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मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - उपन्यास
Pooja Singh
द्वारा
हिंदी प्रेरक कथा
कभी सोचा नहीं था ...मैं सेना में भर्ती हो पाऊंगा बस मन में उमंग और दिल में जज्बा था कुछ कर दिखाने का ...
मैं भी भारत माता के लिए कुछ कर दिखााना चाहता हूं...
..... दु:ख होता है ..?अपने बीते हुऐ उन दिनोंं को सोचकर क्यूं होते है देश में गद्दार......
*******कहानी शुरू होती है मेरे गांव मीरपूर से ******
मैं अपने परिवार के साथ रहता था... मैं.. मेरे पापा ..मां और मेरी प्यारी छोटी बहन सोना ...हम बहुत खुश रहते थे आखिर क्यूं न रहे ...सब कुछ था हमारे पास ...शांति , सुकून और सबसे फक्र की बात थी , अपने फौजी भाई को देखना ,जो दिन रात हमारी सुरक्षा के लिए अपना घर बार छोड़कर सरहद पर निर्डरता के साथ डटे हुऐ हैं ......
मेरा तो बस यही काम था, जब भी मैं स्कूल जाया करता ..अपने फौजी भाईयों को देखकर सेल्युट कर देता था...
ये ही मेरा रोज काम था, और मां उन्हें जितना संभव हो सकता था गर्म पेय पिला आती थी... उनके दिल को भी सुकून जब ही मिलता था जब वो अपना ये नियम पूरा कर लेती थी......
कभी सोचा नहीं था ...मैं सेना में भर्ती हो पाऊंगा बस मन में उमंग और दिल में जज्बा था कुछ कर दिखाने का ...मैं भी भारत माता के लिए कुछ कर दिखााना चाहता हूं........ दु:ख होता है ..अपने बीते ...और पढ़ेउन दिनोंं को सोचकर क्यूं होते है देश में गद्दार......*******कहानी शुरू होती है मेरे गांव मीरपूर से ******मैं अपने परिवार के साथ रहता था... मैं.. मेरे पापा ..मां और मेरी प्यारी छोटी बहन सोना ...हम बहुत खुश रहते थे आखिर क्यूं न रहे ...सब कुछ था हमारे पास ...शांति , सुकून और सबसे फक्र की बात थी , अपने फौजी
मैं रूस्तम सेठ के साथ चला गया .....वहां मैं अपना काम पूरी लग्न और ईमानदारी से करता था ,यही बात रुस्तम सेठ को पसंद आती थी ,इसलिए मेरे भरोसे अपना काम छोड़कर कही भी चला जाता था ....----समय बितता ...और पढ़े,मैं भी उस काम में रम सा गया था तभी मुझे बहुत आवाजें सुनाई देने लगी , मानो किसी बड़े उत्सव की तैयारी हो रही हो .....ऐसा ही था जब मैने किसी से पूछा तो पता चला 26जनवरी के परेड की तैयारी हो रही हैं ....फौजी बहुत मेहनत कर रहे हैं अपना साहस दिखाने के लिए ....तभी ...मेरी अंतरात्मा से
रुस्तम सेठ की बात सुनकर गुस्सा तो बहुत आ रही थी पर बेबस अपने गांव से दूर उस विरान से कारखाने में कैद हो चुका था ...कितने साल हो गये थे बाहर की दुनिया न देखे मन ...और पढ़ेथा बस भाग जाऊं पर ऐसा संभव नहीं हो पाया ...!....बहुत दिन बीत गये थे यहां काम करते करते ...एक दिन अचानक कारखाने के सभी दरवाज़े , खिड़कियों पर परदे डाले जा रहे थे , जब मैने पूछा ऐसा क्यूं हो रहा हैं तब किसी ने बताया की कुछ खास मेहमान आ रहे हैं इसलिए रुस्तम सेठ ने यहां सबकुछ बंद करने
उनकी ये योजना मुझे दिन रात बैचेन कर रही थी , आखिर मुझे भागने का मौका मिल ही गया ..उस दिन मैं यहां से भागने में कामयाब हो गया , जिस दिन उस कारखाने की मालगाड़ी आई थी …....अब ...और पढ़ेसीधे अपने घर न जाकर कैप्टन मान सिंह के पास पहुंचा , कैप्टन मान सिंह जोकि अब मेजर जनरल बन चुके थे मुझे देखकर बहुत खुश हुए...... पहले तो वो मुझे पहचान नहीं पाये लेकिन जब मैंने उन्हें बचपन का किस्सा सुनाया तब वो तुरंत बोले " तुम धरा के बेटे हो "....." हां "" अरे तुम कहां चले गए
तब मेजर अंकल ने एक स्टूडेंट को बुलाकर कर पूछा...तुम कैसे बच गए..?....वो स्टूडेंट उन्हें बताता है..." सर हम तो उसको थैंक्स कहना चाहते हैं जिसने पूरे नोटिस बोर्ड पर लिखा था...आज बम ब्लास्ट होगा और ये बात सच ...और पढ़ेअगर जान बचाना चाहते हो तो भाग जाओ यहां से....हम सब तभी बाहर भाग आए थे..."मेजर अंकल को शायद मेरी बात तब चिंताजनक लगी , उन्होंने तुरंत मुझे अपने कैंप पर बुलाया और मुझसे सवालों की झड़ी लगा दी......!" नोटिस बोर्ड पर तुम लिखकर आये थे...?..."मैंने हां कहा..." तुम्हें कैसे पता था कि कल आडिटोरियम में ब्लास्ट होगा....?.."" यही तो