राज कुमार कांदु लिखित उपन्यास चलो, कहीं सैर हो जाए...

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चलो, कहीं सैर हो जाए... द्वारा  राज कुमार कांदु in Hindi Novels
रोज एक ही माहौल में रहते हुए कभी-कभी जिंदगी बोझिल सी होने लगती है । ऐसे में अंतर्मन पुकार उठता है……चलो कहीं सैर हो जायेघ...
चलो, कहीं सैर हो जाए... द्वारा  राज कुमार कांदु in Hindi Novels
स्टेशन से बाहर निकलते ही बायीं तरफ अमानत घर दिखाई दिया । वैसे तो हम लोग घर से ही काफी कम सामान लेकर आये थे फिर भी आगे पह...
चलो, कहीं सैर हो जाए... द्वारा  राज कुमार कांदु in Hindi Novels
शाम का धुंधलका घिरने लगा था । रास्ते के दोनों किनारे करीने से सजी दुकानें रोशनी से नहा उठी थीं । हम लोग एक किनारे से धी...
चलो, कहीं सैर हो जाए... द्वारा  राज कुमार कांदु in Hindi Novels
___गर्भजून के दर्शन हेतु जिस खिड़की से हमने अपना ग्रुप नंबर प्राप्त किया था उसी खिड़की से बायीं तरफ एक सुरंग नुमा मार्ग दि...
चलो, कहीं सैर हो जाए... द्वारा  राज कुमार कांदु in Hindi Novels
यहाँ रास्ता थोडा संकरा हो गया था लिहाजा भीडभाड थोड़ी ज्यादा लग रही थी । सुबह के पांच बजनेवाले थे । पौ फटने का समय अब करीब...