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पाज़ेब - (अन्तिम भाग)

फिर शहनाज़ ने हमीदा को हिलाया लेकिन वो नहीं उठी,पानी भी छिड़का चेहरे पर लेकिन वो तब भी होश में ना आई तब शह़नाज़ घबरा गई उसने फौरन मुर्तजा साहब को आवाज़ देकर पुकारा....
मामूजा़न ! देखिए ना ! अम्मीजान को क्या हुआ?इनके बदन मे कोई हरक़त ही नहीं हो रही ।।
क्या कहतीं हैं शहनाज़ बेटी? हमीदा के बदन मेँ हरकत नहीं हो रही,ठीक से देखिए ना सिर्फ़ बेहोश हुई होंगीं,इतने कहते कहते वें बावर्चीखाने में आएं,
सच में हमीदा बेज़ान सी पड़ी थी,उन्होंने शहनाज़ से कहा कि आप इनका ख्याल रखें हम तब तक मौलवी साहब को लेकर आते हैं....
शह़नाज़ ने सबसे पहले चूल्हे पर पक रही सब्जी उतारी और फिर अपनी अम्मी के पास आकर बैठ गईं,कुछ ही देर में मुर्तजा साहब ,मौलवी साहब के साथ घर में दाखिल हुए,मुर्तजा साहब तब मौलवी साहब से बोले...
ये कई दिनों से ऐसे ही डर जातीं हैं लेकिन आज तो हद़ ही हो गई,देखिए ना बेहोश होकर कैसे फर्श पर गिर गईं हैं,हमें तो बहुत ही फिक्र हो रही हैं इनकी,अगर इन्हें कुछ हो गया तो इनके शौहर शौकत मियाँ को हम क्या जवाब देगें?
आप घबराएं नहीं मुर्तजा मियाँ! हम देखे लेते हैं कि क्या हैं इनके बेहोश़ होने की वज़ह और इतना कहकर मौलवी साहब ने हमीदा की नब्ज टटोली ,फिर आँखों की पलके उठाकर देखीं और बोले...
किसी रूह़ का साया है इनके बेह़ोश होने की वज़ह ,अब ये होश में आएँगी तो तभी पता चल सकेगा कि इन्होंने कभी किसी के साथ बुरा तो नहीं किया,तब मौलवी साहब ने अपने मन में कुछ पढ़ा और फिर आब-ए-जम़जम़ का पानी छिड़का,चेहरे पर पानी पड़ते ही हमीदा को होश़ आ गया....
फिर मुर्तजा साहब ने हमीदा से पूछा.....
सच! बोलिएगा बेटी,आपने किसी के साथ कभी कुछ गलत किया था।।
जी! मौलवी साहब! हम भी कबसे ये कुसूर करके बेज़ार हुए जाते हैं,हमने सालों पहले एक गुनाह किया था शायद अब हमें उसकी सज़ा दी जा रही है,हम भी आज किसी से कुछ नहीं छुपाऐगें और अपना गुनाह कुबूल करेंगें,हमीदा बोली।।
गुनाह़ !कैसा गुनाह़ हमीदा! आपने कभी तो इसका हमसे जिक्र नहीं किया,मुर्तजा साहब बोले....
कैसे करते भाईजान? हमने जो गुनाह किया था उसके लिए शायद आप हमें ताउम्र माफ ना कर पाएं,हमीदा बोली।।
छोटे-मोटे गुनाह तो सबसे रोजाना ही होते रहतें हैं,मुर्तजा साहब बोले।।
हमने तो ऐसा गुनाह़ किया था जिसकी सज़ा मौत़ भी कम ही होगी,किसी बेकसूर को ऐसी सज़ा देना लाज़िमी नहीं था,भाईजान! हमीदा बोली।।
अब आप बताएगीं कि क्या हुआ था? पहेलियाँ क्यों बुझा रहीं हैं,इस राज़ की इतनी वज़ाहत क्यों कर रहीं हैं,मुर्तजा साहब बोले....
जी!आज मैं सब बता दूँगीं,ना जाने कब से ये राज़ मेरे सीने में दफ़न हैं,मैं भी इससे जल्द से जल्द निज़ात पाना चाहती हूँ और फिर हमीदा ने कहानी सुनानी शुरू की......
