मृत्यु भोग - 2 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मृत्यु भोग - 2

अगले दिन सबेरे प्रतिदिन की तरह चाय पीने आये भवेश बाबू , घर के कोने में रखे मूर्ति को देखकर सोच में पड़ गए ।
बोले – " इसको कहाँ से लाया प्रताप "
भवेश भट्टाचार्य , प्रताप के पिता अजय मुखर्जी के बचपन के दोस्त हैं , हर वक्त साथ रहने वाले , तब से वो भी इस घर के एक सदस्य हो गए हैं ।
भवेश बाबू ने जब यह प्रश्न किया तब प्रताप नहा कर
तौलिया से अपना सर पोंछ रहा था । प्रसन्न होकर बोला
– " काका मूर्ति अच्छी है न , मुकेश के दुकान से ले आया ।
अरे मेरा दोस्त पार्क स्ट्रीट में क्युरिओ का दुकान है उसका ,
आपने उसको देखा है कई बार ।"
भवेश बाबू मूर्ति को बड़े ध्यान से देख रहे थे , नजर न हटाते
हुए पूछा – " तो कितना दाम पड़ा ।"
प्रताप हँस कर बोला – " अभी तो ऐसे ही दे दिया , बाद में पैसा ले सकता है , कैसे वह इस मूर्ति को पाया वह एक
बहुत ही इंट्रेस्टिंग कहानी है , आप सुनेंगे । "
जवाब में सर हिलाकर हाँ कहा भवेश बाबू ने ।
प्रताप ने भी अच्छे से पूरे घटना को सजा कर बता दिया ।
चाय को पीकर ,मूर्ति के पास जाकर कुछ देर ठीक से
मूर्ति को देखने के बाद फिर से कुर्सी पर बैठते हुए गंभीर
मुख से बोले – " देखो प्रताप जितना मैंने समझा , ये मूर्ति
कोई साधारण देवी मूर्ति नही है संभवतः ये कोई तांत्रिक
काम में आने वाली देवी है , गुरुजी ! मतलब तुम्हारे
दादाजी तंत्र मंत्र में भी अच्छे माहिर थे तुम्हे तो पता होगा ।
तुम्हारे पिता तो कम्युनिस्ट होकर इन सब बातों पर ज्यादा
ध्यान नही देते थे , गुरुजी ! ने मुझे भी कुछ कुछ सिखाया
है वैसे अब मुझे कुछ याद नही है ।"
कुछ देर भवेश बाबू सोचकर फिर बोले – " जितना
मुझे लग रहा है । ये तिब्बत का सामान है 13th सेंचुरी के आसपास का । तब भारत में इस्लामिक आक्रमण शुरू हुआ , इसीलिए बौद्ध बहुत डरे हुए थे ,तभी सभी बौद्ध गुरु अपने सामान लेकर भाग गए तिब्बत ।
तिब्बत में बौद्ध धर्म व वज्रयान नए ईंधन पाकर और फल फूल गया । ये मूर्ति उसी समय का है क्योंकि इसमें कुछ हिन्दू मूर्ति की झलक दिख रही है । उससे पहले के वज्रयान मूर्ति में इतने हिंदुत्व की झलक नही हो सकती । ये वही कोई 13th या 14th सेंचुरी का ही मूर्ति है । किन्तु ये कौन सी प्रभाव की मूर्ति है समझ नही आ रहा । "

भवेश बाबू खूब चिंतित हो उठे । प्रताप टी शर्ट पहनतें
हुए प्रश्न किया – " वज्रयान मतलब ? "

