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तू है पतंग मैं डोर - उपन्यास
S Sinha
द्वारा
हिंदी लघुकथा
मान्यता के घर उसकी बचपन की सहेली शीला आई हुई थी .वह अपने फ्लैट की बालकनी में उसके साथ बैठी चाय पी रही थी . शीला शादी के बाद पहली बार मान्यता से मिली थी .शीला का पति सेना में कैप्टेन था, कहीं दूर दराज़ बॉर्डर पर उसकी पोस्टिंग थी .वह बोली " तू तो अपनी शादी में मुझे भूल ही गयी थी . "
" नहीं भूली नहीं थी .तेरा पता नहीं मिल सका था .तुम्हारे पापा का ट्रांसफर हो गया था और तुमलोग पटना छोड़ चुके थे .जैसे ही पता मिला , तुम्हें कांटेक्ट किया .तभी तो अपनी दसवीं एनिवर्सरी पर तुम्हें बुलाया और कहा था दो चार दिन पहले ही आना .आराम से नयी पुरानी सभी बातें करेंगे .पर कप्तान साहब तो तुम्हें छोड़ कर चले गए , वे रुक जाते तो और मजा आता ."
भाग - 1 यह कहानी है ऐसे दो बच्चों की जो बचपन के वर्षों बाद मिलने पर फिर दोस्त बने और फिर जीवनसाथी भी … ...और पढ़े कहानी - तू है पतंग मैं डोर मान्यता के घर उसकी बचपन की सहेली शीला आई हुई थी .वह अपने फ्लैट की बालकनी में उसके साथ बैठी चाय पी रही थी . शीला शादी के बाद पहली बार मान्यता से मिली थी .शीला का पति सेना में कैप्टेन था, कहीं दूर दराज़ बॉर्डर पर उसकी पोस्टिंग थी .वह बोली " तू तो अपनी शादी में मुझे भूल ही गयी थी .
अंतिम भाग -2 पिछले अंक में आपने पढ़ा कि विकास और मान्यता बचपन के वर्षों बाद कॉलेज में मिलते हैं …. ...और पढ़े कहानी - तू है पतंग मैं डोर विकास ने हँस कर समझाते हुए कहा " नहीं यार , अभी तक देवदास और पारो वाली बात नहीं है . हम बचपन के बाद आज आमने सामने हुए हैं . ठीक से एक दूसरे को पहचान भी नहीं सके थे . " " तुम वही बंदरी हो . इतनी सुन्दर और स्मार्ट कैसे हो गयी .याद है तुमने मेरा पतंग उड़ाया था .बार बार बंदरी की तरह उछल