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पाज़ेब - उपन्यास
Saroj Verma
द्वारा
हिंदी डरावनी कहानी
शहनाज़! कहाँ जा रहीं हैं आप? हमीदा ने अपनी बेटी से पूछा।।
अम्मीजान घर में बैठें बैठें बोर हो गए हैं,सोच रहे थे कि बाहर ही घूम आएं,शहनाज़ बोली।।
सुनिए ये गाँव है आपका शहर नहीं है जो कहीं भी घूम कर आ जाएं,ऊपर से ये हमारा मायका है यानि के आपके मामूजान का घर ,उन्हें पता लगा कि आप अकेली बाहर घूमने गई थीं तो आपके साथ साथ हमें भी डाँट पड़ जाएगी,हमीदा बोली।।
अम्मीजान ! अब हम बड़े हो गए हैं,इतनी इजाजत तो मिलनी चाहिए ना हमें,शहनाज़ बोली।।
जिद़ कर रही हैं आप,हमीदा बोली।।
जिद़ नहीं कर रहें हैं अम्मीजान गुजारिश कर रहे हैं,शहनाज़ बोली।।
अगर ये गुजारिश़ है तो आप बाहर जा सकतीं हैं लेकिन याद रखिएगा कि थोड़ी देर में लौट भी आएं,नहीं तो अल्लाह कसम आपके साथ साथ हमारी शामत भी आ जाएगी,हमीदा बोली।।
शुक्रिया! मेरी प्यारी अम्मी और इतना कहकर शहनाज़ बाहर घूमने चली गई,वो आज बाहर आकर बहुत ही खुश थी,वो पहली बार गाँव आई थी और यहाँ उसे बाहर घूमने-फिरने की इजाज़त ना थी,गाँव के कायदे-कानून अलग ही होते हैं और वो गाँव के कायदे-कानून से महरूम थी,वो हमेशा से दिल्ली जैसे शहर में पली-बढ़ी थी,उसके अब्बाहुजूर एम.टी.एन.ल. में अभियन्ता के पद हैं,
शहनाज़! कहाँ जा रहीं हैं आप? हमीदा ने अपनी बेटी से पूछा।। अम्मीजान घर में बैठें बैठें बोर हो गए हैं,सोच रहे थे कि बाहर ही घूम आएं,शहनाज़ बोली।। सुनिए ये गाँव है आपका शहर नहीं है जो कहीं ...और पढ़ेघूम कर आ जाएं,ऊपर से ये हमारा मायका है यानि के आपके मामूजान का घर ,उन्हें पता लगा कि आप अकेली बाहर घूमने गई थीं तो आपके साथ साथ हमें भी डाँट पड़ जाएगी,हमीदा बोली।। अम्मीजान ! अब हम बड़े हो गए हैं,इतनी इजाजत तो मिलनी चाहिए ना हमें,शहनाज़ बोली।। जिद़ कर रही हैं आप,हमीदा बोली।। जिद़ नहीं कर रहें
हमीदा खिड़की पर खड़े होकर यूँ ही सोच रही थीं तभी शह़नाज़ उसके पास आकर बोली.... क्या हुआ अम्मीजान?आप क्या सोच रहीं हैं? सब खैरियत तो हैं।। हाँ!सब खैरियत हैं,यूँ ही भाईजान की तबियत का ख्याल आ गया,कितने सालों ...और पढ़ेबीमार हैं ,मर्ज़ भी पकड़ में नहीं आता,हमीदा बोली।। आप इतना क्यों घबरातीं हैं? खुदा के फ़जल से मामूजान बिल्कुल अच्छे हो जाऐगें,शह़नाज़ बोली।। उम्मीद तो यही है,फिर जो अल्लाह की मर्ज़ी,हमीदा बोली।। अल्लाह की भी यही मर्ज़ी हैं कि मामूजान जल्दी से अच्छे हो जाएं,शह़नाज़ बोली।। आमीन..! आपकी दुआ कूबूल हो,हमीदा बोली।। अच्छा! ये बताइएं कि खाने में क्या
कमरें में अँधेरा था फिर हमीदा की नज़र दरवाज़े की ओट की तरफ़ गई,उसने देखा कि वहाँ सफ़ेद लिबास़ में एक साया खड़ा है,लेकिन उसका चेहरा हमीदा नहीं देख पा रही थीं उसे देखते ही हमीदा ने पूछा.... ...और पढ़ेहैं वहाँ? तो किसी ने कुछ भी जवाब ना दी.... हमीदा ने एक बार फिर से पूछा.... कौन हैं? जवाब दीजिए।। लेकिन तब भी किसी ने कोई आवाज नहीं दी.... हमीदा का दिमाग़ चकरा गया और वो बौखलाकर चीख उठी.... हम पूछते हैं कौन है वहाँ? कोई जवाब क्यों नहीं देता? लेकिन तब तक वो साया दरवाज़े की ओट से गायब
फिर शहनाज़ ने हमीदा को हिलाया लेकिन वो नहीं उठी,पानी भी छिड़का चेहरे पर लेकिन वो तब भी होश में ना आई तब शह़नाज़ घबरा गई उसने फौरन मुर्तजा साहब को आवाज़ देकर पुकारा.... मामूजा़न ! देखिए ना ! ...और पढ़ेको क्या हुआ?इनके बदन मे कोई हरक़त ही नहीं हो रही ।। क्या कहतीं हैं शहनाज़ बेटी? हमीदा के बदन मेँ हरकत नहीं हो रही,ठीक से देखिए ना सिर्फ़ बेहोश हुई होंगीं,इतने कहते कहते वें बावर्चीखाने में आएं, सच में हमीदा बेज़ान सी पड़ी थी,उन्होंने शहनाज़ से कहा कि आप इनका ख्याल रखें हम तब तक मौलवी साहब को लेकर