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भूख--एक औरत की व्यथा - उपन्यास
Kishanlal Sharma
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
दुखखाट पर लेटी लीला बड़ बड़ाई। किस बात का?तारा को छोड़ देने का। गलत।भला ऐसा क्या था तारा मेंेे, जो वह उसके लिए दुखी हो। क्या तारा को छोड़ कर वह जी नही सकती?अब तक जीती रही है,तो आगे भी जियेगी।पश्चाताप।अपने निर्णय पर।सवाल ही नही उठता पछतावे का।उसने निर्णय अचानक या जल्दबाजी में नही लिया था।निर्णय लेने से पहले वह हर तरह से संतुष्ट हो ली थी।वह जल्दबाजी मे कोई कदम नही उठाना चाहती थी।यह बात भी अचानक,अप्रत्याशित रूप से उसके दिलो दिमाग मे नही आई थी।पहले उसके मन मे सन्देह जागा।फिर धीरे धीरे सन्देह विश्वास में बदल
दुखखाट पर लेटी लीला बड़ बड़ाई।किस बात का?तारा को छोड़ देने का।गलत।भला ऐसा क्या था तारा मेंेे, जो वह उसके लिए दुखी हो।क्या ...और पढ़ेतारा को छोड़ कर वह जी नही सकती?अब तक जीती रही है,तो आगे भी जियेगी।पश्चाताप।अपने निर्णय पर।सवाल ही नही उठता पछतावे का।उसने निर्णय अचानक या जल्दबाजी में नही लिया था।निर्णय लेने से पहले वह हर तरह से संतुष्ट हो ली थी।वह जल्दबाजी मे कोई कदम नही उठाना चाहती थी।यह बात भी अचानक,अप्रत्याशित रूप से उसके दिलो दिमाग मे नही आई थी।पहले उसके मन मे सन्देह जागा।फिर धीरे धीरे सन्देह विश्वास में बदल
थोड़ा सा बदलाव उसकी जिंदगी में आया था।सेठ ने उसे छ महीने तक रखैल बनाकर रखा और उससे जी भर जाने पर उसे बेच दिया था।वह एक आदमी से दूसरे आदमी को बिककर एक शहर से दूसरे शहर जाने ...और पढ़ेथी।जो भी उसे खरीदता प्लास्टिक की गुड़िया की तरह खेलता और मन भर जाने पर दूसरे को बेच देता।इसी खरीद फरोख्त का नतीजा था।वह आगरा आ पहुंची थी।यहां उसे तारा ने खरीद लिया था।तारा का चार नंबर प्लेटफार्म पर टी स्टाल था।उसका दुनिया मे कोई नही था।सन सैंतालिस में हुए देश विभाजन के समय उसके सब अपने दंगाईयो के हाथों