यह सुन इतिहास के प्रौढ़ अध्यापक भवेश बाबू खुश
होकर बोले – " बौद्ध धर्म का इतिहास कुछ याद है ।
4th सेंचुरी BC में बौद्ध धर्म के दो भाग हो गए थे हीनयान और महायान , इसके बाद तो बौद्ध धर्म पूरे एशिया में फैलने लगा इसके बाद अनेक प्रकार के कठिनाई को पार कर , तराई , उत्तरबिहार , उत्तरबंगाल , सिक्किम आदि प्रचिलित जगह के तांत्रिक साधना को अपनाकर महायान का नया रूप उभरकर आया जिसका नाम वज्रयान पड़ा । ये बौद्ध मत पूरी तरह से तांत्रिक बौद्ध मत है । विचित्र सब देव - देवी की पूजा,मुद्रा , मंत्र , मंडल लेकर कई प्रकार की छुपकर साधना ।यही इनका मुख्य धर्म आचरण है । वज्रयान कुछ जगह स्टेट रिलीजन हो जाता है 650 ईस्वी पूर्व के आसपास तिब्बत के तैतीसवें राजा सोंगसेन गम्पो के समय ।
इसके बाद 8th सेंचुरी में तिब्बत आये तिब्बत बौद्ध धर्म के सबसे उज्ज्वल पुरुष गुरु पद्मसंभव । वो लोग उन्हें कहते गुरु रिनपोचे , तांत्रिक बौध्द उसके बाद कभी भी पीछे मुड़ कर नही देखा ।"

मंत्रमुग्ध होकर यह सब सुन रहा था प्रताप , भवेश
बाबू रुके तब बोला – " आतिश दीपांकर नाम का भी कोई और गया था न वहां ? "
चश्मे के ऊपर से कुछ देर प्रताप को देखा , फिर रुमाल
निकाल पसीना पोंछा और बोले – " आतिश दीपांकर
को कोई और बोल रहे हो प्रताप ! हम बंगाली का न यही
दुर्भाग्य है , हमें पूरी दुनिया की खबर रखकर विश्वनागरिक
होने में अच्छा लगता है पर खुद का ही इतिहास नही पता ।
व जानते हुए भी बोलने में शर्म आती है । हाँ ,वो गए थे
तिब्बत धर्मप्रचार के लिये यही कोई 1042 ई. के आसपास ।

प्रताप का सर झुक गया फिर धीमे गले से बोला – " पर
इसके साथ इस मूर्ति का क्या संबंध है ?
भवेश बाबू गंभीर होकर बोले – " तांत्रिक बौद्ध बहुत
ही बड़ा शास्त्र है ।ओड्डियान , कामारूपा , पुल्लिरामालागिरि
व श्रीहट्ट ये चार हैं तांत्रिक बौद्ध धर्म का सबसे रेस्पेक्टेड
जगह । इस मत में जितना सार बुद्ध का है उतना ही बांग्ला तंत्र साधना का भी है । बांग्ला के मातृ तंत्र साधना में जितने भयानक देव - देवी के नाम तूमने सुना है यहां भी ऐसा ही है । पर ये जो मूर्ति है ये कुछ स्पेशल है किस समूह में रखूं कुछ समझ नही पा रहा । रुको अब एक बार फिर किताब को थोड़ा पढ़ कर इसका रिफरेंस देखता हूँ तबतक कुछ इधर उधर मत करना ठीक है कहीं कुछ तो गड़बड़ है । अद्भुत देवी मूर्ति दुकानदार ने तुम्हें ऐसे ही दे दिया और उसको भी जमींदार परिवार के तांत्रिक पुरोहित ने ऐसे ही दे दिया ,नही नही कुछ तो है ।"

उसी रात को प्रताप ने सपने में देखा देवी मूर्ति , असाधारण अपरूपा एक देवी ,प्रताप के माथे को सहलाते हुए बोल रहीं हैं – " प्रताप ! ओ प्रताप ! मुझे ऐसे ही मत रखो , जब घर लाये हो तो मेरी पूजा करो । तुम्हारा कल्याण होगा । "

