाद इतना बड़ा स्टेशन तो राउरकेला का ही था । तो क्या वह वापस राउरकेला पहुँच चुका था ? मालूम करने का एक ही तरीक़ा