"तो बाहर घूम आया करो।"
"कहाँ?माया ने प्रश्न सूचक नज़रो से पति को देखा था।
"जहां भी तुम्हारे जाने का मन करे"
"अकेली?"पति कज बात सुनकर माया बोली थी।
"औरत अंतरिक्ष मे जा पहुंची है और तुम?यह तुम्हारे मायके का कस्बा नहीं है।यह मुम्बई है।यहां की औरते अकेली कहीं भी आ जा सकती है।और तुम पढ़ी लिखी हो।फारवर्ड बनो।घर से अकेली बाहर आने जाने की आदत डालो।शुरू में अटपटा लगेगा लेकिन फिर आदत पड़ जाएगी।"
माया ने पति को अपने अनुसार बदलने की हर तरह से कोशिश की।पर वह ऐसा नही कर पायी।तब उसने अपने को ही बदल डाला।उसने अपने को पति के विचारों चाहत के अनुरूप ढाल लिया।उसका मन साज श्रंगार से हट गया
पति का व्यवहार देखकर उसके साथ घूमने की इच्छा भी खत्म हो गयी।और धीरे धीरे दस साल गुजर गए।और इन बीते दस सालों में वह दो बच्चों की माँ भी बन गयी।
एक दिन सुबह सुबह काल बेल बजी थी।माया ने पहले तो सोचा इतनी सुबह कौन आ सकता हैं।फिर कुछ देर बाद फिर काल बेल बजी तो उसे बिस्तर से उठना ही पड़ा था।उसने दरवाजा खोला।एक सुंदर ,सजीला नोजवान खड़ा था।उसे दखकर वह बोली,"जी आपको किस्से मिलना है?"
"सुधीर भाई साहिब यही रहते है?"उस युवक ने पूछा था।
"हां"माया बोली,"आप कौन है?"
" मेरा नाम राजेन्द्र है।मै बरसाना से आया हूँ,"वह लिफाफा माया को देते हुए बोला,"यह चिटठी।"
"अंदर आ जाइये।"
सुधीर के दूर के रिश्ते के एक मौसाजी बरसाना में रहते थे।राजेन्द्र मौसाजी के दोस्त का लड़का था।राजेन्द्र मुम्बई एक कम्पनी में ट्रेनिंग के लिए आया था।मौसाजी ने राजेन्द्र के रहने की व्यस्था करने के लियर पत्र लिखा था।पत्र पढ़कर सुधीर बोला,"अभी मेरे जाने का समय हो गया है।अभी तुम यहीं रहो।रात को बात करेंगे।"
सुधीर चला गया।राजेन्द्र नहा धोकर तैयार होकर चला गया। वह कम्पनी में जाकर सारी औपचारिकतायें पूरी कर आया था।रात को सुधीर लौटा तब राजेन्द्र ने पूछा था,"मेरे रहने की व्यस्था की?"
"तुम्हारी कितने दिन की ट्रेनिंग है?"
"नौ महीने की।"
सुधीर कुछ देर सोचने के बाद बोला,"माया अपना ऊपर वाला कमरा खाली पड़ा है।उस मे रह लेगा।नौ महीने के लिए कहां कमरा लेगा।तुम्हे भी अकेलापन महसूस नही होगा।"
और राजेंद्र पेइंग गेस्ट के रूप में सुधीर के मकान में ही रहने लगा।राजेन्द्र सुबह दस बजे घर से निकलता और शाम को चार बजे तक वापस लौट आता।सुधीर सुबह आठ बजे तक घर से निकल जाता और रात को दस बजे तक वापस लौटता।पति के जाने के बाद माया बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयार करती और फिर उन्हें स्कूल बस तक छोड़कर आती।फिर आवाज देकर राजेन्द्र को नीचे बुला लेती।फिर वह चाय बनाती। दोनो बैठकर चाय पीते।चाय पीते हुए वे बाते करते रहते।फिर राजेन्द्र तैयार होता और खाना खाने के बाद घर से निकल जाता।
कुछ ही दिनों में माया और राजेंद्र ऐसे घुल मिल गए थे मानो दोनो एक दूसरे से वर्षो से परिचित हो।वे दोनों घण्टो बैठे बातें करते रहते।पहले उनकी बातों का विषय इधर उधर की बाते होती।फिर न जाने कब वे प्यार की बाते करने लगे।मीठी रसीली मादक बातें।
माया छरहरे बदन की सुंदर युवती थी।दस वर्षों के दाम्पत्य जीवन मे वह दो बच्चों की माँ बन चुकी थीं।फिर भी वह अपनी उम्र से पांच सात साल छोटी ही लगती थी