लगातार तीन रात प्रताप ने एक ही स्वप्न देखा । कुछ दिन के लिए बाहर गए थे भवेश बाबू किसी सेमिनार के लिए जिस दिन लौटे उसी दिन शाम को प्रताप के घर में जाते ही उनके कदम ठहर गए । बाहर बैठने की जगह से ही दिख रहा है कि स्टडी रूम के एक तरफ एक छोटी सी टेबल रखा हुआ उसके ऊपर एक लाल चोला बिछाकर वह देवी मूर्ति रखा हुआ मूर्ति के गले में लाल गुड़हल की माला , अगरबत्ती और धूप की सुगंध यहां तक आ रही थी । प्रताप ऑफिस से लौटकर नहा कर इधर ही आ रहा था । भवेश बाबू को देखकर कुछ संकुचित सा हो गया ।
कुर्सी को आगे रख कर बोला – " आइये काका आइये
बैठिए । "
भवेश बाबू उसके लिए उस कुर्सी पर बैठ गए । प्रताप
के पहने लाल धोती की तरफ उनकी नजर पड़ी ।
फिर प्रताप से पूछा – " तुम चाय नही पिओगे ।"
प्रताप बोला – " नही काका मैं सीधे एकबार पूजा देकर
ही खाऊंगा । "
भवेश बाबू खींझकर बोले – " ये क्या कह रहे हो पूजा
करके खाओगे मतलब , तुम्हारा कब से इन धर्म कर्म में मत हुआ । तुम कॉलेज में वामपंथी राजनीति करते थे न । फर्स्ट ईयर में तुमने रस्सी से जुते का फीता बना दिया था और अब इस तरफ । "
प्रताप कुछ देर शांत होकर बैठा रहा फिर स्वप्न आदेश
के पूरे बात को खुलकर बताया भवेश बाबू को ।
भवेश बाबू उसे कुछ देर घूरने के बाद बोले – " देखो प्रताप मैं थोड़ा पुराने जमाने का आदमी हूँ , मैं स्वप्न आदेश नही मानता यह नही कहूंगा । लेकिन कुछ चीजें को एक्सप्लेन नही किया जा सकता ये जरूर मानता हूं । ब्राह्मण के लड़के हो पूजा पाठ में ध्यान गया अच्छा है , मैं नही रोक रहा ।"
प्रताप बोला – " फिर क्या काका ? "
भवेश बाबू बोले – " तुम जैसे वामपंथी राजनीति करने वाले लड़के तीन दिन के स्वप्न में एकदम टकले होकर वामाखेपा ( श्री गुरु वामाखेपा ) हो गए । नही पता क्यों बेटा ? मुझे यह कुछ अच्छा नही लग रहा । बात क्या है जरा खुल कर बोलो तो ।"
यह बोल कर तीक्ष्ण आखों से प्रताप को देखते रहे यह वृद्ध अध्यापक । उनको प्रताप की दोनों आंखे लाल और अस्थिर लग रही थी । गाल पर दाढ़ी , मुख पर कुछ विभिन्न सा भाव , डॉक्टर को तो नही दिखाना पड़ेगा । नही रहने देता हूँ आजकल का लड़का कहीं कुछ और ही न समझ ले । वो दूसरे बात पर गए और बोले – " और एक बात कहता हूँ , इसी मूर्ति को पाया पूजा करने के लिए । अभी तो जानते ही नही हो कि ये देवी कौन हैं , किसकी मूर्ति है । प्रत्येक देव - देवी के पूजा पद्धति अलग - अलग होती है प्रताप ! , बीज
मंत्र अलग होती है , प्राण प्रतिष्ठा मंत्र अलग होती है ।
एक के मंत्र से दूसरे की पूजा करने पर ये क्रोधित हो जातें हैं । तुम कम से कम चौराहे के काली मंदिर के पंडित से तो इस पूजा करने के बारे में पूछना चाहिए था । कैसे क्या किया जाता है तुम कुछ जानते हो । "
प्रताप मुरझा गया और बोला – " नही काका मैंने तो किसी से नही पूछा , मुझे लगा सब देवी ही तो शक्ति का अंश होतीं हैं । यह एक माँ की मूर्ति है फिर और क्या मानना और न मानना । मैं खुद से ही कुछ पूजा कर लेता हूँ । वही अगरबत्ती , धूपबत्ती , फूलमाला और फल प्रसाद । "
भवेश बाबू बिगड़कर बोले – " अरे ओ लड़के तुम क्या
साधक रामप्रसाद हो न कि स्वयं श्रीरामकृष्ण ( श्रीरामकृष्ण
परमहंस ) हो जो कि माँ बोलकर रोने से महामाया मां देवी
तुम्हें साक्षात दर्शन देंगीं । स्पष्ट बोल रहा हूँ कि यह एक तांत्रिक मूर्ति है बौद्ध तंत्र लेकर तुम्हें कुछ पता भी है । कुछ अगर हो जाए इसकी तुम्हें खबर है । ये बचपन की गुड्डे गुड़ियों का खेल नही है । अरे मैं खोज लगा रहा हूँ बेटा, देश के कुछ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के साथ भी बात की है मैंने
इस मूर्ति को लेकर । ये बहुत यूनिक मूर्ति है इसका एक
अलग ही हिस्ट्री है । वो सब ना जानकर ऐसे ही कुछ करने का कोई वजह है ।"
कुछ देर सिर झुकाकर नीचे करने के बाद आँख उठाया
प्रताप , भवेश बाबू की हृदय गति बढ़ गयी ।
एक मिनट के अंदर उसकी आंखें लाल क्यों हो गयी ?
आंख की दोनों पुतली ऊपर की ओर क्यों उठा हुआ है ?
अपरिचित एक भयानक आवाज में प्रताप बोला – " मेरे
मां के पूजा में बाधा मत देना काका , मां मुझे बुलाती है ,
मुझसे प्यार करतीं हैं , मेरे सर को अपने हाथ से सहलाती
हैं , मां मेरा भला चाहती हैं , मां मुझे देखती हैं , मेरी सेवा स्वीकार करतीं हैं , मां मेरी सब चीज जानती हैं ,आप नही समझोगे काका ।"
इस वार्तालाप के बीच में खुद ही उठ गए भवेश बाबू खुद पराए होने पर भी क्या हुआ वो प्रताप को खुद के बेटे जैसा मानते हैं । कुछ अमंगल का आभास हुआ भवेश बाबू को । फिर धीरे से बाहर चले गए ।
ठीक नही है एक भयंकर सा काला तूफान आ रहा है
स्पष्ट समझ गए वो वृद्ध प्रोफेसर । फिर मन को सख्त
किया और मन में बोले – " ठीक है , देखतें हैं कौन
जीतता है । "

