भूख--एक औरत की व्यथा(अंतिम भाग) Kishanlal Sharma द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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भूख--एक औरत की व्यथा(अंतिम भाग)

थोड़ा सा बदलाव उसकी जिंदगी में आया था।सेठ ने उसे छ महीने तक रखैल बनाकर रखा और उससे जी भर जाने पर उसे बेच दिया था।वह एक आदमी से दूसरे आदमी को बिककर एक शहर से दूसरे शहर जाने लगी थी।
जो भी उसे खरीदता प्लास्टिक की गुड़िया की तरह खेलता और मन भर जाने पर दूसरे को बेच देता।इसी खरीद फरोख्त का नतीजा था।वह आगरा आ पहुंची थी।
यहां उसे तारा ने खरीद लिया था।
तारा का चार नंबर प्लेटफार्म पर टी स्टाल था।उसका दुनिया मे कोई नही था।सन सैंतालिस में हुए देश विभाजन के समय उसके सब अपने दंगाईयो के हाथों मारे गए थे।वह अकेला जैसे तैसे जान बचाकर आया था।
तारा ने उसे दूसरे मर्दो की तरह उसे उपभोग की वस्तु नही समझा था।उसने अग्नि को साक्षी मानकर उसके साथ सात फेरे नही लिए थे।बिना शादी किये ही उसे पत्नी का दर्जा दे दिया था।लीला,तारा की पत्नी बनने वाली पहली औरत नही थी।उससे पहले वह तीन औरतो को यह दर्जा दे चुका था।पर उनमे से कोई भी उसके पास टिक नही सकी थी।
पहले तारा रात दिन स्टेशन पर ही पीडीए रहता था।पर लीला के आटे ही फिर से एक बार उसने घर बसा लिया था।अब वह सुबह आठ बजे से रात के नौ बजे तक स्टेशन पर रहता।फिर नौकरों के हवाले स्टाल छोड़कर घर आ जाता।दोपहर में लीला खाने का टिफिन लेकर स्टेशन जा पहुंचती थी।फिर दोनों साथ बैठकर खाना खाते।तारा उसका और उसकी हर ज़रूरत का ख्याल रखता।लीला पतिव्रता स्त्री की तरह उसकी सेवा करती।लीला सोचती।देर से ही सही।उसका बचपन मे देखा सपना सच हो रहा था।
तारा मंझले कद का था।उसे कसरत का बहुत शौक था।इसलिए उसका सीना चौड़ा था।भुजाएं बलिष्ठ और तंदरुस्त था।रात के एकांत में वह उसके बदन पर उंगलियां फेरता।उसके तन को चूमता टी उसके शरीर के तार झनझना उठते।वह कुश्ती पर सवार तो हो जाता लेकिन मंज़िल तक पहुचने से पहले ही साथ छोड़ देता।वह अकेली गोते खाती रहती।प्यास जगा ज़रूर देता लेकिन बुझा नही पाता।वह समझ नही पाती इतना बलिष्ट होकर भी वह उसका साथ क्यो नही दे पाता?क्यों उसकी इच्छा को जगाकर पूरी नही कर पाता?
इस क्यो न ही उसके दिल मे सन्देह का बीज बोया था।और दिन प्रतिदिन की उसकी हरकते उसके सन्देह को मजबूती प्रदान करते गए।
स्टेशन पर तारा के साथियों की फुसफुसाहटें
साला नामर्द है।हिजड़ा क्या औरत रखेगा।शरीर मे दम होता तो पहले ही तीन औरते क्यो छोड़कर भाग जाती।देखना लीला भी एक दिन इसे छोड़ जाएगी।इन फुसफुसाहटों ने उसके सन्देह को विश्वास में बदल दिया।
भूख होती है पेट की।जब आदमी का पेट भर जाता है।तब अन्य आवश्यकताए की कमी महसूस करता है।तब जागती है,तन की भूख।सेक्स एज भूख है।सेक्स मात्र मनोरंजन नही है।सेक्स से ही उतपन्न होती है सृष्टि।विपरीत लिंगो के संसर्ग से पैदा होता है नया जीव।
लीला कोई साध्वी या तपस्वनी नही थी जो इच्छाओं का दामन हो चुका हो।वह भी आम औरत थी।उसकी भी तन की भूख थी।वह तारा के खूंटे से बंधकर तभी रह सकती थी।जब खूंटे में दम हो।तारा का शरीर देखने भर को था।वह लीला के तन की भूख नही मिटा सकता था।
लीला को तारा पसंद था।वह उसे छोड़ना नही चाहती थी।तारा की रहकर उसने तन की भूख मिटाने के लिए सहारा तलाशा था पंडित।पंडित तारा का दोस्त था।वह स्टेशन के बाहर ठेला लगाता था।पर तारा को यह रास नही आया।वह चाहता था लीला पतिव्रता नारी की तरह सिर्फ उसकी ही बनकर रहे।इसी बात पर लीला भड़क गसी,"तू चाहता है सिर्फ तेरी होकर रहूं।पर तु नामर्द है।तेरे से कुछ होता नही।फर किस मुँह से रोकता हेमुझे।"
लीला और तारा के बीच की दरार चोडी होने लगी।उसने सोचना शुरू कर दिया।पेट भरने को रोटी ही जरूरी नही है।उसे मर्द का संसर्ग भी चाहिए।औरत पतिव्रता तभी रह सकती है।जब उसका पति उसके तन की भूख मिटाने में सक्षम हो।उसके तन की प्यास बुझा सके।अगर पति में इतनी दम न हो तो औरत इधर उधर मुह मारने लगती है।और उसे रोका जाता है,तो वह खूंटा तोड़कर भाग जाती है।ऐसा ही लीला ने किया था।तारा ने उसे बन्धन में बांधना चाहा तो वह पंडित के घर जा बैठी।
एक के बाद एक न जाने कितने मर्द उसे छोड़ चुके थे।लेकिन पहली बार उसने एज मर्द को छोड़ा और दूसरे का दामन थाम लिया था।
इतने दुख झेलने के बाद भी कुँवारेम न का सपना पति,अपना घर और बच्चे जिंदा था।वह नही जानती यह आस पूरी होगी या नही