बात उन दिनों की है भाईजा़न ! जब रिश्तेदारों ने आपसे निकाह पढ़वाने को कहा,आप निकाह पढ़वाने के लिए राज़ी ही नही थे,तब लोगों ने आपको समझाया कि अभी तो हमीदा आपका ख्याल रख रही है और जिस दिन हमीदा निकाह करके अपने शौह़र के साथ चली जाऐगी तो फिर आप क्या करेँगेँं तो आपका भला इसी में हैं कि आप हमीदा के ससुराल जाने से पहले ही अपना निकाह़ पढ़वा लें....
फिर मुर्तजा साहब बोले....
हमसे भला इस उम्र में कौन निकाह पढ़वाना चाहेगा? बाल सुफ़ेद हो गए हैं,कमर भी झुक सी गई है ,चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गईं हैं,खुदा के फज़ल से आखों की रौशनी भी कमजोर हो गई हैं,कौन हमें अपना जमाईं बनाना चाहेगा? अगर किसी जोहरा जबीं ने हमें पसंद भी कर लिया तो उनके वालिदों के ज़रिए हम नापसंद कर दिए जाऐगें।।
लेकिन मुर्तजा साहब की बात सुनकर उनके दूर की फूफ़ी बोलीं.....
मर्द कभी बूढ़े नहीं होते मुर्तजा मियाँ! फिर आप तो केवल हमीदा से दस साल ही बड़े हैं, अगर आप आज हाँ कह दें तो हम आज ही जोहराजबियों की कताऱ लगा दें आपके वास्ते।।
मज़ाक कर रहीं हैं फूफ़ीजान! मुर्तजा साहब बोलें।।
नसीबा बेग़म कभी मज़ाक़ नही करती मुर्तजा मियाँ! ना हो तो आज़मा कर देख लीजिए,नसीबा फूफीं बोलीं....
अच्छा! तो फिर हमें कोई एत़राज नहीं,लेकिन याद रहें लड़की की मर्जी से ये निकाह होना चाहिए,कोई जोर जबर्दस्ती ना हो निकाह़ पढ़वाने में,मुर्तजा साहब बोले।।
कोई जोर जबरदस्ती ना होगी,हम ये जिम्मेदारी लेते हैं,नसीबा फूफीं बोलीं।।
और फिर कुछ दिनों की मेहनत-मशक्कत के बाद आखिर मुर्तजा मियाँ के लिए नसीबा फूफीं ने एक जोहराजबीं ढूढ़ ही ली,फिर मुर्तजा मियाँ ने उस लड़की से मिलने की ख्वाहिश जाह़िर की नसीबा फूफीं के आगें लेकिन नसीबा फूफीं ये कहकर टाल गई कि उनके खानदान में ये सब नहीं होता आप सीधे ही निकाह़ के बाद अपनी बेग़म से मिलिएगा।।
लेकिन ये बात मुर्तजा मियाँ को कुछ जँचीं नहीं उन्होंने एक बार फिर फूफीं से ये जानने की कोशिश की कि कहीं निक़ाह के लिए लड़की से जोर-जबर्दस्ती तो नहीं की जा रही।।
तब नसीबा फूफीं बोलीं....
आप इत्मीनान रखें मुर्तजा मियाँ! ऐसा कुछ भी नहीं है,लड़की अपनी मर्जी से ये निकाह़ कर रही है।।
फिर मुर्तजा मियाँ ने अपनी नसीबा फूफीं पर यकीन कर लिया,सब रिश्तेदारों और मोहल्ला-पड़ोस की हाज़िरी में ये निक़ाह पढ़वाया गया,सब बेहद़ खुश थे,इस निक़ाह से ख़ासतौर पर हमीदा बेहद़ खुश थी,उसे चाँद सी खूबसूरत भाभीज़ान जो मिल गई थी जिसका नाम सनोबर था।।
दोनों ननद-भौजाई आपस में जल्द ही घुल- मिल गई,सनोबर स्वाभाव की बहुत अच्छी थी,वो अपने शौहर का भी खूब ख्याल रखती,कुछ ही दिनों में मुर्तजा मियाँ के चेहरे की रंगत बदल गई,सनोबर का साथ पाकर उनके चेहरे पर सुर्खी सी आ गई थी।।
वें भी अपनी बेग़म सनोबर से बहुत मौहब्बत करने लगें थे,उनकी हर ख्वाहिश पूरी करने की पुरज़ोर कोशिश करते लेकिन कभी कभी उन्हें ये लगता कि सनोबर उनसे कुछ छुपा रहीं हैं क्योकि कभी-कभी उन्होंने उन्हें अकेले में रोते हुए पाया था और उन्हें देखकर वें फौ़रन ही अपने आँसू पोछ लेतीं थीं.....
