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सरजमीं - उपन्यास
Saroj Verma
द्वारा
हिंदी प्रेरक कथा
सरजमीं ,मुल्क,वतन,मातृभूमि,इन सब नामों से स्वदेश को सम्बोधित किया जाता है,कहते हैं जो देश पर फिद़ा होता है उसका नाम हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो जाता है,अपने मुल्क के वास्ते शहीद हो जाना बहुत ही ग़रूर की बात होती है,
सच्चा वतन-परस्त वो होता है जो सबकुछ अपने वतन पर कुर्बान कर दें,जो केवल अपने वतन के लिए जिए और वतन के लिए ही जान दे दे,जिसने ये मान लिया कि उसके जिस्म-ओ-जाँ मुल्क की अमानत है तो उसकी जिन्दगी आबाद़ हो जाती है,
ऐसे ही आज सुबह जीश़ान जब अपनी बहन के घर आया तो उसे अपनी बहन के अलावा उसके शौहर और उसकी बेटी की लाश़ मिली और साथ में खाने की टेबल पर ख़त मिला जोकि जीश़ान की बहन ने अपने भाई और अपने मुल्क के लिए लिखा था,
पुलिस ने सभी लाशों को बरामद कर लिया और उस ख़त को भी,साथ में घर को भी सील करवा दिया.....
तब जीश़ान से पूछा गया कि तुम्हारी बहन ने ऐसा क्यों किया?
तब जीश़ान बोला....
सर! मेरी बहन एक वतनपरस्त इन्सान थी,उसने अपने वतन को बचाने के लिए ये सब किया...
तो आप उनकी पूरी कहानी बताइएं ताकि हमें तहकीकात में कुछ मदद मिल सकें,डी आई जी ने पूछा....
तब जीश़ान बोला....
सरजमीं ,मुल्क,वतन,मातृभूमि,इन सब नामों से स्वदेश को सम्बोधित किया जाता है,कहते हैं जो देश पर फिद़ा होता है उसका नाम हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो जाता है,अपने मुल्क के वास्ते शहीद हो जाना बहुत ही ग़रूर की बात होती ...और पढ़े सच्चा वतन-परस्त वो होता है जो सबकुछ अपने वतन पर कुर्बान कर दें,जो केवल अपने वतन के लिए जिए और वतन के लिए ही जान दे दे,जिसने ये मान लिया कि उसके जिस्म-ओ-जाँ मुल्क की अमानत है तो उसकी जिन्दगी आबाद़ हो जाती है, ऐसे ही आज सुबह जीश़ान जब अपनी बहन के घर आया तो उसे अपनी
फ़रजाना तो अपने रास्ते चली गई लेकिन वो शख्स बुत सा बना तब तक फरज़ाना को देखता रहा जब तक कि फ़रजाना उसकी आँखों से ओझल ना हो गई..... फ़रजाना ने बाज़ार से ...और पढ़ेखरीदा और अपने घर चली आई..... और फिर शाम के वक्त दरवाजे की घंटी बजी,फ़रजाना ने ही दरवाजा खोला,देखा तो वही शख्स खड़ा था जिसे सुबह फऱजाना की स्कूटी से टक्कर लग गई थी,फ़रजाना ने उसे देखा तो गुस्से से बोल पड़ी..... गुस्त़ाखी माफ हो जनाब! लेकिन सुबह हमने आपसे माँफी माँग ली थी और ये कहाँ की श़राफ़त है कि आप शिकायत
दूसरे दिन से शौक़त कोचिंग सेन्टर में पढ़ाने लगा,उसका पढ़ाने का अन्द़ाज बहुत अच्छा था,सभी बच्चे मन लगाकर पढ़ते थे और जब कोई स्टूडेंट उससे सवाल पूछता तो वो उसे बहुत अच्छे तरीके से समझाता था,उसके पढ़ाने का तरीका ...और पढ़ेथा,फ़रजाना को भी उसके पढा़ने का तरीका काफ़ी पसंद आया,अब शौक़त को कोचिंग में पढ़ाते काफ़ी समय हो गया था और एक दिन शौक़त एक बूढ़ी औरत को फ़रजाना के पास लाकर बोला.... मोहतरमा! इन्हें काम की बहुत जुरूरत है,इनके बेटा-बहु इन्हें अपने पास रखना नहीं चाहते,पहले ये भी एक अध्यापिका थीं,अगर इन्हें आपकी कोचिंग में पढ़ाने की इजाज़त मिल
उस रात शौक़त और फ़रज़ाना सारी दुनिया को भूलकर बस एकदूसरे की बाँहों में खो गए,उस दिन के बाद दोनों अपनी छोटी सी दुनिया में खुशहाल जिन्दगी जीने लगें,अब फ़रज़ाना कोचिंग की तरफ़ से बेफिक्र हो गई थी क्योकिं ...और पढ़ेने कोचिंग का काम ठीक से सम्भाल लिया था,अब ज्यादातर शकुन्तला और शौक़त ही कोचिंग सम्भालते,फरज़ाना अब इत्मीनान से अपना स्कूल देखती और केवल दो घण्टों के लिए ही कोचिंग में पढ़ाने जाती।। दिन ऐसे ही बीत रहें थें और फिर एक दिन फ़रज़ाना ने सबको खुशखबरी सुनाई,शौक़त बहुत खुश हुआ और फ़रज़ाना से बोला.... अब आपको ज्यादा