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वह स्त्री थी या जिन्न - उपन्यास
Shwet Kumar Sinha
द्वारा
हिंदी डरावनी कहानी
जब से फैक्ट्री मे मेरी दूसरी पाली की शिफ्ट ड्यूटी लगी थी, तब से रात्रि में घर जाने मे काफी देर हो जाया करता था। ऑफिस से घर की दूरी यही करीब एक किलोमीटर की रही होगी।
जब तक बहुत जरूरी ना हो, रात मे घर आने-जाने के क्रम में रास्ते मे पड़ने वाली सुनसान गालियां, जिनसे होते हुए घर जल्दी पहुँच तो सकता था, पर उन गलियों को पकड़ना मैं पसंद न करता था।
क्यूंकि एक तो वहाँ घात लगाकर बैठे चोर–उचक्कों का खतरा रहता, तो दूसरी तरफ कुत्ते बहुत भौकतें थें उधर – जिससे मुझे डर लगता था।
इसलिए, हमेशा पक्की सड़क वाले मुख्य मार्ग से ही घर जाया करता।
उस रात हवा बहुत तेज़ चल रही थी और शायद ज़ोरों की बारिश भी होने वाली थी।
“रात के करीब 12 बजे हैं, बच्चे भी सो गए होंगे। पत्नी, निर्मला भी मेरे बिना खाना नहीं खाती, सो खाली पेट मेरी राह देखती होगी।” - यही सब सोचते और टिफिन बॉक्स हाथ मे लटकाए मैं तेज़ कदमों से घर की तरफ निकल पड़ा।
जब से फैक्ट्री मे मेरी दूसरी पाली की शिफ्ट ड्यूटी लगी थी, तब से रात्रि में घर जाने मे काफी देर हो जाया करता था। ऑफिस से घर की दूरी यही करीब एक किलोमीटर की रही होगी। जब तक ...और पढ़ेजरूरी ना हो, रात मे घर आने-जाने के क्रम में रास्ते मे पड़ने वाली सुनसान गालियां, जिनसे होते हुए घर जल्दी पहुँच तो सकता था, पर उन गलियों को पकड़ना मैं पसंद न करता था। क्यूंकि एक तो वहाँ घात लगाकर बैठे चोर–उचक्कों का खतरा रहता, तो दूसरी तरफ कुत्ते बहुत भौकतें थें उधर – जिससे मुझे डर लगता था।
……अपनी तरफ आती उस स्त्री को देखकर ही साफ प्रतीत हो रहा था कि वह भी तेज़ी से इस सुनसान अंधेरी गली को ही पार करना चाह रही है । सफ़ेद साड़ी पहने होने के कारण उसे अंधेरे में ...और पढ़ेपाना आसान था । अब मुझे थोड़ा इत्मीनान हुआ और शांत मन से आगे बढ़ता रहा । तभी, ऐसा महसूस हुआ कि वह स्त्री बिलकुल मेरे पीछे आकर खड़ी हो गयी हो और मुझे आवाज़ दे रही है –“थोड़ा रुकिए”। मैं पीछे पलटा। सच में वह कुछ कहना चाह रही थी। बड़ी-बड़ी आँखें, चेहरे पर अजीब सा तेज़ – जैसे
…अगले दिन, फिर अपनी दिनचर्या शुरू हो गयी। तड़के–तड़के उठकर सुबह का व्यायाम । नहा धोकर बेटे को विद्यालय पहुँचाना । नाश्ता कर के फिर ऑफिस को भागना। काम के दबाव से कब सुबह से दोपहर हो गया, पता ...और पढ़ेन चला । मेरे सहकर्मियों ने खाना खा लेने को कहा। हमलोग आपस में बतियाते हुए खाना खाने लगें। बातचीत के क्रम में सामने वाले की अंगूठी देख मुझे बीती रात की घटना याद आ गयी। बीती रात की घटी सारी घटना मैंने उन लोगों को बताई। फिर क्या ! सबको खिंचाई करने का जैसे बहाना मिल गया हो -
……और फिर मुझे थका हुआ देख कर ज्यादा कुछ न बोली। अगली सुबह जब उठा तो मेरा सिर भारी लग रहा था । सो, बिछावन पर लेटा ही रह गया। बच्चों को आज स्कूल भी नहीं पहुंचा पाया। निर्मला ...और पढ़ेही उन्हे स्कूल छोड़ने को जाना पड़ा। अपने रसोई के कुछ काम खत्म करके वह मेरे सिराहने आकर बैठी, और पुछी- “क्या बात है, इतना चिंतित क्यूँ हैं ? कल रात भी आप बहुत परेशान दिख रहें थें।” तब मैंने उसे बीते दो दिनों से उस गली में मेरे साथ घट रही सारी घटना के बारे में बताया। मेरी बातों