मुर्जता मियाँ ने कई बार सनोबर से पूछा भी लेकिन उन्होंने उनके इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया फिर उन्होंने ये बात हमीदा से कही कि सनोबर से पूछिए कि उन्हें यहाँ कोई तकलीफ़ तो नहीं जो वो अकेले में रोतीं रहतीं हैं....
हमीदा ने भी सनोबर से पूछा तो सनोबर बोली....
सच!कोई भी बात नहीं है हमीदा आपा! शायद आप सबको कोई गलत़फहमी हो रही है,
हमीदा ने सनोबर की बात पर यकीन कर लिया और सब मज़े से खुश थे उस घर में....
तभी एक दिन नसीबा फूफीं घर आईं और मुर्जता अन्सारी से बोलीं....
मुबारक हो! मुर्तजा मियाँ! आपके लिए हम एक खुशखबर लाएं हैं...
कैसी खुशखबर? जरा हम भी तो सुनें,मुर्तजा मियाँ बोले।।
अरे! हमीदा के लिए एक अच्छे घर का रिश्ता मिल गया है,लड़का इन्जीनियर है,खानद़ान भी उम्दा किस्म का है,हमारी हमीदा उस घर में राज.. करेगी ...राज,नसीबा फूफीं बोलीं...
ये तो बहुत अच्छी खब़र सुनाई आपने,मुर्तजा मियाँ बोले...
तो फिर देरी किस बात की आप कल ही अपने फूफाजान के साथ उनके घर जाकर लड़का देख आइए अगर पसंद आ जाएं तो फिर उनको भी किसी रोज़ लडकी देखने को घर बुला लीजिएगा,नसीबा फूफीं बोलीं।
मुर्तजा मियाँ को फूफी की बात जँच गई और वे लड़का देखने चले गए,उन्हें लड़का पसंद आ गया और उन्होंने उन्हें भी अपने घर लड़की देखने को कहा....
एक दो दिन बाद लड़के वाले हमीदा को देखने आ गए लेकिन लड़का ना आया,मुर्तजा मियाँ ने लड़के के घरवालों से पूछा कि लड़का क्यों नहीं आया तो वें बोलें,हमारे यहाँ ऐसा रिवाज़ नहीं चलता....
मुर्तजा मियाँ ने लड़के के घरवालों का जवाब सुनकर तसल्ली कर ली और फिर हमीदा को उन्होंने पसंद कर लिया,निक़ाह भी तय हो गया,निकाह़ तय होते ही खरीदारी शुरू हो गई,हमीदा के लिए तरह तरह के गहनें और लिबास़ बनवाएं गए,सनोबर के लिए मुर्तजा मियाँ ने खासतौर पर अपनी पसंद का एक लिब़ास तैयार करवाया,जिसे देखकर सनोबर बहुत खुश हुई,फिर निकाह का दिन भी आखिर आ ही गया..
दूल्हे मियाँ को देखकर सब खुश हुए लेकिन सनोबर उसी दिन से नाखुश सी थी जबसे उसने निक़ाह के कार्ड पर शौक़त नाम लिखा देखा था वो उस दिन कार्ड देखकर कुछ घबरा सी गई थी,फिर जब उसने दूल्हे मियाँ को देखा तो उसका शक़ यक़ीन में बदल गया।।
फिर निक़ाह पढ़ा गया,दूल्हा और दुल्हन ने निक़ाह कूबूल भी कर लिया,हमीदा विदा होकर अपने ससुराल चली गई,एक हफ्ते बाद दो दिनों के लिए मुर्तजा मियाँ हमीदा को ले आएं,हमीदा अपने ससुराल में बहुत खुश थीं,उसके शौहर भी दरियादिल इन्सान थे और उसे पसंद भी करते थे,ये सुनकर सनोबर को तसल्ली मिली,फिर दो दिन के बाद शौकत मियाँ के अब्बाहुजूर आएं और हमीदा को वापस ले गए,फिर पता चला कि हमीदा अपने शौहर के साथ दिल्ली चली गई हैं।।
ये सुनकर मुर्तजा और सनोबर खुश हुए कि चलो हमीदा अपनी गिरस्ती में खुश है,चाहने और कमाने वाला शौहर मिला है और क्या चाहिए भला? इधर सनोबर की उलझन भी अब दूर हो गई थी कि हमीदा खुश है शौकत मियाँ उसे चाहते हैं।।
इधर सनोबर एक दिन बेहोश होकर गिर पड़ी,मुर्तजा मियाँ ने लेडी डाक्टर को बुलवाया जिनका नाम गुलनार था,उन्होंने सनोबर का मुआयना किया और बोली...
