मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - 2 Pooja Singh द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - 2

मैं रूस्तम सेठ के साथ चला गया .....वहां मैं अपना काम पूरी लग्न और ईमानदारी से करता था ,यही बात रुस्तम सेठ को पसंद आती थी ,इसलिए मेरे भरोसे अपना काम छोड़कर कही भी चला जाता था ....
----समय बितता गया ,मैं भी उस काम में रम सा गया था तभी मुझे बहुत आवाजें सुनाई देने लगी , मानो किसी बड़े उत्सव की तैयारी हो रही हो .....ऐसा ही था जब मैने किसी से पूछा तो पता चला 26जनवरी के परेड की तैयारी हो रही हैं ....फौजी बहुत मेहनत कर रहे हैं अपना साहस दिखाने के लिए ....तभी ...मेरी अंतरात्मा से आवाज निकली ."ये क्या कर रहा हैं ...भूल गया तुझे भी तो फौजी बनना हैं , देश के लिए कुछ करना हैं " नही " तभी मेरी चीख निकलती है जिसे सुन सबका ध्यान मेरी तरफ हो जाता है ..
....दिनों दिन बेकार बीत रहे थे , अब काम में मन नहीं लगता था , बस सेना में जाने की लग्न थी ....अब आखिर में मैने रुस्तम सेठ से कह दिया मुझे अब आपका काम नहीं करना में आर्मी में जाना चाहता हूं ....
शायद रुस्तम सेठ को अपनी बात कहना मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी .....😭
.....वो मेरी बात मान गये पता नहीं इतनी आसानी से सब कैसे हो गया ....उन्होंने मुझसे कहा कि वो मुझे एक फौजी बनवा देंगे बस उनकी बात मानता जाऊं बिना सवाल किये ...मैने भी बिना सोचे हां कह दी ...
अब मैं उनके बताऐ अनुसार ही काम करने लगा , उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था ....अब जब मैं इस मुकाम पर पहुंचा हूं तब मुझे समझ आया है कि वो मुझे अपने काम के लिए इस्तेमाल कर रहा था बस ....
काम शुरु होता है , मुझे आधी रात में जगाकर कहने लगा "....जाओ तुम्हारी शर्त पूरी करने का समय है , ये लिफाफा ले जाकर (दूर इशारा करता है ) वहां दे आओ ..."
मैने उनसे कहा " ये काम मैं सुबह होने पर कर लूंगा ...अभी तो आधी रात है ..." तभी मुझ-पर चिल्लाते हुए कहा ".....
तुमसे मना किया था न सवाल करने के लिए फिर , चुपचाप जाओ अपना काम करो ..."
मजबूरी इंसान को बेबस बना देती है , बेमन से मैं ये लिफाफा लेकर जा रहा था , तब मुझे लगा जैसे मैं किसी सुरंग में जा रहा हूं ,,इतना अंधेरा था कि कुछ भी साफ नही दिख रहा था ...तभी दूसरी ओर से आवाज आती है "..ले आया खबर ला दे ..." उसने झटके से मेरे हाथ से लिफाफा छिन लिया ...मैं उसकी ये बात सुनकर हैरान था ..आखिर मैने तो कुछ कहा भी नही फिर किस खबर की बात कह रहा हैं ...अपने मन से सवाल करते हुऐ मैं वापस कारखाने में आ गया तब रुस्तम सेठ का यही सवाल था "...तूने लिफाफा फाड़ा तो नही और वो खुद लेने आये थे ..."
लिफाफा फाड़ने वाली बात पर तो मैने मना कर दिया , पर मन में एक और सवाल हो गया आखिर सेठ उस वो के बारे में मुझे स्पष्ट क्यूं नहीं बता रहे हैं ...अपनी शर्त के कारण मैं चुप रह गया ....
कुछ दिनों बाद मैने उनसे फिर पूछा "...आप मुझे आर्मी में कब भेजोगे ..." उसने र्सिफ एक ही बात कही अभी समय नहीं है जब वो इस लायक हो जाएगा तब भेज देगा ...."
.......क्रमशः....