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जहाँ ईश्वर नहीं था - उपन्यास
Gopal Mathur
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
गोपाल माथुर 1 आँख कुछ देर से खुली. बाहर सुबह जैसा कुछ भी नहीं लगा, हालांकि सूरज निकल चुका था, पर वह घने बादलों के पीछे कैद था. बारिश बादलों में लौट गईं थीं और हवाएँ भी थक कर पेड़ों की डालों पर सुस्ता रही थीं. घर के सामने वाली सड़क पर जगह जगह पानी के चहबच्चे जमा थे. जब कोई कार या स्कूटर गुजरता, रुका हुआ पानी हवा में उड़़ने लगता था. बारिश में भीगी कुछ चिड़ियाएँ बिजली के तारों पर अपने पंख सुखा रही थीं. सब कुछ ठीक वैसा ही था, जैसा बारिश की किसी सुबह हो सकता
गोपाल माथुर 1 आँख कुछ देर से खुली. बाहर सुबह जैसा कुछ भी नहीं लगा, हालांकि सूरज निकल चुका था, पर वह घने बादलों के पीछे कैद था. बारिश बादलों में लौट गईं थीं और हवाएँ भी थक कर ...और पढ़ेकी डालों पर सुस्ता रही थीं. घर के सामने वाली सड़क पर जगह जगह पानी के चहबच्चे जमा थे. जब कोई कार या स्कूटर गुजरता, रुका हुआ पानी हवा में उड़़ने लगता था. बारिश में भीगी कुछ चिड़ियाएँ बिजली के तारों पर अपने पंख सुखा रही थीं. सब कुछ ठीक वैसा ही था, जैसा बारिश की किसी सुबह हो सकता
2 अरे ! शीशे में यह कौन था ! इतने भद्देे से कान, खिचड़ी से बाल, किसी फटे हाल भिखारी सी आँखें......... शीशे में से मेरा चेहरा भी मुझे पहचान नहीं पा रहा था. इतनी वीरानी तो पहले कभी ...और पढ़ेचेहरे पर नहीं थी. क्या मुझमें कोई और आकर रहने लगा था ? मैं यह सब सोच ही रहा था कि रेज़र में ब्लेड डालते हुए मेरी अँगंुली कट गई और खून बहने लगा. मैं अपने बहते खून को वाॅश बेसिन में टपकते हुए देखता रहा. मुझेे आश्चर्य हुआ कि न तो मुझेे दर्द महसूस हो रहा था और न
3 पर उनके पास हितेश की बात मानने के अतिरिक्त कोई चारा भी नहीं था. उन दोनों के चले जाने के बाद हितेश मेरे पास सरक आया, जैसे हमारे बीच कोई भेद भरे संवाद होने हों. उसने मेरे दोनों ...और पढ़ेको अपनेे हाथों में ले लिया और फुसफुसाया, ”अब बताओ, हुआ क्या है ?“ मैं चुप बैठा रहा. यदि मैं उसे बता देता कि मैं मर चुका हूँ, तो निश्चय ही वह मेरा मजाक उड़ा देता, ”दरअसल मुझे सुबह से ही कुछ महसूस नहीं हो रहा है.....“ ”क्या सिर पर कोई चोट वगैहरा लगी थी ?“ ”नहीं.“ ”कोई डिप्रेशन ?“
4 मैंने कहा, ”भले ही मुझे थाने ले चलो, पर उस बेचारी को कुछ खाने को तो दे दो. लगता है उसने सदियों से कुछ खाया नहीं है. बेचारी मर जाएगी.“ पुलिस वाला गुर्राया, ”वह जिन्दा बच जाएगी, तो ...और पढ़ेमर जाएँगे..... फिर हमें अगला केस कहाँ से मिलेगा !“ ”आप समझ नहीं रहे हैं भाई साहब. वह जीवित रहेगी, तभी तो आप जिन्दा रह पाएँगे.“ मैंने उसे समझाने का प्रयास किया. पर वह हर समझ से परे जा चुका इन्सान निकला. उसे सिर्फ अपने पुलिस केसों का टार्गेट पूरा करना था. क्या वह पुलिस वाला भी मर चुका था