मुबारक हो! खुशखबरी है मुर्तजा मियाँ!आपकी बेग़म हामिला से हैं,जल्द ही आपके घर के आँगन में किलकारियाँ गूँजने वालीं हैं।।
ये सुनकर मुर्तजा मियाँ की खुशी का ठिकाना ना रहा और उस वक्त उनकी जेब में जितने भी पैसे थे वो उन्होंने बक्शीश के तौर पर गुलनार को दे दिए,मुर्तजा मियाँ ने फौरन ये खब़र चिट्ठी लिखकर हमीदा को सुना दी....
हमीदा का मन भी गाँव आने को हुआ और वो अपने शौहर शौकत के साथ गाँव आई,शौकत ज्यादा दिनों की छुट्टी लेकर नहीं आएं थे,उन्होंने दो दिनों बाद वापस जाना था और तभी शाम के वक्त सनोबर और शौकत घर में अकेले थे,हमीदा और मुर्जता ,शौकत मियाँ के वास्ते कुछ खरीदारी करने के लिए गाँव के छोटे से बाजार गए थे,वापस लौटते समय मुर्तजा मियाँ को उनके दोस्त मिर्जा ने अपने घर बुला शतरंज खेलने के लिए और हमीदा घर आ गई,तभी उसने शौकत और सनोबर के बीच हो रही बातों को सुना,वो ठिठक गई और बाहर ही परदे के पीछे खड़ी होकर सब सुनने लगी...
उसे शौक़त की आवाज़ सुनाई दी वो सनोबर से कह रहे थें....
हम आपसे बहुत इश्क़ करते थे सनोबर!हम नौकरी पर चले गए तो आपने निक़ाह कर लिया,जब हमें आपके निक़ाह का पता चला तो हमारा दिल टूट गया।।
लेकिन वो पहले की बात थी शौकत मियाँ! लेकिन अब हमारे दिल में आपके लिए कोई भी ज़ज्बात नहीं है,अब हम केवल अपने शौहर को ही चाहते हैं,वो भी हमें अपनी जान से ज्यादा प्यार करते हैं और हम उन्हें अँधेरें में रखकर धोखा नही दे सकते,सनोबर बोली।।
अब हम भी आपको भूल चुके हैं,अब हमीदा ही हमारी सबकुछ है,हम आपसे वादा करते हैं कि इस बात का जिक्र अब कभी भी हमारी जुबान पर नहीं आएगा,शौकत मियाँ बोलें।।
हाँ! हम गरीब घर से थे,तब तो हमने मजबूरी में निकाह किया था लेकिन अब ऐसा नहीं है,अब हमारे शौहर ही हमारे दिल के सूकून और हमारी बन्दगी हैं,ताउम्र हम उनके साथ ही गुजारना चाहेगें,सनोबर बोली।।
जी! अब हमारे रास्ते जुदा हैं,हम अपनी अपनी गिरस्ती में खुश रहना सीख गए हैं,शौकत मियाँ बोले।।
शुक्रिया! शौकत़ मियाँ! हमें आपसे यही उम्मीद थी,सनोबर बोली।।
ये सुनकर हमीदा के गुस्से का पार ना रहा,जब कि उन दोनों के बीच अब कुछ भी नहीं था,लेकिन हमीदा को ये डर था कि पुरानी मौहब्बत है कहीं दोनों फिर से एक हो गए तो उसकी तो बसी बसाई गिरस्ती बेकार हो जाएंगी और उसने सनोबर को दुनिया से अलविदा करने का मन बना लिया।।
फिर शौकत़ चला गया और हमीदा गाँव में भी रूक गई बोली बाद में जाएंगी,तभी एक दिन सनोबर ने हमीदा से कहा....