बाहर आते समय भवेश बाबू ने देखा कि पुष्पा दीदी उनके लिए ही बाहर दरवाजे के पास इंतजार कर रहीं हैं । धीरे से बोली – " ओ ठाकुर मास्टर , उसको किसी बढ़िया डॉक्टर दिखाइए न , वो पता नही कैसे कैसे भाव कर रहा है कुछ दिन से , ठीक से खाता नही है , सोता नही है रात दिन केवल कुछ बकता रहता है ।मैं तो बाहर के घर में सोता हूँ अभी कभी उठकर सुनती हूँ तो मां मां बोलकर रो रहा होता है । लड़का की पागल हो गया मास्टर साहब , उसकी माँ मरते समय मेरे हाथ में रख कर कही थी कि लड़के का ध्यान रखना । अगर उसे कुछ हो गया तो मैं मरकर उन्हें क्या जवाब दूँगा ? मेरा तो बोलने के लिए और कोई नही हैं आप कुछ कीजिये।"

कहते कहते जोर जोर से रोने लगी वह प्रौढ़ा । उसकी
संतान न होते हुए भी उसकी मातृ प्रेम के आगे भवेश बाबू और कुछ न बोले सीधे निकल गए ।
उसी रात फिर स्वप्न आदेश मिला प्रताप को , वही दिव्य
नारी प्रताप के माथे को सहलाते हुए बोलती हैं – " प्रताप
बहुत भूख लगी है मुझे , कुछ खाने को दो , मुझे कुछ
खाने को दो । "
क्या इस अर्थ कामना के अंदर कोई विपत्ति चाल तो
नही मिली हुई थी ? प्रताप ने देखा वह खुद मूर्ति के सामने
सांप की तरह हाथ जोड़कर बोल रहा है – " मां क्या खाएंगी आप ? जो मांगोगी वही लेकर दूँगा मां , एक बार केवल आप बताइए कि क्या खाएंगी मां । "
वह अपरूपा नारी मूर्ति अद्भुत तरीके से हंसकर बोली – " खाना खाऊंगा प्रताप खाना , ऐसी वैसी खाना नही महाभूख है मेरी , मुझे जगाया है बहुत समय के बाद और पूछ रहे हो प्रताप । मेरा शरीर तुमने देखा नही है प्रताप ।
और प्रताप बोल रहा है – " क्या चाहिए आपको मां ?
वह नारी अद्भुत आवाज में बोली – " मुझे भोग चाहिए ,
महाभोग , महाभोग चाहिए । …


।। अगला भाग क्रमशः


@rahul