वह स्त्री थी या जिन्न - भाग 2 Shwet Kumar Sinha द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वह स्त्री थी या जिन्न - भाग 2

……अपनी तरफ आती उस स्त्री को देखकर ही साफ प्रतीत हो रहा था कि वह भी तेज़ी से इस सुनसान अंधेरी गली को ही पार करना चाह रही है ।

सफ़ेद साड़ी पहने होने के कारण उसे अंधेरे में देख पाना आसान था ।

अब मुझे थोड़ा इत्मीनान हुआ और शांत मन से आगे बढ़ता रहा ।

तभी, ऐसा महसूस हुआ कि वह स्त्री बिलकुल मेरे पीछे आकर खड़ी हो गयी हो और मुझे आवाज़ दे रही है –“थोड़ा रुकिए”।

मैं पीछे पलटा। सच में वह कुछ कहना चाह रही थी। बड़ी-बड़ी आँखें, चेहरे पर अजीब सा तेज़ – जैसे कोई अप्सरा हो !

सफ़ेद साड़ी मे खड़ी वह स्त्री अंधेरे को चीरती हुई अपनी एकमात्र उपस्थिति दर्ज़ करा रही थी ।

मैने पूछा – “जी, कहिए क्या बात है” ? जवाब मे उस स्त्री ने निवेदन किया कि “कृपया साथ–साथ चलिये । बहुत अंधेरा होने के वजह से मुझे डर लग रहा है”।

मैंने सहमति में अपना सर हिला दिया । अब हमदोनों एकसाथ आगे बढ़े जा रहे थें ।

इतनी रात गए इस सुनसान गली में, वो भी अकेले घर से बाहर निकालने का कारण मैंने उनसे पूछा । परन्तु, कोई उत्तर ना मिला । मैं चुप रहना ही बेहतर समझा ।

कुछ पल के बाद जवाब आया, “मेरा घर पीछा मोड़ पर ही है, किसी कि ज़िंदगी-मौत का सवाल है, इसलिए मुझे अभी निकालना पड़ा । मुझे आप सही आदमी लगे, इसलिए मैं आपके पीछे-पीछे हो ली ।”

किसी अंजान पर इतनी रात में भरोसा करने की बात सुनकर थोड़ा अजीब लगा, पर कभी-कभी जरूरत पड़ने पर ऐसा करना पड़ता है – मैं समझ सकता था । और...हमलोग साथ साथ आगे बढ़ते रहें ।

तभी उस स्त्री ने अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया ।

उसके हाथों में एक चमकती हुई अंगूठी थी । “यह क्या है” – मैंने पूछा ? स्त्री ने जवाब दिया - “इसे आप पहन लीजिये, आपके काम आयेगा । यह आपको डर से ऊपर ले जाएगा और बूरी ताकतों से बचाएगा” ।

उन्हे साफ–साफ इंकार करते हुये मैंने खुद को उस अंगूठी से दूर किया और थोड़ा पीछे खिसक गया ।

“देखिये, ऐसा है कि मैं इन सब बातों में यक़ीन नहीं करता । अतः, आप कृपया करके इसे दुर रखे मुझसे।”

मैंने बेरुखीपूर्वक जवाब देकर उस अंगूठी को लेने से साफ इनकार कर दिया ।

मैंने एक बात गौर किया कि मेरे इतने बेरुखीपूर्ण रवैये के बाद भी उनका चेहरा बिलकुल शांत था । और इतने बेरुखीपूर्ण अस्वीकृति से वह थोड़ा भी विचलित नही हुई । मुझे पता नहीं क्यूँ, ग्लानि भी हो रही थी । पर, मैं जानता था कि मैं जो भी कर रहा था, सही कर रहा था ।

गली भी अब खत्म होने को थी, और पक्की सड़क मैं अपने सामने देख सकता था ।

तभी वह स्त्री रुक गयी और मुझसे आगे बढ़ते रहने के लिए कहा ।

“कुछ जरूरी वस्तु छुट गई है, इसीलिए उसे वापस जाना पड़ेगा।” – स्त्री ने मुझसे जाने को कहा और खुद वापस लौटने लगी।

मैंने उसके साथ चल कर उसे घर तक छोडने की बात कही तो शुक्रिया कहते हुए उन्होने मना कर दिया । तब, एक-दूसरे को अलविदा कहते हुये हम अपने - अपने गंतव्य की ओर बढ़ चलें।

घर आकर हाथ-मुह धोया । मेरा पूरे बदन दर्द से दुख रहा था और बुखार भी था, शायद हल्का–हल्का । निर्मला भी मुझे देख कर जाग गई थी । मुझसे खाना खाने के लिए पुछी तो मैंने मना कर दिया और उसे खा लेने बोलकर लेट गया । और लेटते ही न जाने कब नींद आ गयी, पता ही नहीं चला ।...

© श्वेत कुमार सिन्हा