हमीदा आपा! सावन लग गया है,बाजार जाकर हरी हरी काँच की चूड़ियाँ लाते हैं।।
हमीदा मान गई क्योकिं उसके मन में तो कुछ और ही चल रहा था,वो सनोबर को बाजार ले गई,दोनों ने हरी हरी चूड़ियाँ पहनीं और फिर दोनों वापस घर आने लगीं,रास्ते में वीरान हवेली मिली तो हमीदा ने सनोबर से कहा....
चलिए ना भाभीज़ान! हवेली का चक्कर लगाकर आते हैं।।
ना बाबा ना! हमें डर लगता है,सनोबर बोली।।
अरे! चलिए ना! हम तो हैं साथ में,हमीदा बोली।।
और दोनों हवेली में दाखिल हुईं,हमीदा सनोबर के पीछे पीछे चलने लगी,मौका देखकर हमीदा ने एक बड़ा सा पत्थर उठाया और सनोबर के सिर के पीछे दे मारा,सनोबर बेहोश हो गई,फिर हमीदा ने सनोबर के हाथ की हरी चूडियांँ उतार लीं,उसके दोनों हाथों की ऊँगलियों से अँगुठियांँ उतार ली,कान की बालियाँ उतार लीं,साथ में पाज़ेब भी उतार लीं ताकि कोई भी उसे पहचान ना सकें,एक पाज़ेब गलती से वहीं छूट गई,उस सामान की हमीदा ने पोटली बनाई और अपने थैलें में रख दी।।
फिर सनोबर को घसीटकर उसने उस खाली कुएंँ में फेंक दिया,सनोबर के बेहोश बदन को ढ़कने लिए हमीदा ने ना जाने कितने बड़े बड़े पत्थर उस कुएंँ में फेंकें और वहाँ मौजूद जितने भी सूखे पत्ते रेत थी उसे बराबर आधे घण्टे तक कुएँ में डालती रही और फिर घर आकर उसने ये अफ़वाह फैला दी कि सनोबर अपने पुराने आशिक के साथ भाग गई है फिर जब तक वो गाँव में रही तो उस हवेली में वो रोज कुएँ पर जाकर उसमें सूखे पत्ते और रेत डालती रहें ताकि किसी को भी सनोबर के बारें में पता ना चल सकें,बाद में उस कुएँ के भीतर खुदबखुद एक बरगद का पेड़ उग आया और उसका गुनाह़ कभी भी दुनिया के सामने ना आ सका।।
वो खोई हुई पाज़ेब शहनाज़ को मिली और पाज़ेब को देखकर हमीदा को अपने गुनाह याद आ गए।।
ये सुनकर मुर्तजा साहब रो पड़े और बोले.....
वो माँ बनने वाली थीं हमीदा! कुछ तो सोचा होता।।
हमारी अकल पर इन्तकाम का परदा पड़ गया था भाईजान,हमीदा बोली।।
लेकिन आपने ऐसा किया ही क्यों? मुर्तजा साहब ये कहते हुए ऱो पड़े।।
हमें माँफ कर दीजिए,भाईजान! हमीदा बोली।।
हम कौन होतें हैं आपको माफ करने वाले,आपके लिए तो मुनासिब स़ज़ा सनोबर ही तय करेगी,मुर्तजा साहब बोले।।
और तभी सनोबर का साया एक बार फिर से सबके सामने हाजिर हुआ और वो बोलीं....
हमीदा आपा ! आपने अपना गुनाह़ कुबूल कर लिया है,अब हम आपको कभी भी कोई नुकसान नहीं पहुँचाऐगे,बस आप हमारे कंकाल को मुनासिब जगह दफन करवा दीजिए और इतना कहकर सनोबर चली गई।।
यही किया गया,हमीदा ने पुलिस के सामने अपना गुनाह कुबूल कर लिया,सनोबर के कंकाल को कुएँ से निकलवाया गया,उस पेड़ को भी काटना पड़ा,फिर सनोबर को मुनासिब जगह दफन किया गया,सबने दुआएँ की कि उसकी रूह को जन्नत नसीब हो,फिर हमीदा को कभी भी कोई साया नहीं दिखा।।

समाप्त...
सरोज वर्मा....


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