मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - आखिरी भाग Pooja Singh द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - आखिरी भाग

मैं उस कारखाने में पहुंचा जहां में काम किया करता था...अपना भेष बदलकर उसी रात मैं उस सुरंग के रास्ते दुश्मन देश में दाखिल हुआ .....
दिल में आग और आंखों में नफ़रत की ज्वाला लिए मैं वहां पहुंच गया....
काफी समय मैं वहां भेष बदलकर आम लोगों की तरह रहा
मुझे रुस्तम सेठ तक पहुंचने के लिए आखिर रास्ता मिल गया ...जब मैं उसके बेटे से मिला .....तब मैंने उससे दोस्ती का नाटक शुरू किया.... उसकी दोस्ती का भरोसा आखिर मैंने जीत लिया....
अब बस सही समय का इंतजार करता रहा और वो मौका जल्द ही मुझे मिल गया .... वो समय बहुत जल्द आ गया .. मैं उसके बेटे के साथ रुस्तम सेठ के यहां पहुंच चुका था.... जैसे ही मेरा उससे सामना हुआ , मेरा खून खौल उठा अब तो बस यही धुन थी इसको इस दुनिया से मिटा देना है....
" तो तू आ ही गया अपने मां बाप का बदला लेने...चल सही है मेरा काम बिगाड़ने में तूने उनका साथ दिया था अब तू मरेगा...." रूस्तम सेठ ने कहा
" इतनी जल्दी नहीं गद्दार... मैं तुझे मारकर ही इस दुनिया से जाऊंगा....तू अब ज्यादा टाइम तक नहीं बचेगा..."
इतना कहके मैंने इन उसपर तान दी....
" तू मुझे मारेगा..." इतना कहकर वो हंसने लगा .." यहां तू मारा जाएगा.... फौजी... देखता जा ...."
उसकी और मेरी लड़ाई शुरू हुई... मेरे वार से वो बचता रहा... आखिर मैं बहुत घायल हो चुका था...बस भगवान से यही प्रार्थना थी मैं इसे मारकर ही मरूंगा.... उसने भांप लिया कि अब मैं और नहीं लड़ सकता .. उसने बंदूक मुझपर तान दिया.... इससे पहले की वो मुझपर वार करता उसपर पीछे से गोली चलती है.... जिससे वो वहीं गिर जाता है मैं हैरान था आखिर कौन यहां मेरा हितैषी है.... वो कोई और नहीं था उसका बेटा रतन सेठ था ..... वो अपने बाप के काम से नफ़रत करता था... उसने मेरी मदद करके देश के गद्दार को खत्म किया था.....
रुस्तम सेठ पैसों के लिए अपने देश की हर छोटी बड़ी खबर दुश्मनों को पहुंचाता था और उन्हें आश्रय देता था....आज उसका खात्मा हो गया था....
रूस्तम सेठ के मृत शरीर को भारत लेकर आए ताकि सब जान सके आखिर देश के गद्दार होते हैं तो देश‌ के सपूत भी होते हैं जो दुश्मनों को उसके घरों में जाकर भी मार सकते है......
मुझे वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया.... मैं भी अब मेजर बन चुका था...मैं अंकल मेजर को बहुत मिस कर रहा था ..." मेजर अंकल आज मैं भी मेजर हूं .." तब से लेकर आजतक सब मेरा सम्मान करते थे... मेरी फौजी बनने की दास्तां आज पूरी हो गई....ये थी मेरे एक सच्चे सिपाही बनने की कहानी.....
..….……मेजर सूरज प्रताप सिंह........
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ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है.... इसका किसी व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है.... मैंने ये कहानी केवल प्रेरणा देने के उद्देश्य से बनाई है .... उम्मीद है आपको ये कहानी अच्छी लगी होगी.....
फौजी बनने की लालसा हर किसी में होती है...ये फौजी की छोटी सी छलक है
सेल्यूट अवर आर्मी सोल्जर.....
......जय हिन्द....