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गुनहगार - उपन्यास
Kishanlal Sharma
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
अंततः माया मर गयी।उसकी लाश दो दिन तक अस्पताल में लावारिस पड़ी रही। लेकिन उसे लेने के लिए कोई नही आया।आखिर अस्पताल वालों को ही उसके क्रियाकर्म की व्यस्था करनी पड़ी।
माया अनाथ नही थी।उसके माता पिता,पति और बच्चे भी थे।फिर भी आ अंतिम समय मे कोई उसके पास नही था।उसकी मौत अस्पताल में लावारिस की तरह हुई थी।जिसके लिए कोई और नही वह स्वंय ही जिम्मेदार थी।
माया का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था।माया के पिता रामलाल टीचर थे।माँ कलावंती ज्यादा पढ़ी लिखी नही थी।परंतु समझदार औरत थी।वह शिक्षा के महत्व को अच्छी तरह समझती थी।वह जानती थी कि शिक्षा औरत को गुणी ही नही बनाती वरन उसका सर्वागीण विकास भी करती है।इसलिए उसने अपनी बेटी माया को हमेशा पढ़ने के लिए प्रेरित किया था।यह मां की प्रेरणा का ही असर था कि रामलाल के खानदान में एम ए तक शिक्षा प्राप्त करने वाली माया पहली लड़की थी।
माया की पढ़ाई पूरी होते ही रामलाल ने अपनी बेटी के लिए वर की तलाश शुरू कर दी।कुछ प्रयासों के बाद उन्हें सु धीर मिल गया था।
अंततः माया मर गयी।उसकी लाश दो दिन तक अस्पताल में लावारिस पड़ी रही। लेकिन उसे लेने के लिए कोई नही आया।आखिर अस्पताल वालों को ही उसके क्रियाकर्म की व्यस्था करनी पड़ी।माया अनाथ नही थी।उसके माता पिता,पति और बच्चे भी ...और पढ़ेभी आ अंतिम समय मे कोई उसके पास नही था।उसकी मौत अस्पताल में लावारिस की तरह हुई थी।जिसके लिए कोई और नही वह स्वंय ही जिम्मेदार थी।माया का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था।माया के पिता रामलाल टीचर थे।माँ कलावंती ज्यादा पढ़ी लिखी नही थी।परंतु समझदार औरत थी।वह शिक्षा के महत्व को अच्छी तरह समझती थी।वह जानती थी
"तो बाहर घूम आया करो।""कहाँ?माया ने प्रश्न सूचक नज़रो से पति को देखा था।"जहां भी तुम्हारे जाने का मन करे""अकेली?"पति कज बात सुनकर माया बोली थी।"औरत अंतरिक्ष मे जा पहुंची है और तुम?यह तुम्हारे मायके का कस्बा नहीं है।यह ...और पढ़ेहै।यहां की औरते अकेली कहीं भी आ जा सकती है।और तुम पढ़ी लिखी हो।फारवर्ड बनो।घर से अकेली बाहर आने जाने की आदत डालो।शुरू में अटपटा लगेगा लेकिन फिर आदत पड़ जाएगी।"माया ने पति को अपने अनुसार बदलने की हर तरह से कोशिश की।पर वह ऐसा नही कर पायी।तब उसने अपने को ही बदल डाला।उसने अपने को पति के विचारों चाहत
सुधीर और माया की जोड़ी बेमेल थी।फिर भी माया के मन मे कभी यह ख्याल नही आया था कि उसे पति मन पसन्द नही मिला।या वह पति को नही चाहती।लेकिन राजेन्द्र के सम्पर्क में आने के बाद पहली बार ...और पढ़ेमन मे ख्याल आया था कि देहज के अभाव में उसे वैसा पति नही मिला जैसा वह चाहती थी।उसके मन मे यह विचार आने पर राजेन्द्र उसे अच्छा लगने लगा और वह उसकी बातों में रुचि लेने लगी।पहले राजेन्द्र प्यार की बाते ही करता था।लेकिन धीरे धीरे वह माया के शरीर का स्पर्श भी करने लगा।माया ने उसकी इस हरकत
सुधीर ने पत्नी से साफ शब्दो मे कुछ नही कहा लेकिन घुमा फिराकर बहुत कुछ कह दिया।पति की बात माया ने सुन तो ली लेकिन उस पर कोई असर नही हुआ।राजेन्द्र के प्यार में वह अंधी हो किH चुकी ...और पढ़ेके प्यार का उस पर ऐसा भूत सवार हो चुका था कि उसने पति की बात को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया। माया की अवस्था देख कर वह शंकित हो चुका था।इसलिय एक दिन वह समय से पहले घर लौट आया।और डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोलकर दबे कदमो से अंदर आ गया।और राजेंद्र के कमरे में
मायाअपने बच्चों को आवाज देकर अपने पास बुलाने का प्रयास करती।लेकिन बच्चे उसकी आवाज सुनकर भी अनसुना कर देते।और बच्चों के लगातार ऐसा करने पर एक दिन वह घर से बाहर निकल कर बच्चों के पास जा पहुंची।"मै तुम्हारी ...और पढ़ेहूँ।"माया की बात सुनकर बच्चे चुप रहे।तब वह बच्चों से बोली,"तुम्हारा मन नही करता अपनी मां से बात करने का?"" हमारी मां तो मर गयी।""किसने कहा तुम से?"बच्चों की बात सुनकर माया बोली थी।"हमारे पापा ने""बेटा यह झूंठ है।तुम्हारी माँ मरी नही है।मै ही तुम्हारी माँ हूँ।""ऐसी माँ से तो हम बिना माँ के ही अच्छे है।"अपने बच्चों का जवाब