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मृत्यु भोग - उपन्यास
Rahul Haldhar
द्वारा
हिंदी डरावनी कहानी
मूर्ति को दुकान में एक ही बार देखकर प्रताप को बहुत पसंद आया । पर जब उसे ध्यान से देखा ….
पार्क स्ट्रीट के इस क्युरिओ के दुकान पर प्रताप अक्सर आता है , दुकान के मालिक मुकेश अग्रवाल के साथ कुछ देर बात चीत करता और कुछ चीजें देखता , अगर पसंद होता तो घर ले जाता । मुकेश के साथ इन कुछ सालों में अच्छी दोस्ती हो गयी है प्रताप को , दोनों बैचलर भी हैं । मुकेश का उम्र 32 का और प्रताप का 30 ।
मूर्ति को दुकान में एक ही बार देखकर प्रताप को बहुत पसंद आया । पर जब उसे ध्यान से देखा …. पार्क स्ट्रीट के इस क्युरिओ के दुकान पर प्रताप अक्सर आता है , दुकान के मालिक मुकेश अग्रवाल ...और पढ़ेसाथ कुछ देर बात चीत करता और कुछ चीजें देखता , अगर पसंद होता तो घर ले जाता । मुकेश के साथ इन कुछ सालों में अच्छी दोस्ती हो गयी है प्रताप को , दोनों बैचलर भी हैं । मुकेश का उम्र 32 का और प्रताप का 30 । मुकेश अग्रवाल केवल नाम से ही मारवाड़ी है , पांच पुरखों
अगले दिन सबेरे प्रतिदिन की तरह चाय पीने आये भवेश बाबू , घर के कोने में रखे मूर्ति को देखकर सोच में पड़ गए । बोले – " इसको कहाँ से लाया प्रताप " भवेश भट्टाचार्य , प्रताप ...और पढ़ेपिता अजय मुखर्जी के बचपन के दोस्त हैं , हर वक्त साथ रहने वाले , तब से वो भी इस घर के एक सदस्य हो गए हैं । भवेश बाबू ने जब यह प्रश्न किया तब प्रताप नहा कर तौलिया से अपना सर पोंछ रहा था । प्रसन्न होकर बोला – " काका मूर्ति अच्छी है न , मुकेश के दुकान से ले
(कुछ दिन बाद जिस दिन डुमरी को प्रताप घर ले आया वह दिन था मंगलवार , और उसके ऊपर अमावस्या भी था , आज सुबह आंशिक सूर्यग्रहण भी लगा था । )....... नही प्रताप का चरित्र एकदम अच्छा ...और पढ़े, पर ये घटना कैसे घट गई पुष्पा दीदी और भवेश बाबू किसी को समझ नही आया । रायचौक रैडिसन फोर्ट में प्रताप के कंपनी का एक मीटिंग चल रहा था । दो दिन का प्रोग्राम है , दूसरे दिन के लॉस्ट में एक कॉकटेल डिनर । प्रतिवर्ष ही यह होता है । एक साल पहले इस डिनर में प्रताप ने पूरी
प्रताप आजकल बीच बीच में निमतला श्मशान में जाकर बैठा रहता है । वैसे निमतला घाट उसके दक्षिण घर से बहुत दूर है । लेकिन दक्षिण के गरिया महाश्मशान , सिरियारी व केवड़ातल्ला के किसी भी घाट ...और पढ़ेइस निमतला व काशी मित्ति घाट जैसा गंगा की हवा नही मिलता है । आजकल श्मशान बहुत अच्छा लगता है उसको , शांत शीतल जगह । वहाँ कोई भी उसे उसके इन महीनों के परिवर्तन को लेकर कुछ नही पूछता । श्मशान के एक कोने में चुपचाप बैठा रहता है वो । दिसंबर के बीचोबीच का समय अगले दिन अमावस्या है ।
मेट्रो से घर आते वक्त प्रताप को एक अलग ही अनुभूति हो रही थी । ऐसा लग रहा है सर पूरा खाली हो गया है दिमाग में कुछ था पर अब नही है । सर पूरा ठंडा ...और पढ़ेगया है । घर की एक चाभी उसके पास ही रहता है , आज घर में जाते ही एक सड़न की गंध उसके नाक पर पड़ी । फिर प्रताप ने महसूस किया कि उसके गले में वह माला गरम हो गया है । प्रताप ने दरवाजा के पास चप्पल खोला फिर खुद का शर्ट खोलते खोलते अपने पसीने के गंध से उसे