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गुरुदेव - उपन्यास
नन्दलाल सुथार राही
द्वारा
हिंदी प्रेरक कथा
हमारी जिंदगी में कोई न कोई व्यक्ति हमें ऐसा अवश्य मिलता ही है ,जिसको देखने से ही हमारे रोम-रोम में उत्साह और रोमांच भर जाता है। ऐसा ही एक व्यक्तित्व जिन्होंने मेरे जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल दी जो मेरे रूममेट और मित्र से भी ज्यादा मेरे गुरुदेव है । जिन्होंने मुझे उदासी से भरी ज़िंदगी में हँसना सिखाया। हालाँकि ऐसा एकमात्र मैं ही नहीं हूँ जो उनसे इतना प्रभावित हुआ हुँ, एक बार जो उनसे मिल ले फिर वो उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। आदरणीय गुरुदेव दीनाराम जी धारवी। जिसे सब दीन जी के नाम से बुलाते है और जो काफी जगह दीना राम धारवी की जगह अपना नाम डी. आर. धारवी लिखते है।
गुरुदेव पार्ट -1 (एक परिचय)हमारी जिंदगी में कोई न कोई व्यक्ति हमें ऐसा अवश्य मिलता ही है ,जिसको देखने से ही हमारे रोम-रोम में उत्साह और रोमांच भर जाता है। ऐसा ही एक व्यक्तित्व जिन्होंने मेरे जीवन की दिशा ...और पढ़ेदशा दोनों बदल दी जो मेरे रूममेट और मित्र से भी ज्यादा मेरे गुरुदेव है । जिन्होंने मुझे उदासी से भरी ज़िंदगी में हँसना सिखाया। हालाँकि ऐसा एकमात्र मैं ही नहीं हूँ जो उनसे इतना प्रभावित हुआ हुँ, एक बार जो उनसे मिल ले फिर वो उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। आदरणीय गुरुदेव दीनाराम जी धारवी। जिसे
आमतौर पर जब हम पहली बार घर से दूर रहने जाते है तो एक बार वहाँ मन लगने में थोड़ा समय लगता है। मुझ जैसे अंतर्मुखी व्यक्ति के लिए तो और भी ज्यादा मुश्किल होती है। लेकिन नोरे(होस्टल) में ...और पढ़ेमन कब लग गया इसका पता ही नहीं चला। कॉलेज शुरू होने के बाद यह और आसान हो गया। प्रातः जल्दी ही नोरे में से गुरुदेव वही निकर पहने और ऊपर शाखा की ही गणवेश पहने, हाथ में दंड लिए और नोरे के कुछ साथियों के साथ शाखा जाने के लिए तैयार हो जाते। कुछ ही दिनों में मैं भी
जब मेरी बी. एस. टी. सी. पूर्ण हो गयी। तब मैंने सोचा किसी ऐसे शांत जगह पर जाने की; जहाँ रहकर मैं अपना अध्ययन पूर्ण निष्ठा के साथ कर सकूँ क्योंकि असली परीक्षा तो अब आने वाली थी। ...और पढ़ेसमय गुरुदेव चाँदन गाँव के एक निजी विद्यालय में संस्थाप्रधान के पद पर कार्यरत थे। नोरे के समान ही उस विद्यालय के बच्चें और संस्थान के संस्थापक दुर्जन सिंह जी भी उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके 'जिगरी' बन गए थे। 'जिगरी' वो उनको कहते जो उनके खास हो जाते थे ।जिगर के पास वाले। और ऐसे जिगरी दोस्तों की संख्या दिन प्रतिदिन
चाँदन से आने के पश्चात मैं बाड़मेर में मित्र नेणु जी कीता के पास चला गया। करीब दो महीने वहाँ अध्ययन करने के पश्चात सोचा कि एक बार कोचिंग करनी भी जरूरी है। आज के इस प्रतियोगिता के ...और पढ़ेमें कोचिंग एक अच्छा सहारा होता है। हालांकि उसके बिना भी सफल हो सकते है लेकिन एक भय मन में रह ही जाता है कि कोचिंग के बिना शायद बेड़ा पार न हो सकेगा। लेकिन अधिकतर नोरे के मित्र तो जयपुर जा चुके थे और अपने -अपने रूम में सेट हो चुके थे। मैं किसके साथ जाऊं और किनके साथ रहूंगा।
मानसरोवर का किरण पथ जहाँ मेरी ज़िंदगी में एक नई किरण ने प्रवेश किया और मेरी जिंदगी और मेरी सोच को पूरी तरह बदल दिया और उस ज्ञान रूपी किरण के सूर्य थे गुरुदेव दीनाराम जी। जयपुर में भूराराम ...और पढ़ेके रूम में रुकने के पश्चात मैं और गुरुदेव मानसरोवर के किरण पथ पर उनके एक परिचित के मकान में गए और वहाँ रहना शुरू किया जहाँ हमारे से पहले ही जैसलमेर का ही एक विद्यार्थी रोहितांश सिंह अकेला ही रहता था और वो भी गुरुदेव के प्रभाव से बच नहीं सके और कुछ ही दिन में वो भी" खास"